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Showing posts from March, 2018

फोटो-यात्रा-15: एवरेस्ट बेस कैंप - गोक्यो से थंगनाग

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 25 मई 2016 “आज पिज़्ज़ा खाने का मन किया। दो पनीर पिज़्ज़ा मँगा लिये। लेकिन इन्हें किस तरह हलक से नीचे उतारा, बस हम ही जानते हैं। इस पिज़्ज़ा का जो एक फोटो हमने खींचा था, उसे अब भी यदि देख लेते हैं तो दिनभर मन ख़राब रहता है। असल में सारी करामात याक के पनीर की थी। यह पनीर खट्टा भी था और थोड़ी-सी कड़वाहट भी लिये था। और ‘पिज़्ज़ा-बेस’ अभी हाथ के हाथ आटे से बनाया था, जो बासी रोटी जैसा स्वाद दे रहा था। जो थोड़ा-बहुत स्वाद था, वह सॉस के कारण था। शुरू में हमने ‘तहज़ीब’ दिखाते हुए छुरी और काँटे से खाना चाहा, लेकिन अभ्यास न होने के कारण और बेस्वाद होने के कारण जल्द ही अपने भारतीयपन पर आ गये। वे जो विदेशी कोने में बैठे हैं, जो सोचते हैं, सोचते रहें। नेपाली तो उँगलियों से खाने में हमारे भी उस्ताद होते हैं।”

फोटो-यात्रा-14: गोक्यो और गोक्यो-री

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 24 मई 2016 “आज हमारा इरादा गोक्यो-री जाने का था। ‘री’ का अर्थ होता है चोटी। गोक्यो के पास 5300 मीटर से ऊँची एक चोटी है, इसे ही गोक्यो-री कहा जाता है। इस पर चढ़ना आसान है, हालाँकि अत्यधिक ऊँचाई का असर तो पड़ता ही है। दीप्ति ने पहले तो ना-नुकूर की, लेकिन बाद में चलने को राज़ी हो गयी। हम लगभग 4700 मीटर पर थे। ऐसे इलाके में 600 मीटर चढ़ना भी बेहद मायने रखता है। मुझे दीप्ति पर लगातार निगाह रखनी पड़ेगी। वह अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है। और ऊपर जाने पर उसकी तबियत और ज्यादा ख़राब हो सकती है।” “ख़ूब आवाजाही होते रहने के कारण स्पष्ट पगडंड़ी बनी थी और भटकने का कोई डर नहीं था। हमारे पीछे-पीछे दो विदेशी और आ रहे थे। लेकिन वे भी उच्च पर्वतीय बीमारी से पीड़ित प्रतीत हो रहे थे। दीप्ति को भी बार-बार बैठना पड़ रहा था। वह थोड़ी देर बैठती, फिर दो कदम चलती और फिर बैठ जाती। आख़िरकार जब हम लगभग 5100 मीटर पर थे, उसने हिम्मत छोड़ दी - “अब और आगे नहीं जा सकती।”

फोटो-यात्रा-13: एवरेस्ट बेस कैंप - फंगा से गोक्यो

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 23 मई 2016 आज हम धरती के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक पर थे - गोक्यो झील पर। “हिमालय में 4000 मीटर से ऊपर वाली सभी झीलें बेहद खूबसूरत होती हैं। मुझे ऐसी झीलें बहुत आकर्षित करती हैं। फिर गोक्यो में तो पाँच झीलें हैं।” “अपनी-अपनी रजाइयों में पड़े हुए यही महसूस करते रहे कि इतने दिनों बाद - आठ दिनों की ट्रैकिंग के बाद - हमने एक पड़ाव पा लिया है। गोक्यो झील इस यात्रा का एक अहम पड़ाव था। बेसकैंप केवल एवरेस्ट के कारण प्रसिद्ध है, लेकिन असली नैसर्गिक सुंदरता तो झीलों में ही होती है। वह यहाँ आकर पता भी चल रहा था।”

फोटो-यात्रा-12: एवरेस्ट बेस कैंप - डोले से फंगा

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 22 मई 2016 “याकों के बारे में मैंने कहीं पढ़ा था कि ये आक्रामक होते हैं और इन्हें कभी भी पूरा पालतू नहीं बनाया जा सकता। बस, तभी से इनसे डर लगने लगा था। लेकिन ये याक भी हमारी ही तरह थे। शायद इन्होंने भी कहीं भूलचूक से पढ़ लिया होगा - “दो पैरों पर चलने वाला, अपने शरीर को ढककर रखने वाला जानवर, जो हमेशा अपनी पीठ पर बोझा उठाये घूमता रहता है - पता नहीं कहाँ से आता है, कहाँ जाता है - बहुत ख़तरनाक होता है। अपने से कई गुने बड़े हम याकों को खूंटे से बाँधकर रखता है, पालतू बना लेता है, बोझा ढुलवाता है और दूध भी निकाल लेता है। इनसे जितना बच सको, बचना चाहिये।” इसी पढ़ाई-लिखाई का नतीज़ा था कि ये हमसे दूर ही दूर रहे। हम पगडंडी पर इनके नज़दीक पहुँचते, तो ये बछड़ों समेत दूर भाग जाते।”

फोटो-यात्रा-11: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से डोले

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 21 मई 2016 और अचानक निर्णय लिया कि हम पहले बेसकैंप नहीं जायेंगे, बल्कि गोक्यो झील जायेंगे। “अगर आपको पैसों की कुछ भी चिंता नहीं है, तो नामचे आपके लिये बेहद शानदार स्थान है। आलीशान होटल हैं, पूर्णरूप से घुमक्कड़ी वाला माहौल है, दुनियाभर से यात्री आते हैं और भीड़-भड़ाका होने के बावज़ूद भी यह खलता नहीं है। इस बात का एहसास हमें तब हुआ, जब हम सारा बिल भर चुके। जब हमें यहाँ और खर्चा करने की आवश्यकता नहीं रही, तब हमें नामचे की खूबसूरती दिखनी शुरू हुई।” ... “मैंने पूछा कि कमरा कितने का है? बोला - “फ्री है।” मुझे सुनायी पड़ा - “थ्री हं(ड्रेड)।” मैंने मोलभाव करना शुरू कर दिया - “सौ रुपये लगाओगे, तो हम आयेंगे।” हँसते हुए बोला - “सौ छोड़िये, एकदम फ्री में रुकना है आपको। केवल खाने के पैसे देने हैं।”

फोटो-यात्रा-10: एवरेस्ट बेस कैंप - फाकडिंग से नामचे बाज़ार

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 20 मई 2016 “आज हम इस ट्रैक पर पहली बार 3000 मीटर से ऊपर आये हैं। हालाँकि कुछ दिन पहले ताकशिंदो-ला से 3000 मीटर से ट्रैकिंग आरंभ की थी, लेकिन आज तक इससे नीचे ही रहे। 3000 मीटर का एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है - अब हम ‘हाई एल्टीट्यूड़’ में थे। नामचे बाज़ार में जब हम प्रवेश कर रहे थे, तो जगह-जगह इसके बारे में चेतावनियाँ और इससे बचने के तरीक़े लिखे थे। हालाँकि मैंने पहले भी काफ़ी ऊँचाईयों पर ट्रैकिंग कर रखी है, लेकिन जब आपके चारों तरफ़ ‘हाई एल्टीट्यूड़’ की चेतावनियाँ लिखी हों, तो इनका भी कुछ तो मानसिक असर पड़ता ही है। अब कहीं न कहीं लग भी रहा था कि कल जब हम नामचे से आगे बढ़ेंगे, तो पता नहीं क्या होगा? क्या हमें भी बाकी ज्यादातर ट्रैकरों की तरह एक दिन नामचे में बिताना चाहिये? नहीं, हम कल आगे बढ़ेंगे।” ... “डाइनिंग रूम में बैटरी चार्जिंग के रेट लिखे थे - डिजिटल कैमरा फुल चार्ज 300 रुपये, लैपटॉप 400 रुपये, मोबाइल 300 रुपये। हमने ‘चेक-इन’ करने से पहले ही तय कर लिया था कि कैमरा-मोबाइल-पावर बैंक सब चार्ज करेंगे और वो भी फ्री में। मालकिन ने ‘ध

फोटो-यात्रा-9: एवरेस्ट बेस कैंप - सुरके से फाकडिंग

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 19 मई 2016 आज का दिन हमारे लिये भावनात्मक रूप से बड़ा मुश्किल रहा। हमारे साथी कोठारी जी ने वापस जाने का निर्णय लिया। एक बार तो हम भी उनके साथ ही वापस चल देने का मन बना चुके थे। “अक्सर वापस लौटने का भी कई बार मन कर जाता था, लेकिन हमें बेस कैंप भी जाना था। एक ही बात हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही थी - ज़िंदगी में एवरेस्ट बेस कैंप जाने का इसके बाद कभी भी मौका नहीं मिलेगा। अपना पसंदीदा काम करने के मौके सबको मिलते हैं, लेकिन आप उन्हें पहचान नहीं पाते। हमें बड़ी मुश्किलों से यह मौका मिला था, इसे गँवा नहीं सकते थे।” “यह काफ़ी निराशाजनक समय था। हमारे भी मन में आया कि उनके साथ ही लौट चलते हैं। दुनिया में और भी अनदेखे स्थान हैं। क्या हासिल होगा एवरेस्ट बेस कैंप जाकर? लेकिन इस तरह का कोई भी त्वरित निर्णय लेने से पहले थोड़ा रुक जाना चाहिये। हम तात्कालिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर निर्णय लेते हैं और बाद में पछताते हैं। रुक जाने से, आराम करने से, शांत हो जाने से हमारे सोचने का दायरा बढ़ जाता है और हम तात्कालित परिस्थितियों के प्रभाव में नहीं आत

घुमक्कड़ी और गूगल मैप - भाग 1

मुझे नहीं पता कि आप गूगल मैप का कितना इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मैं बहुत ज्यादा करता हूँ। मैं इस पर इतना आश्रित हूँ कि अगर मुझे किसी यात्रा में इसकी सहायता न मिले, तो आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और कुछ भी नहीं सूझता। लेकिन मैं यात्राओं के दौरान गूगल मैप का इस्तेमाल करने से ज्यादा यात्रा से पहले घर बैठकर इसका इस्तेमाल करता हूँ। तो इसमें क्या करता हूँ, वो सब आज आपको इत्मीनान से बताऊंगा। पता नहीं आपकी समझ में आयेगा भी या नहीं। आज की पोस्ट पूरी तरह टेक्निकल है। अगर कोई बात समझ न आये और आप उसे जानना चाहते हैं तो बेहिचक पूछ लेना। पहले कुछ टॉपिक हैं, उन पर चर्चा कर लेते हैं:

फोटो-यात्रा-8: एवरेस्ट बेस कैंप - बुपसा से सुरके

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 18 मई 2016 “हम नकारात्मक ऊर्जा से भरे थे। कभी-कभार मन में आता कि वापस चलो। क्या करेंगे बेस कैंप जाकर? हर चोटी का एक बेस कैंप होता है। हमारे यहाँ कंचनजंघा का भी बेस कैंप है, नंदादेवी का भी है, बाकियों का भी है, जहाँ नियमित ट्रैकर्स जाते हैं। इसके साथ ‘एवरेस्ट’ शब्द जुड़ा है तो क्या हुआ? हम वहाँ पहुँच भी जायेंगे तो क्या होगा? यार-दोस्तों में नाम ही तो होगा। यहाँ की महंगाई और घोर व्यावसायिकता से भी बड़ी परेशानी हो रही थी। मुझे ट्रैकिंग में चाय बहुत पसंद है। भारतीय हिमालय में दस रुपये की चाय आपको स्थानीय लोगों से जोड़े रखती है। यहाँ 70 रुपये का चाय जैसा दिखने वाला गर्म पानी किसी से भी जुड़ाव नहीं होने दे रहा।” ... “अपने हिमालय को याद कर रहे थे। हमारे हिमालय में ट्रैकिंग की बात ही अलग है। आपको रास्ते में कहीं गद्दियों के, कहीं गड़रियों के झौंपड़े मिलेंगे। आपको दूध मिलेगा, खाना मिलेगा। पैसे भी नाममात्र के ही लगेंगे। चूल्हे के सामने बैठकर गर्मागरम फुल्के खाओगे, अपने हाथ से कुकर में से सब्जी लोगे, टोकरे में से प्याज उठाकर सलाद बनाओगे। वहीं सो