13 अगस्त 2019 यदि आपके मन में छत्तीसगढ़ और बस्तर का नाम सुनते ही डर समा जाता है और आप स्वयं, अपने बच्चों को और अपने मित्रों को बस्तर जाने से रोकते हैं, तो आप एक नंबर के डरपोक इंसान हैं और दुनिया की वास्तविकता को आप जानना नहीं चाहते। अपनी पूरी जिंदगी अपने घर में, अपने ऑफिस में और इन दोनों स्थानों को जोड़ने वाले रास्ते में ही बिता देना चाहते हैं। जब-जब भी छत्तीसगढ़ का नाम आता है, नक्सलियों का जिक्र भी अनिवार्य रूप से होता है। और आप डर जाते हैं। मैं दाद देना चाहूँगा कंचन सिंह को कि वह नहीं डरी। वह अपने एक फेसबुक मित्र (मैं और दीप्ति) और एक उसके भी मित्र (सुनील पांडेय) के साथ बस्तर की यात्रा कर रही थी। उसके सभी (अ)शुभचिंतक डरे हुए होंगे और हो सकता है कि उसने सबको अपने छत्तीसगढ़ में होने की बात बता भी न रखी हो। वह अपनी इस यात्रा को हर पल खुलकर जी रही थी और आज जब तक हम सब सोकर उठे, तब तक वह दंतेवाड़ा शहर की बाहरी सड़क पर चार किलोमीटर पैदल टहलकर आ चुकी थी। उसने सड़क पर एक साँप देखा था, जो कंचन के होने का आभास मिलते ही भाग गया था। दंतेवाड़ा से गीदम और बारसूर होते हुए हम जा रहे थे चित्र
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग