आजकल अपने रजाई गद्दे राजस्थान की सैर पर निकल गए हैं। राजपूतों के देश में पहुंचकर वे अपने देश को भूल गए हैं। वापस आने का नाम ही नहीं ले रहे। विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि अब वे आयेंगे भी नहीं।
पिछले दिनों जब अपना हरिद्वार से दिल्ली ट्रांसफर हुआ, तो रजाई गद्दे भी दिल्ली पहुँचने थे। मैंने दोनों को ऊपर नीचे रखकर रॉल बनाया, और इसे प्लास्टिक के एक कट्टे में डाल दिया। उसमे दो चादरें, खेस, पुराने घिसे जूते व थोडा बहुत सामान और भर दिया। एक हैण्ड बैग भी था, जिसमे रेलवे का टाइम टेबल, पहचान पत्र, आईकार्ड रखे थे।
शाम को छः बजे बहादराबाद से राजस्थान रोडवेज की बस पकडी। पीछे वाली सीट पर कट्टे को डाल दिया और ऊपर रैक पर बैग को रख दिया। गाजियाबाद का टिकट ले लिया।
रात साढे दस बजे बस मेरठ पहुंची। कंडक्टर ने पहले ही बता दिया था कि बस को बस अड्डे के अन्दर नहीं ले जायेंगे। तो दो तीन सवारियों ने रिक्वेस्ट की कि भाई पांच मिनट के लिए बस को रोक लो, हम कुछ खाने के लिए ले आयें। कंडक्टर के हाँ करने के बाद मुझ समेत तीन लोग उतर गए। हमारे उतरते ही ड्राईवर ने बस चला दी। पहले तो हमने सोचा कि साइड में लगा रहा होगा, लेकिन उसने स्पीड बढ़ाई और नौ दो ग्यारह हो गया।
इस दौरान मैंने देखा कि बस के पीछे लिखा था "टोंक डिपो"। मुझे ये भी पहले ही पता चल गया था कि बस दिल्ली के सराय काले खां से होकर जायेगी। राजस्थान की ज्यादातर बसें वहीँ से होकर जाती हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की बसें कश्मीरी गेट जाती हैं।
मैंने तुंरत ही यूपी रोडवेज की बस पकड़ी और साढे बारह बजे कश्मीरी गेट पहुँच गया। यहाँ से अस्सी रूपये में ऑटो लिया और काले खां जा पहुंचा। वहां राजस्थान रोडवेज के ऑफिस से पता चला कि वो बस पंद्रह मिनट पहले निकल चुकी है। यहीं से बस का नंबर (0174 या 0175) पता चला, और ये भी पता चला कि कंडक्टर का नाम प्रहलाद जाट था। इन्होने बताया कि सुबह सात बजे बस जयपुर पहुँचेगी। जयपुर रोडवेज का फोन नंबर दे दिया और ये कह दिया कि सुबह छः बजे फोन करके उनसे बता देना, वे उस बस से सामान उतार लेंगे और वापस काले खां भेज देंगे।
सुबह छः बजे जयपुर फोन मिलाया। पता चला कि दस मिनट पहले ही बस वहां से भी चली गयी। यहाँ से टोंक डिपो का नंबर ले लिया। तुंरत ही फोन मिलाया। उन्होंने बताया कि वो बस आठ बजे टोंक पहुँचेगी। आठ बजे फिर फोन मिलाया। तब तक बस कोटा के लिए रवाना हो चुकी थी। लेकिन इस बार एक जरूरी चीज हाथ लगी- कंडक्टर प्रहलाद जाट का फोन नंबर।
प्रहलाद ने बताया कि बस में एक कट्टा व बैग था। जिसे उन्होंने ऑफिस में जमा करा दिया है। आगे ये भी बताया कि कल फिर बस लेकर हरिद्वार जाऊँगा, तो उस सामान को ले आऊंगा। अगले दिन प्रहलाद का फोन आया। बोले कि भाई, तुम्हारा कोई जानकर आया था, सामान को वो ले गया है। मैंने मना कर दिया कि मैंने तो किसी को नहीं भेजा। उसने अपना पिंड छुडाते हुए कहा कि मैं एक नंबर दे रहा हूँ, इनसे सामान के बारे में पूरी जानकारी मिल जायेगी।
प्रहलाद ने जो नंबर दिया वो किसी शिव जी लाल मीणा का था। रोडवेज में ही पता नहीं किस पोस्ट पर थे। उन्हें फोन मिलाया तो बोले कि शिव मीणा ही बोल रहा हूँ। अभी बिजी हूँ। थोडी देर में फोन करना। दुबारा किया तो बोले कि रोंग नंबर है। फिर प्रहलाद से पूछा तो बताया कि नंबर तो सही दिया था मैंने। मैंने खीझकर कहा कि सामान तुम्हारे ही पास रखा हुआ है, तुम देना नहीं चाहते। बोले कि कोई पुलिस वाला आया था, वो ले गया है। और फोन काट दिया।
मेरा दिमाग खराब हो गया। एक बार तो सोचा कि प्रहलाद व मीणा को जमकर गालियाँ बकूं। फिर सोचा कि इससे सामान थोड़े ही वापस मिल जायेगा। फिर मन में आया कि प्रहलाद सप्ताह में दो बार हरिद्वार जाता है, पकड़ लूं किसी दिन मेरठ में ही और दिखा दूं जाट वाली। लेकिन इसमें भी मामला उलट सकता था।
किसी ने बताया कि थाने में बस के कंडक्टर व ड्राईवर के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दो, कि रुकवाने के बावजूद भी बस लेकर भाग गए। लेकिन मैं खुद ही थाने वाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था। अब तो मन को तसल्ली दे दी है कि घूमने दो सामान को राजस्थान में। थोडी पहचान पत्र व आईकार्ड की चिंता थी, तो उनके गुम होने की रिपोर्ट लिखा दी है। ताकि उनका दुरूपयोग होने पर मुझे परेशानी ना हो।
आप जो कर रहे हैं वह बहुत गलत है। आप को थाने में रपट लिखानी चाहिए थी। खैर आप उस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते तो भी एक शिकायत महाप्रबंधक राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, जयपुर को लिखिए और उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजिए। उस में सारी घटना का वर्णन करते हुए लिखिए कि यह रोड़वेज की सेवा में त्रुटि और कमी का मामला है। यदि आप को अपना सामान एक सप्ताह में काले खाँ बसस्टॉप पर नही दिया गया तो आप उपभोक्ता अदालत में शिकायत करेंगे। और यदि इस पर कोई कार्यवाही नहीं होती है तो शिकायत कर भी दीजिए।
ReplyDeleteआप इस तरह पचड़ों में न पड़ने की सोच कर राजस्थान रोड़वेज के गलत ड्राइवर कंडक्टर को गलत रास्ते पर चलेते जाने की शह दे रहे हैं।
आप की यह पोस्ट ब्लागवाणी पर 8.04 बजे आई है, इस के बाद 8.19 पर आई विवेक गुप्ता की पोस्ट "हक के लिए जाग रहे लोग" भी पढ लें।
ReplyDeleteदिनेश राय जी के सलाह के अनुसार आगे की कार्यवाही करे. वाही बेहतर होगा. लेकिन मजा आया जानकार कि जाट का माल जाट ले गया.
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ReplyDeleteयार जाट भाई तू क्युं किसी पै उल्टे सीधे आरोप लगाण लाग रया सै?
ReplyDeleteतेरे गद्दे रजाई तैं इब्बी मेरी बात हुई सै. वो तो किम्मै और ही कहाणी बताण लाग रे थे.
वो कह रे थे, ताऊ - यो जाट अकेला अकेला ही घूंम्या करै था. म्हारा भी मन हो गया घूमने का.
सो मौका पाकर हम भी भाग निकले और इब सारा हिंदुस्तान घूम कर ही वापस आयेंगे,:)
रामराम.
आप जैसे घुमक्कडों की संगति से कुछ तो सीख लेंगे ही न वे .... कहा जाता है पढे घर की पढी बिलैया ... कहीं तो उन्हें लेकर जाते नहीं होंगे ... इसलिए वे लोग खुद घूमने निकल गए हैं ... वैसे कानूनी उपाय तो द्विवेदी जी बता ही चुके हैं ... तदनुरूप कार्रवाई करें।
ReplyDeleteद्विवेदी जी की सलाह मानिये.
ReplyDeleteहमेँ तो ताऊनामा पसन्द आया। शिकायतों की तो अम्पायर स्टेट बिल्डिंग बन जाती है और वे जस की तस रहती हैँ! :)
ReplyDeletekhas aap ke liye dusara-pahalu par
ReplyDeleteसुख मिल गया क्या... ?
आप ने सबकि सुनली अब मेरी भी सुने । द्विवेदी जी अनुभवी आदमी है अब उनकी सलाह मानने के सिवा कोइ रास्ता नही है । लेकिन आप इतने दिन बाद यह बात क्यों बता रहे है । आगे से ध्यान रखीये एसे समय मे हिन्दी ब्लोग मित्रों को जरूर याद किया कीजिये । अगर आप समय रहते फ़ोन जयपुर या कोटा के बलोगर मित्र को किया होता तो आप का सामान सुरक्षित आप तक घूम कर वापिस पहुच गया होता । मित्रता ऐसे समय के लिये ही होती है । एक बात और बता दू सभी बस कन्डकट्र के पास आजकल मोबाइल रहता है जिससे वे उड़न दस्ते कि लोकेशन आपस मे बांटते है ।
ReplyDeleteभाई नीरज जी,
ReplyDeleteकिसी महानुभवी ने कहा है की बीती ताहि बिसार दे!
अब जो होना था वो हो गया, आप कर भी क्या सकते हैं हमें बताने के सिवाय!
बहुत लोगो कि टाँगे खिंचाई करी है चलो कोई तो मिला आपको भी!
अब घुमते रहो प्रह्लाद जी और शिव लाल जी के पीछे!
वैसे मुझे लग रहा हैं आपको आपका सामान जरुर मिल जायेगा, हाँ और एक बात कि......
प्रह्लाद जी जिसके बारे में आपसे कह रहे थे जो आपका सामान ले गया था उसे मै जानता हूँ
कौन है वो...
जानने के लिए देखिये.. तारक मेहता का उल्टा चश्मा, सब टीवी पर, रात १०.०० बजे....
सोरी भाई... जले पर नमक छिड़कने के लिए....
हां.. हां.. हां.. हां..
दिलीप कुमार गौड़, गांधीधाम
नीरज जी ये तो चलो आप के पुराने गद्दे थे या यूँ कहें की कीमती सामान नहीं था लेकिन अगर होता तब भी क्या आप उसे ऐसे ही छोड़ देते? आप को अपने जाट धर्म का हक़ अदा करना ही चाहिए और प्रहलाद जी को एक सबक सिखाना चाहिए...शरीफ लोगों की इसी बात का ये लोग फायदा उठाते हैं...दिनेश जी की बात में बहुत दम है...
ReplyDeleteनीरज
had hai ye to.. ummid hai ki jald hi aapka saman aapko mil jayega..
ReplyDeletedinesh ji ki baat par turat amal karo bhai..
सफ़र का एक अनुभव ऐसा भी सही. मगर द्विवेदी जी की सलाह पर गौर कीजिये.
ReplyDeleteभाई नीरज,कमाल है? जाट तैं दूसरे के नी छोडते अर तों आपणा माल ही गवां बैठया.....लगै हरिद्वार मैं गंगाजी के प्रताप तै जाटां आली गरमी ठंडी पड गी. वैसे अगर दिनेश जी की बात मान ली जावे तो बी 2 फायदे हैं, एक तो अपणा समान मिल जैगा अर दूसरा इसी चक्कर मैं दो चार पोस्ट लिखण का मसाला बी......
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