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धौलपुर नैरो गेज

अभी पिछले दिनों की बात है कि आपना दिमाग फिर गया और मैं धौलपुर चला गया। कारण था कि धौलपुर से जो छोटी लाइन की गाडी चलती है, उसमें सफर करना है। कोई समझदार इंसान आपातकाल को छोडकर कभी गर्मियों में राजस्थान जाने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। दिल्ली से आगरे की बस पकडी, सुबह तक आगरा। यहां से सुबह 06:20 पर झांसी पैसेंजर (51832) चलती है। यह घण्टे भर में धौलपुर पहुंचा देती है। मैंने इसी सेवा का सहारा लिया था।

धौलपुर से 10:40 पर नैरो गेज यानी छोटी लाइन की गाडी तांतपुर के लिये निकलती है। इस समय तक यहां काफी गर्मी बढ गई थी। रही-सही कसर एटीएम ने पूरी कर दी। दिल्ली से चलते बखत मैंने ध्यान नहीं दिया कि जेब में लक्ष्मी जी है भी कि नहीं। नतीजा? धौलपुर तक सब खत्म। वापस आगरा जाने के भी लाले पड गये तो धौलपुर में एटीएम खोज शुरू हुई। स्टेशन वैसे ही छोटा सा है। यहां कोई एटीएम नहीं है। वैसे तो स्टेट बैंक के बारे में कहा जाता है कि जहां पांच आदमी भी मूतते हों वहां भी एटीएम मिल जाता है लेकिन स्टेशन पर कुछ नहीं।

क्या शहर है धौलपुर, नौ बजे तक भी सुस्त और अलसाया सा। आधे शहर का चक्कर काट लिया, सिर्फ मण्डी को छोडकर कहीं भी भीड-भाड नहीं मिली। लेकिन हां, एटीएम भी नहीं मिले। मतलब मिले तो कई सारे लेकिन कोई खराब, कोई खाली। जब हिम्मत जवाब देने लगी और वापस स्टेशन की तरफ जाने लगा तो किसी ने बताया कि इस गली में चले जाओ, लास्ट में जाकर इधर मुड जाना, फिर उधर मुड जाना, किसी से पूछ लेना, मिल जायेगा। सोचा कि चलो, इसे भी आजमाया जाये। और नसीब की बात कि हजार का एक नोट मिल गया। अब इसे तुडवाने की दिक्कत। कौन पांच-दस रुपये के लिये हजार के नोट को तोडेगा।

खैर, 10:40 पर चलने वाली तांतपुर पैसेंजर (52181) साढे ग्यारह बजे चली। असल में यह गाडी धौलपुर से सुबह-सुबह चार बजे सिरमथरा के लिये जाती है। और दस बजे के करीब वापस आती है। जब यह गाडी वापस आई और इस पर भीड का जो नजारा देखा तो होश उड गये। ऐसी यात्राओं में मेरा मकसद सीट पर बैठने का कतई नहीं होता बल्कि खिडकी पर खडे होना होता है। आज गाडी रुकते ही और घुसने की गुंजाइश मिलते ही सबसे पहले सीट कब्जाई गई। गर्मी तो वैसे काफी थी, अच्छा हुआ कि मैं सुबह आगरा से नहाकर चला था।

1914 में धौलपुर से बारी और आगे तांतपुर/सिरमथरा तक की लाइन पूरी हुई थी। दो-चार साल का आगा-पीछा हो सकता है। धौलपुर ना तो कोई ज्यादा शक्तिशाली रियासत थी, ना ही कोई पहाडी जगह कि अंग्रेजों ने अपनी मौज-मस्ती के लिये यह लाइन बिछाई। असल में तांतपुर और सिरमथरा में लाल पत्थर की बहुलता है। धौलपुर में सडक-वडक थी नहीं, इसलिये धौलपुर दरबार और अंग्रेजों ने विचार किया कि रेल बिछाई जाये। ऐसे में नैरो गेज ही बिछाना ज्यादा फायदे का सौदा था।

इस लाइन पर धौलपुर के बाद बारी (बाडी) सबसे बडा स्टेशन और कस्बा भी है। बारी के बाद है मोहारी जंक्शन। यहां से एक लाइन सीधे हाथ की तरफ तांतपुर जाती है और दूसरी उल्टे हाथ की तरफ सिरमथरा।

कोई अगर कहता है कि भारत में ट्रेनों में सबसे ज्यादा भीड मुम्बई की लोकल में होती है तो उसे मेरी सलाह है कि एक चक्कर इस लाइन का भी काटा जाये, सारे समीकरण बदल जायेंगे। यहां डिब्बे की छत पर चढने के लिये सीढियां होती हैं। एक डिब्बे में तो मैंने देखी भी हैं। हद तो तब हो गई, जब सिरमथरा में गाडी वापस जाने की तैयारी करने लगी तो मैंने सोचा कि चलो, अबकी बार दूसरी साइड में बैठा जाये। सिरमथरा हालांकि इस लाइन का लास्ट स्टेशन है। तो सीधी सी बात है कि जितनी भी सवारियां इसमें बैठी हैं, सभी को उतरना पडेगा। ऐसे में मैं आसानी से सीट बदल लूंगा। गाडी रुकी, सभी सवारियां उतर गईं, चढ भी गईं, मैं सोचता ही रह गया। पहले वाली सीट भी गंवा दी, नई सीट मिली नहीं। हालांकि मैं ट्रेनों के मामले में काफी चुस्त रहता हूं। भला हो बारी का कि सबसे बडा स्टेशन है- सीट दोबारा मिल गई।

बात तो चल रही है इसे भी बडी लाइन में बदलने की लेकिन पता नहीं कब तक?


धौलपुर स्टेशन पर ट्रेन के आने के इंतजार में बैठी सवारियां


और भाई ट्रेन आ गई।


यही सीन देखकर अपनी छठी सेंस जाग गई और बोली कि बेटा सीट कब्जा ले। छत पर चढना अपने बसकी बात नहीं थी। कारण था पूरी रात दिल्ली से आगरा तक बस का सफर। अगर हवा ठीक-ठाक लग गई और जरा सी झपकी भी आ गई तो मेरा मामला खत्म था।






उम्मीद है कि नीचे खडी सवारियां गाडी में घुस जायेंगी?







इस लाइन पर एक ही गाडी चक्कर काटती रहती है। टाइम टेबल दे रहा हूं:

52179 धौलपुर- 04:00 सिरमथरा- 07:00
52180 सिरमथरा- 07:20 धौलपुर- 10:15
52181 धौलपुर- 10:40 तांतपुर- 13:05
52182 तांतपुर- 13:20 बारी- 14:30
52183 बारी- 14:45 सिरमथरा- 16:25
52184 सिरमथरा- 16:40 धौलपुर- 19:35

सबसे बढिया तरीका है कि 52181 में बैठ जाओ और बैठे रहो और बैठे रहो, सारा नेटवर्क घूमकर शाम को 19:35 पर वापस धौलपुर वापस आ जाओगे।

Comments

  1. ये चक्कर कब लगा दिया, इसमें दिनांक नहीं लिखी है, कोई भी आपके द्दारा दी गई जानकारी से बडॆ आराम से इस रेल पर घूम कर आ सकता है, अब कम से कम हजार रुपये जेब में जरुर रखना, ताकि फ़िर ऐसी समस्या ना आवे,

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  2. इतनी भीड़ जाती कहाँ है?? :) एक तो आप ही थे भीड़ मे...आपका तो समझे कि कहीं भी चले जाते हो मगर बाकी?

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  3. हिम्मत है तुम्हारी... इस गर्मी में..

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  4. वहाँ पर दो बार घूम चुका हूँ हर स्टेशन पर निरीक्षणार्थ। आपने सब याद दिला दिया।

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  5. VERY GOOD TRAVEL SITE.THANKS NEERAJ BHAI

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  6. VERY GOOD TRAVEL SITE.THANKS NEERAJ BHAI

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  7. रे भाई ये का करा ? बद्री धाम की बरफ के बाद धोलपुर की गर्मी में ला मारा...तेरा जवाब नहीं रे जाट...

    नीरज

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  8. पहले वाली सीट भी गंवा दी, नई सीट मिली नहीं। .... वाह रे जाट तेरे भी गुरु हे दुनिया मे:)
    चलो घुम फ़िर कर सही सलामत वापिस आ गये, मजा आ गया, कहते हे रेगिस्तान मे बहुत गर्मी के कारण कुछ पेदा नही होता... तो यह भीड कहां से आ गई?

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  9. अपर फ्लोर में यात्रा करते तो भगवान के ज्यादा करीब रहते! :)

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  10. This is what we call Incredible India !!

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  11. .

    population explosion का अद्भुत नज़ारा..सब भगवान् भरोसे है लगता है।

    .

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  12. बहुत रोचक यात्रा वृतांत...

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  13. sahija reha ho bhai ... ghoomte raho

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  14. नीरज जी धोलपुर दरबार का दिल्ली शासन में शुरू से रुतबा रहा है जिसका पता इस बात से लगा सकते हो की UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) का दिल्ली में ऑफिस जिस बिल्डिंग में है, उसे धोलपुर हाउस ही कहते हैं . इसके अलावा इन्हें अंग्रेजो से १५ गन सेल्यूट मिला हुआ था.

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