सबसे पहले तो सभी को होली की शुभकामनाएं। होली एक ऐसा त्यौहार है जिसके आते ही दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में जनसँख्या घनत्व कम हो जाता है। क्योंकि दूर दराज से रोजगार की तलाश में आने वाले लोग अपने अपने घरों को, गांवों को लौट जाते हैं-होली मनाने। स्कूलों की तो खैर छुट्टी रहती ही है, कम्पनियाँ भी बंद हो जाती हैं।
इस बार 10 व 11 मार्च को होली है। तो ज्यादातर जगहों पर 9 यानी सोमवार की भी छुट्टी कर दी गयी है। 8 का रविवार है। तो इस तरह चार दिन की छुट्टी हो गयी है। खैर, कुछ अपवाद भी होते हैं।
अब चलते हैं अपनी होली पर; मतलब कि मुसाफिर छदमनाम धारी यह प्राणी कैसे मनाता है होली? वो गाँव में एक कहावत है- गिलहरी की दौड़ बिटोडे तक। कुछ भी लिखूं, कैसे भी लिखूं, जब भी लिखता हूँ; घूम फिर कर अपना किस्सा सुनाने लगता हूँ। किसी भी पोस्ट में बिना अपनी टांग अडाए तसल्ली नहीं होती। ऊपर के जो दो पैराग्राफ लिखे हैं, खूब सोच सोच कर लिखे हैं। ज़रा सा लिखा, मुहं ऊपर को उठाकर छत देखने लगा। सिर खुजाने लगा........क्या लिखूं?......क्या लिखूं??....और अपना नाम जुड़ते ही हाथ शताब्दी एक्सप्रेस बन गया है।
जब अपने प्राचीन काल को याद करता हूँ तो हाथ में हरे रंग की एक फुट लम्बी पिचकारी लिए एक बच्चा दिखता है। उसकी मां ने उसे यह पिचकारी पांच रूपये में दिलवाई थी। उसे क्या दोनों भाइयों को। होली वाले दिन ही। जब पिचकारी लेकर वापस आ रहे थे तो मोहल्ले के कुछ लड़कों ने अपनी पिचकारी से इन पर पानी डाल दिया। हाथ में "बन्दूक" लिए हुए भी वो उस समय निहत्था था। घर पहुंचे। पिचकारी में साफ़ पानी भी नहीं भर सकते। रंग पास में था नहीं। क्या करें?
उसने सोचा कि हो सकता पिताजी के कुरते की जेब में किसी पुडिया में पड़ा हो थोडा बहुत। नहीं मिला। पैसे घर में थे नहीं कि खरीद के ले आयें। अब तो एक ही ऑप्शन था- कीचड। मां से आज्ञा ली तो उन्होंने मना कर दिया- कि नहीं बेटे, किसी पर कीचड मत डालना। रहा सहा ऑप्शन भी जाता रहा। पिचकारी खरीदने का सारा उत्साह ख़त्म हो गया।
पिताजी खेत पर गए हुए थे। दोपहर बाद ही आयेंगे। ऐसे में मां ने फिर मोर्चा संभाला। पिताजी की नजरों से बचाकर "इमरजेंसी" के लिए रखा हुआ एक रुपया दे दिया। पक्के रंग की पुडिया ले आया वो बच्चा। बाल्टी में डालकर घोल बनाया गया। फिर तो किसी की क्या मजाल जो इसके घर के सामने से सही सलामत निकल जाये। कुत्तों तक को भी नहीं छोडा। घर में बंधी गायें-भैंस भी रंग डाली।
तभी उधर से मोहल्ले के लड़कों की टोली आ गयी। सभी रंग-बिरंगे। उन्हें देखकर यह बच्चा भैंसों के तबेले में जा घुसा। उन लड़कों ने फिर भी इसे पकड़ लिया। और रंग डाला...रंग डाला। फिर इसने शीशे में शक्ल देखी- हा हा हा हा ही ही ही। अपनी ही शक्ल देखकर लोटपोट। फिर जुट गया पिचकारी लेकर। जैसे ही बाल्टी खाली होती, इसे दुबारा भर लेता। तो पूरा पानी लाल ही बना रहता।
दोपहर बाद नहा धोकर पिचकारी को भी अगले साल के लिए संदूक में रख दिया। वो पिचकारी फिर कई साल तक चली। शाम को गाँव में ठाकुरद्वारे पर पहुँच गए। यहाँ से गाँव के बूढे व जवान सभी ढोल बजाते हुए, होली के गीत गाते व नाचते हुए शिव मंदिर तक जाते थे। गलियों में पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी। ऊपर छतें भी औरतों ने हाउसफुल कर रखी थी। वो बच्चा अपनी मां के साथ छतों छत होता हुआ पता नहीं किसकी छत पर पहुंचकर ढोल देखता।
कुछ साल बाद उसने छतों को छोड़ दिया। और खुद भी 'होली' का हिस्सा बन गया। अब तो वो उस पार्टी का भी हिस्सा है, जो सुबह सुबह ही निकल पड़ती है गाँव में। किसी भी घर को नहीं छोड़ते। एक लड़के को भैंसे पर बैठा दिया जाता है। उसका मुहं काले रंग से रंगा जाता है। गले में सूखे गोबर की माला पहनाई जाती है। ढोल बजाते और "डांस" करते गाँव में घूमते रहते हैं।
कहते हैं कि होली पर अब वो बात नहीं रही। मैं कहता हूँ कि वो ही बात है। बस पहले हम छोटे थे, बालक थे, अब "बड़े" हो गए हैं। जो बुराइयाँ अब हैं, वो पहले भी थी। इस बार होली खेलते बच्चों को देखिये, आप कहोगे कि हम भी बचपन में ऐसे ही खेलते थे। खूब शैतानियाँ करते थे। ये बच्चे भी बड़े होकर इन दिनों को याद किया करेंगे।
बस यही फर्क है कल और आज की होली में।
होली की शुभकामनाऐं..
ReplyDeleteबहुत अच्छा किस्सा सुनाया जाट भाई..
छोटे कस्बों आदि में होली के दिन जो जुलूस निकलता है, वह फाग गाते हुए जाते हैं. बीच बीच में कुछ अड्डे होते हैं जहा उन्हें ठंडाई पीने मिलती है. खूब भांग छानी जाती है. यह तो बड़ा important है. आपके लेख में आप न रहें तो मजा ही क्या?
ReplyDeleteहोली को लेकर आपका उत्साह बरक़रार रहे. होली की शुभकानाएं.
ReplyDeleteऐसी होली आज भी बहुत जगह देखने को मिलती है.. होली की शुभकानाएं...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया किस्सा
ReplyDeleteहोली पर्व की हार्दिक शुभकामना के साथ
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक ।
ReplyDeleteHoli ki shubhkaamnaye...
ReplyDeleteहोली मुबारक जी!
ReplyDeleteबच्चे बड़े होने पर बच्चों को नसीहत देने लगते हैं। यह तो आदिकाल से चल रहा है। आप यह पोस्त लिख कर वह तथ्य उद्धाटित कर रहे हैं।
सुन्दर।
आपको होली की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteनीरज
घणी बढिया पोस्ट. होली की घणी रामराम भाई.
ReplyDeleteरामराम.
:))) उस छोटे से बच्चे को जो अब बड़ा हो गया है बहुत बहुत शुभकामनाएं होली की .
ReplyDeleteवैसे बिलकुल ठीक ही कहा है वही बात अब भी है..बस हम बड़े हो गए ..बहुत खूब
होली की शुभकामनाएं सभी को !!!!!
holi ki dhero shubhkaamnaaye aapko
ReplyDeleteहूँ..... बच्चा सचमुच बड़ा हो गया है ..होली की शुभकामनायें और सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteहोली की शुभकानाएं
ReplyDeleteमन को मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
ReplyDeleteरंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग
आयो रे फिर से फाग हवा महके महके
जियरा नहीं बस में बोले बहके बहके...
आदरणीय हिंदी ब्लोगेर्स को होली की शुभकामनाएं और साथ में होली और हास्य
धन्यवाद.
AAPKO HOLI MUBARK HO>>..........>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>..............................
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, एक बार तो ऐसा लगा कि शायद आपने हमारे होली मनाने के तरीके के बारे में ही लिख दिया हे लेकिन बाद में ख़याल आया कि बचपन सबका सरीखा ही होता हैं, बहुत अच्छा लगा वाकई में!
यार एक बात बताओ, तुम्हे मुझसे क्या दुश्मनी हैं, जब भी मै शादी करने की सोच रहा होता हूँ तो तुम अपनी पोस्ट में बचपन की याद दिला देते हो और तुम्हारी टिप्पणी पढ़ने के बाद लगता हैं कि काश अभी तक मै बच्चा ही रहता और इसी तरह होली खेलता!
और ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा, तुम्हारी भाभी को पता चल गया तो बहुत डांटेगी, मुझे नहीं तुम्हे!
बोलेगी जैसे तैसे तो अभी शादी के लिए राजी किया है और तुम ऐसा वैसा लिख कर इनका मूड बिगाड़ रहे हो!
बाकी सब फ़ोन पर....
दिलीप कुमार गौड़, गांधीधाम
sabse pehle aapko happy holi...sahi kaha aapne...wqut wahi rehta hai...bas ehsaash badl jate hai,quki hum or aap badl jate hai...bachpan or bacchhe yhi to wo do chize hai jinhe hum svi chhahte hai......
ReplyDeleteफिर इसने शीशे में शक्ल देखी- हा हा हा हा ही ही ही। अपनी ही शक्ल देखकर लोटपोट। फिर जुट गया पिचकारी लेकर। जैसे ही बाल्टी खाली होती, इसे दुबारा भर लेता। ye line speciaily bahut acchhi lagi....