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Showing posts from September, 2019

मानसून में बस्तर के जलप्रपातों की सैर

13 अगस्त 2019 यदि आपके मन में छत्तीसगढ़ और बस्तर का नाम सुनते ही डर समा जाता है और आप स्वयं, अपने बच्चों को और अपने मित्रों को बस्तर जाने से रोकते हैं, तो आप एक नंबर के डरपोक इंसान हैं और दुनिया की वास्तविकता को आप जानना नहीं चाहते। अपनी पूरी जिंदगी अपने घर में, अपने ऑफिस में और इन दोनों स्थानों को जोड़ने वाले रास्ते में ही बिता देना चाहते हैं। जब-जब भी छत्तीसगढ़ का नाम आता है, नक्सलियों का जिक्र भी अनिवार्य रूप से होता है। और आप डर जाते हैं। मैं दाद देना चाहूँगा कंचन सिंह को कि वह नहीं डरी। वह अपने एक फेसबुक मित्र (मैं और दीप्ति) और एक उसके भी मित्र (सुनील पांडेय) के साथ बस्तर की यात्रा कर रही थी। उसके सभी (अ)शुभचिंतक डरे हुए होंगे और हो सकता है कि उसने सबको अपने छत्तीसगढ़ में होने की बात बता भी न रखी हो। वह अपनी इस यात्रा को हर पल खुलकर जी रही थी और आज जब तक हम सब सोकर उठे, तब तक वह दंतेवाड़ा शहर की बाहरी सड़क पर चार किलोमीटर पैदल टहलकर आ चुकी थी। उसने सड़क पर एक साँप देखा था, जो कंचन के होने का आभास मिलते ही भाग गया था। दंतेवाड़ा से गीदम और बारसूर होते हुए हम जा रहे थे चित्र

मानसून में बस्तर: दंतेवाड़ा, समलूर और बारसूर

11 अगस्त 2019 छत्तीसगढ़ के हमारे सदाबहार, सदाहरित मित्र सुनील पांडेय जी अपने अडतालीस काम छोड़कर कसडोल से रायपुर आ गए थे - अपनी गाड़ी से। उधर कंचन भी आ चुकी थी, जो पहले लखनऊ से आगरा गई, आगरा से झेलम एक्सप्रेस पकड़कर दिल्ली गई और अगले दिन दिल्ली से फ्लाइट से रायपुर। तो इस तरह हम चार जने रायपुर से बस्तर की ओर जा रहे थे। वैसे तो हमने अपनी पूरी फेसबुक बिरादरी से इस यात्रा पर चलने को कहा था, लेकिन "डर के आगे जीत है" का हौंसला इन चार ने ही दिखाया। हम ये तो नहीं जानते कि हमारी इस यात्रा पर कितने लोगों की आँखें लगी थीं, लेकिन यह जरूर जानते हैं कि कुछ लोग नक्सली हमला और बम-भड़ाम होने की उम्मीद जरूर कर रहे होंगे। कंचन को भूख लगी थी, इसके बावजूद भी उन्होंने हमें फ्लाइट में मिले पेटीज, बर्गर बाँट दिए। इससे हमारी भूख तो कांकेर तक के लिए मिट गई, लेकिन कंचन की भूख ने धमतरी भी नहीं पहुँचने दिए। कुरुद में बस अड्डे पर कुछ छोटा-मोटा मिलने की आस में गाड़ी रोकी, लेकिन वहाँ तो जन्नत मिल गई। चाय के साथ ताजे समोसे और जलेबियाँ। पोहा भी था, लेकिन मैं और दीप्ति रायपुर से ही इतना पोहा खाकर चले