Skip to main content

चीला के जंगलों में


इस इतवार को हमने मूड बनाया चीला में घूमने का। राजाजी राष्ट्रीय पार्क में तीन मुख्य रेंज हैं-चीला, मोतीचूर और एक का नाम याद नहीं। सुबह ही हल्का नाश्ता करके मैं, डोनू और सचिन तीनों चल पड़े। हरिद्वार बस स्टैंड से पैदल हर की पैडी पहुंचे।


फ़िर घूमते हुए भीमगोड़ा बैराज। यह वो जगह है जहाँ से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जीवन रेखा गंगनहर निकलती है।


बैराज पार करते ही राजाजी राष्ट्रीय पार्क की चीला रेंज शुरू हो जाती है। घने जंगल के बीच से होती हुई एक सड़क जाती है, जो आगे ऋषिकेश होते हुए पहाडों में पता नहीं कहाँ गुम हो जाती है।


इस जंगल में मुख्यतया हाथी हैं, इसलिए वन विभाग ने जगह जगह पर चेतावनी संकेत के रूप में बोर्ड लगा रखे हैं।



बैराज से तीन किलोमीटर आगे चीला रेंज में प्रवेश होता है। यहाँ से आगे निर्धारित शुल्क देकर जाया जा सकता है। हम ने यहीं पर करीब दो घंटे गुजारे।



यहाँ पर प्रशिक्षित हाथी भी हैं, जो जंगल में सैर कराते हैं। हम तो केवल खा-पीकर ही वापस आ गए।
हमें यहाँ जंगल में कोई हाथी या तेंदुआ तो नहीं दिखा, लेकिन बारहसिंघे जरूर दिखे। एक दो नहीं बल्कि पूरा चालीस पचास का झुंड। उन्हें देखने के लिए हमें थोड़ा जंगल के भीतर घुसना पड़ा। लेकिन हमें देखते ही पूरा का पूरा झुंड भाग खड़ा हुआ। हम फोटो भी नहीं खींच सके।

Comments

  1. post dekh ke lagta hai ki apka itwaar to bara achha raha.

    ReplyDelete
  2. आज तो भाई मजा आ गया ! फ़ोटो तो घणै ही सुथरे लाग रे सैं ! बहुत बधाई !

    रामराम !

    ReplyDelete
  3. ट्रेवलाग किखने में तो महारत हो गयी है आपकी!

    ReplyDelete
  4. इस बहाने हम भी चीला के जंगलों में घूम आए। सुंदर चित्र और अच्छा वर्णन। बधाई।

    ReplyDelete
  5. क्या खूब पोस्ट लिख डाली मुसाफिर ने. फोटो तो और भी शानदार. पिच्छली पोस्ट सारी पढता हूँ अब.

    ReplyDelete
  6. सुंदर चित्र और बढिया जानकारी। मौका मिलते ही जाऊंगा।

    ReplyDelete
  7. मज़ा आ गया...इसी बहाने हम भी घूम लिए....फोटो काफ़ी अच्छे हैं...

    ReplyDelete
  8. good to see all this pics...
    humein bhi jaane ka dil karne laga wahan :)

    ReplyDelete
  9. मैं तो हर छुट्टी वाले दिन चिला के जंगलो में ही घूमता हू वेसे तो अक्सर बाइक से ही जाना होता है लेकिन जब अकेला जाता हू तो पैदल ही जाता हू मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं है भीमगोड़ा का बेराज क्युकि मेरा घर भीमगोड़ा में ही है हम लोगो सुबह मोर्निंग वाक के लिए भी चिला जाते है और चिला में अब तक पता नहीं कितने हाथी हिरन चीते देख चुके है वेसे चिला से आगे एक और जगह है जहा हम अक्सर होली के दिन जाते है एक मंदिर है विन्धवियाशनी देवी का जहा जाने का आनंद ही कुछ और है इस मंदिर का रास्ता चिला के जंगलो से होकर जाता है और रस्ते में तीन या चार नदिया पडती है जिन्हें पार करके जाना पड़ता है यहाँ पैदल जाना पोसिबल नहीं है क्युकि रस्ते में पूरा जंगल पड़ता है जानवरों का खतरा रहता है और सबसे बड़ी बात जंगलो में कम से कम 6 या 7 किलोमीटर अन्दर है वो मंदिर कभी मोका मिले तो जाना जरुर हम लोग तो होली वाले दिन ही जाते है पिछले 6 साल से होली वाले दिन सुबह 6 बजे घर से निकल जाते है और 2 बजे तक वही रहते है क्युकि मैं मेरे भाई और 2 दोस्त हमे होली खेलना अच्छा नहीं लगता इसलिए अपनी होली जंगलो में बनाते है शांत जगह पर लोगो से दूर जहा मोबाइल के सिग्नल भी आने से डरते है इसकी एक पोस्ट मेने अपने ब्लॉग पर भी दी थी जिसका लिंक आपको दे रहा हू आप भी देखे होली स्पेशल

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

पौषपत्री का शानदार भण्डारा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अमरनाथ यात्रा में महागुनस चोटी को पार करके एक स्थान आता है- पौषपत्री। जहां महागुनस (महागणेश) चोटी समुद्र तल से 4276 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं पौषपत्री की ऊंचाई 4114 मीटर है। यहां से एक तरफ बरफ से ढकी महागुनस चोटी दिखाई देती है, वही दूसरी ओर दूर तक जाता ढलान दिखता है। पौषपत्री से अगले पडाव पंचतरणी तक कहीं भी चढाई वाला रास्ता नहीं है। टोटल उतराई है। पौषपत्री का मुख्य आकर्षण यहां लगने वाला भण्डारा है। देखा जाये तो पौषपत्री पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक तो पहलगाम से और दूसरा बालटाल से पंचतरणी होते हुए। यह शिव सेवक दिल्ली वालों द्वारा लगाया जाता है। मुझे नहीं लगता कि इतनी दुर्गम जगह पर खाने का सामान हेलीकॉप्टर से पहुंचाया जाता होगा। सारा सामान खच्चरों से ही जाता है। हमें यहां तक पहुंचने में डेढ दिन लगे थे। खच्चर दिन भर में ही पहुंच जाते होंगे, वो भी महागुनस की बर्फीली चोटी को लांघकर।

पहलगाम से पिस्सू घाटी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चौदह जुलाई 2010 की सुबह हम पहलगाम से निकल पडे। ड्राइवर से बोल दिया कि तू यहां से बालटाल चला जा और हम परसों तुझे बालटाल में ही मिलेंगे। चाहे तो तू भी अमरनाथ दर्शन कर लेना। आज शाम तक बालटाल पहुंच जायेगा, कल चढाई करके परसों वापस आ जाना। ड्राइवर ने कहा कि हां, देखूंगा। छह-साढे छह के करीब हमने पहलगाम से एक गाडी ली और चन्दनबाडी पहुंच गये। चन्दनबाडी (या चन्दनवाडी) के रास्ते में एक जगह पडती है – बेताब घाटी। इसी घाटी में बेताब फिल्म की शूटिंग हुई थी। लगभग पूरी फिल्म यही पर शूट की गयी थी। ऊपर सडक से देखने पर बेताब घाटी बडी मस्त लग रही थी।