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तीसरा दिन: जैसलमेर में मस्ती तो है

13 दिसंबर 2019 कुछ साल पहले जब मैं साइकिल से जैसलमेर से तनोट और लोंगेवाला गया था, तो मुझे जैसलमेर में एक फेसबुक मित्र मिला। उसने कुछ ही मिनटों में मुझे पूरा जैसलमेर ‘करा’ दिया था। किले के गेट के सामने ले जाकर उसने कहा - “किले में कुछ नहीं है... आओ, आपको हवेलियाँ दिखाता हूँ।” फिर हवेलियों के सामने भी ऐसा ही कहा और इस प्रकार मैंने पूरा जैसलमेर कुछ ही मिनटों में देख लिया। मुझे यह सब बड़ा खराब लगा था और बाद में मैंने उसे फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया। हमारा अपना एक फ्लो होता है, अपनी रुचि होती है, अपना समय होता है, तब हम कहीं घूमने या न घूमने का निर्णय लेते हैं। अक्सर जब हम किसी शहर में जाते हैं, तो उस शहर के मित्र हमारी रुचि, फ्लो और समय का ध्यान न रखते हुए अपनी मर्जी से शहर घुमाने लगते हैं... हम मना करने में संकोच कर जाते हैं और इस प्रकार हमारा वह समय भी बर्बाद हो जाता है और हमारे मन में उस शहर की भी छवि खराब होती है। ऐसा ही जैसलमेर के साथ था। फिर हमने परसों जोधपुर का किला देखा... वहाँ हमारा मन नहीं लगा, तो लग रहा था कि कहीं जैसलमेर के किले में भी ऐसा न हो। लेकिन जैसलमेर आए हैं