परसों रक्षाबंधन है। भाई-बहन के प्यार का बंधन। आज की इस आधुनिक दुनिया में जहाँ बाकी पूरे साल दुनिया भर के "फ्रेंडशिप डे" मनाये जाते हैं, रक्षाबंधन की अलग ही रौनक होती है। इसी रौनक में हम भी रक्षाबंधन मना लेते हैं।
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हमारे कोई बहन तो है नहीं, इसलिए मुझे नहीं पता कि बहन का प्यार कैसा होता है। तवेरी-चचेरी बहनों के भी अलग ही नखरे होते हैं। रक्षाबंधन वाले दिन हमारी कलाईयों में बुवाएं ही राखी बांध देती हैं। पिताजी हर चार भाई हैं। बाकी तीनों बड़े हैं। सभी के अपने-अपने घर-परिवार हैं। दो बुवा हैं। जब वे आती हैं तो बड़े ताऊ के यहाँ ही रुकती हैं। इसके बाद बाकियों के घर पड़ते हैं। इस क्रम में हमारा घर सबसे आखिर में है।
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तो बुवाओं को हमारे यहाँ आते-आते दोपहर हो जाती है। इसलिए दोपहर तक तो हम बेफिक्र रहते हैं, इसके बाद नहा-धोकर चकाचक हो जाते हैं। एक बजे के आसपास बुवाजी आती हैं। पिताजी को राखी बांधकर हमें भी बांधती हैं। वे घर से बनाकर स्टील के डिब्बे में रखकर कलाकंद व मिठाई लाती हैं। हम भी अपनी हैसियत से उन्हें कुछ नेग देते हैं।
जब भाई-भाई लड़ सकते हैं तो क्या बहन-भाई नहीं लड़ सकते? कभी-कभी साल के अन्य दिनों में पिताजी व बुवा की लड़ाई भी हो जाती है। आखिर भाई-बहन जो ठहरे। दोनों ज्यादा स्याने बनते हैं और लड़ बैठते हैं। लेकिन हर रक्षाबंधन पर दोपहर को बुवाजी आती हैं और तब तक पिताजी भी कहीं नहीं जाते। ऐसा ही होता है ना भाई-बहन का प्यार??
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और अब माताजी। उनके दो भाई हैं। हैं नहीं, थे। उनमे से छोटे वाले तो एक जिंदादिल इंसान थे और बड़े वाले कुछ रूखे टाइप के। हमारे छोटे मामा हर महीने आया करते थे। मामीजी गुजर गयी थीं, बच्चे छोटे-छोटे थे, तो मामा ने दबाव में आकर एक विधवा से शादी कर ली। बस, यहीं से गड़बड़ शुरू हो गयी। यह गड़बड़ तभी ख़त्म हुई जब मामाजी ने सल्फास की गोली खाई। यह 12-13 साल पहले की बात है। हम छोटे-छोटे थे। हमें बताया गया कि तुम्हारे मामा अब कभी नहीं आयेंगे। और वाकई वे आज तक कभी नहीं आये।
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लेकिन उस डबल विधवा मामी ने षड़यंत्र जारी रखा। बड़े मामा को परिवार सहित जान से मारने की धमकी दी जाने लगी। कारण थी जमीन। एक बार डबल विधवा ने गाँव के ही कुछ लोगों द्वारा बड़े मामा के घर में घुसकर पूरे परिवार को लाठी-डंडों से पिटवाया। ढोरों को भी नहीं छोडा। उनके घर के काफी हिस्से पर जबरन कब्जा कर लिया। मामा गरीब व सीधे इंसान थे। किसी शुभचिंतक की सलाह पर उन्होंने गाँव छोड़ दिया और मोदीनगर में जाकर रहने लगे। काफी ढोर थे उनके पास। दूध का काम चल निकला।
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लेकिन परिवार तो याद आता ही है। कोई सगा-सम्बन्धी ना हो तो दुनिया बंजर लगने लगती है। छोटे मामा के मरने के बाद हमने वहां जाना छोड़ दिया था। ना ही बड़े मामा को हममे कोई दिलचस्पी थी। इसलिए हमें पता नहीं चल पाया था कि वे गाँव छोड़कर मोदीनगर में रहने लगे हैं। सालों बाद एक दिन बड़े मामा अपनी बहन के यहाँ गए यानी हमारे यहाँ आये। उस दिन दोनों भाई-बहन पुराने दिनों को याद करके खूब रोये और यह रिश्ता फिर जी उठा। अभी भी अच्छा आना-जाना है। माताजी रक्षाबंधन वाले दिन मोदीनगर चली जाती हैं। ऐसा ही होता है ना भाई-बहन का प्यार??
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बताते हैं कि हमारे एक बहन होती। मुझसे बड़ी होती। लेकिन इस दुनिया में आने से पहले ही चली गयी। मरी बच्ची को जन्म देते समय मां भी मरते-मरते बची थी। उसके दो-दो साल बाद ये दो सपूत उस मां ने पैदा किये।
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हमारा एक दोस्त है। अपने मां-बाप की इकलौती संतान। अपनी मां से कहा करता था कि मां, एक बहन भी होनी चाहिए थी। मां पूछती थी कि क्यों बेटा, भाई क्यों नहीं? बोला कि अगर भाई से लडेंगे तो वो मुझे उठाकर फेंक देगा। बहन से हम लड़ ही नहीं सकते। दूसरे, भाई रिश्ता तोड़ देता है, जबकि बहन रिश्ता जोड़ती है।
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तो ऐसा ही होता है ना भाई-बहन का प्यार!!!
पोस्ट लिखने के चक्कर में पोल ही खोल बैठे ?
ReplyDeleteगज़ब की ईमानदार पोस्ट है जी !
हम्म्म.. सोच में डाल दिया आपने.. हैपी ब्लॉगिंग :)
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट लिखी है। सच है यही होता है भाई बहन का प्यार।अच्छी और ईमानदार पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteभाई बिल्कुल देशी फ़्लेवर है तेरी बातों में. बस इसको कायम रखना.
ReplyDeleteरामराम.
Achha laga ye Eemandar post padhna.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
बहुत बढ़िया लिखा बन्धु, और मन को स्पर्श करने वाला।
ReplyDeleteVakai aisa hi hota hai Bhai-Bahan ka pyar, magar aksar mere jaise un sirfiron ko samajh nahin aata, jinhe yeh mila hota hai.
ReplyDeleteबहुत ही भावुक पोस्ट!भाई-बहन प्यार के बंधन से बंधे होते है जैसे मन से मन का गहरा नाता हो! रक्षाबंधन-इस पावन-पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामनाये!
ReplyDeleteअगर भाई से लडेंगे तो वो मुझे उठाकर फेंक देगा। बहन से हम लड़ ही नहीं सकते। दूसरे, भाई रिश्ता तोड़ देता है, जबकि बहन रिश्ता जोड़ती है। ...तो ऐसा ही होता है ना भाई-बहन का प्यार!!!
ReplyDeleteहाँ JRS ऐसा ही होता है भाई बहिन का प्यार बेहद पावन ,पवित्र और बहुत खुशियों व आशीर्वाद देने वाला
मैं अकेली बहिन हूँ अपने प्रिय भाइयों की इसलिए
भरपूर स्नेह प्राप्त होता है...
आपको भाई बहुत बधाई व आशीर्वाद !!!