tag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post29015601692631451..comments2024-03-11T15:32:30.331+05:30Comments on मुसाफिर हूँ यारों: सराहन से बशल चोटी तथा बाबाजीनीरज मुसाफ़िरhttp://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-65292124790541002882013-08-26T10:28:25.010+05:302013-08-26T10:28:25.010+05:30बहुत सुंदर जगह ....साधू को नमन और इतनी सी सुंदर जग...बहुत सुंदर जगह ....साधू को नमन और इतनी सी सुंदर जगह रहने के लिए जलन भी ...काश स्त्री न होती तो ऐसी रमणीय जगह रहकर जीवन गुजारती ...पहली बार सेव के की बोरे देखि ..दर्शन कौर धनोयhttps://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-59047610102080072412013-06-24T14:10:59.494+05:302013-06-24T14:10:59.494+05:30bahut hi achcchi post hai , vivran padh kar maza a...bahut hi achcchi post hai , vivran padh kar maza aaya , bahut enjoy kiya padhte hue . pics bhi bahut sundar thi , dhanyawad .Mohit Parasharhttps://www.blogger.com/profile/08855080091026680780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-61551082430254741302013-06-11T17:57:36.217+05:302013-06-11T17:57:36.217+05:30स्वामी जी ओमानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक "मां...स्वामी जी ओमानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक "मांस मनुष्य का भोजन नहीं " में शाकाहारी जाटों के बारे में बहुत कुछ लिखा है । पूरी पुस्तक http://www.jatland.com/home/Human_Beings_are_Vegetarians पर उपलब्ध है । पुस्तक के कुछ अंश : <br />"मेरी जीत का रहस्य कोई छिपा नहीं, मैं शक्ति (स्टेमिना) और धैर्य के बल्पर ही अपने से अधिक शक्तिशाली और भारत के रुस्तमे-हिन्द मेहरदीन को पछाड़ने में सफल रहा ।” <br />“मुझे पूरा विश्वास था कि यदि दस मिनट तक मैं मेहरदीन के आक्रमण को विफल करने में सफल हो सका तो उसे निश्चय ही हरा दूंगा । आपने ही क्या, दुनियां ने देखा कि आरम्भ के १०-१२ मिनट तक मैं मेहरदीन पर कोई दाव लगाने का साहस नहीं कर सका । १३वें मिनट में मेहरदीन ने ज्यों ही पटे निकालने का यत्न किया, त्यों ही मैंने उसकी कलाई पकड़कर झटक दी । वह औंधे मुंह अखाड़े पर गिरता-गिरता बचा और दर्शकों ने दाद देकर (प्रशंसा करके) मेरे साहस को दूना कर दिया । कई बार जनेऊ के बल पर मैंने नीचे पड़े मेहरदीन को चित्त करने का यत्न किया । यदि आपने ध्यान किया हो तो मैं निरन्तर अपने चेहरे से मेहरदीन की स्टीलनुमा (फौलादी) गर्दन को रगड़ता रहा था ।” <br />“मैं हरयाणे के एक साधारण किसान परिवार का जाट हूं । स्वर्गीय चाचा सदाराम अपने समय के एक नामी (प्रसिद्ध) पहलवान थे । मरते समय उन्होंने मेरे पिता श्री माड़ूराम से कहा था - इसे दो मन घी दे दो, यही पहलवानी में वंश का नाम उज्ज्वल कर देगा ।” <br />“मैं किसी प्रकार से इण्टर पास कर आर्ट एण्ड क्राफ्ट में प्रशिक्षण ले मुढ़ाल गांव के सरकारी स्कूल में खेलों का इन्चार्ज मास्टर लग गया । मैं बचपन से उदास रहता था । प्रायः यही सोचा करता था कि संसार में निर्बल मनुष्य का जीवन व्यर्थ है ।” <br />उपर्युक्त कथन से यह प्रकट होता है कि अपने चचा की प्रेरणा से ये पहलवान बने । पहलवानी इनके घर में परम्परा से चली आती थी । वैसे तो तीस-चालीस वर्ष पूर्व हरयाणे के सभी युवक-युवती कुश्ती का अभ्यास करते थे । उसी प्रकार के संस्कार मास्टर जी के थे, अपने पुरुषार्थ से वे इतने बड़े निर्भीक नामी पहलवान बन गये । इस प्रकार एक वर्ष की पूर्ण तैयारी के बाद १९६९ में होने वाले दंगल में पुनः १२ मई के सायं समय भारत केसरी दंगल में मेहरदीन से आ भिड़े । आज भारत केसरी का निर्णायक दंगल था । इससे पूर्व इसी दिन हरयाणे के वीर युवक मुरारीलाल वर्मा “भारत कुमार” के उपाधि विजेता बने थे । यह भी पूर्णतया निरामिषभोजी विशुद्ध शाकाहारी हैं । यह भी सारे भारत के विद्यार्थी पहलवानों को जीतकर भारतकुमार बना था । अब विख्यात पहलवान दारासिंह की देखरेख में (निर्णायक के रूप में) भारत-केसरी उपाधि के लिये मल्ल्युद्ध प्रारम्भ हुआ । प्रारम्भ में ही मा० चन्दगीराम ने अपने फौलादी हाथों से मेहरदीन के हाथ को जकड़ लिया । मेहरदीन पहली पकड़ में ही घबरा गया । उसे अपने पराजय का आभास होने लगा । जैसे-तैसे टक्कर मारकर हाथ छुड़ाया किन्तु फिर दूसरी पकड़ में वह हरयाणे के इस शूरवीर के पंजे में फंस गया, वह सर्वथा निराश हो गया । विवश होकर केवल ७ मिनट ४५ सैकिण्ड में उससे छूट मांग ली अर्थात् बिना चित्त हुये उसने आगे लड़ने से निषेध कर दिया और अपनी पराजय स्वीकार कर भीगे चूहे के समान अखाड़े से बाहर हो गया । दर्शकों को भी ऐसा विश्वास नहीं था कि विशालकाय मेहरदीन हलके फुलके मा० चन्दगीराम से इतना घबरा कर बिना लड़े अपनी पराजय स्वीकार कर अखाड़ा छोड़ देगा । दर्शकों को तो भय था कि कभी चन्दगीराम हार न जाये । लोग उसकी जीत के लिये ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे । हार स्वीकार करने से पूर्व दारासिंह निर्णायक ने मेहरदीन को कुश्ती पूर्ण करने को कहा था, किन्तु वह तो शरीर, मन, आत्मा सबसे पराजित हो चुका था । उसके पराजय स्वीकार करने पर निर्णायक दारासिंह ने हजारों दर्शकों की उपस्थिति में मास्टर चन्दगीराम को विजेता घोषित कर दिया । फिर क्या था, तालियों की गड़गड़ाहट तथा मा० चन्दगीराम के जयघोषों से सारा क्रीडाक्षेत्र गूंज उठा । श्री विजयकुमार मल्होत्रा मुख्य कार्यकारी पार्षद ने दूसरी बार विजयी हुये मा० चन्दगीराम को भारतकेसरी के सम्मानजनक गुर्ज से अलंकृत किया । सारे भारत में इनके विजय की धूम मच गई । स्थान-स्थान पर स्वागत होने लगा । इनके अपने ग्राम सिसाय (जि० हिसार) में भी इनका बड़ा भारी स्वागत हुवा । उस स्वागत समारोह में मैं स्वयं भी गया और मा० चन्दगीराम को इनके दोबारा विजय पर स्वागत करते हुये बधाई दी । गत वर्ष प्रथम भारत केसरी विजय पर हरयाणे के आर्य महासम्मेलन पर सारे आर्यजगत् की ओर से भारतकेसरी मा० चन्दगीराम तथा हरयाणाकेसरी आर्य पहलवान रामधन - इन दोनों का रोहतक में स्वागत किया था । Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-53016614289168005182013-06-11T17:54:12.838+05:302013-06-11T17:54:12.838+05:30स्वामी जी ओमानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक "मां...स्वामी जी ओमानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक "मांस मनुष्य का भोजन नहीं " में शाकाहारी जाटों के बारे में बहुत कुछ लिखा है । पूरी पुस्तक http://www.jatland.com/home/Human_Beings_are_Vegetarians पर उपलब्ध है । पुस्तक के कुछ अंश : <br />श्री मास्टर चन्दगीराम जी सब पहलवानों को हराकर दो बार (सन् १९६२ और १९६८ ई०) हिन्दकेसरी विजेता बने और दो बार (सन् १९६८ और १९६९ ई०) भारतकेसरी विजेता बने । इन्होंने बड़े बड़े भारी भरकम प्रसिद्ध मांसाहारी पहलवानों को पछाड़कर दर्शकों को आश्चर्य में डाल दिया । जैसे मेहरदीन पहलवान मांसाहारी है । दोनों बार भारतकेसरी की अन्तिम कुश्ती इसी के साथ मा० चन्दगीराम की हुई है और दोनों बार मा० चन्दगीराम शाकाहारी पहलवान जीता तथा मांसाहारी मेहरदीन हार गया । एक प्रकार से यह शाकाहारियों की मांसाहारियों से जीत थी । प्रथम बार जिस समय मेहरदीन के मुकाबले पर मा० चन्दगीराम जी अखाड़े में कुश्ती के लिये निकले तो उनके आगे बालक से लगते थे । किसी को भी यह आशा नहीं थी कि वे जीत जायेंगे । <br />क्योंकि चन्दगीराम की अपेक्षा मेहरदीन में १६० पौंड भार अधिक है । ३५ मिनट तक घोर संघर्ष हुवा । इसमें मेहरदीन इतना थक गया कि अखाड़े में बेहोश होकर गिर पड़ा, स्वयं उठ भी नहीं सका, आर्य पहलवान रूपचन्द आदि ने उसे सहारा देकर उठाया । यदि मेहरदीन में मांस खाने का दोष नहीं होता तो चन्दगीराम उसे कभी भी नहीं हरा सकता था । मांसाहारी पहलवानों में यह दोष होता है कि वे पहले ५ वा १० मिनट खूब उछल कूद करते हैं, फिर १० मिनट के पीछे हांफने लगते हैं । उनका दम फूल जाता है और श्वास चढ़ जाते हैं । फिर उनको हराना वामहस्त का कार्य है । गोश्तखोर में दम नहीं होता, वह शाकाहारी पहलवान के आगे अधिक देर तक नहीं टिक सकता । इसी कारण सभी मांसाहारी पहलवान थककर पिट जाते हैं, मार खाते हैं । इसी मांसाहार का फल मेहरदीन को भोगना पड़ा । यह १९६८ में हुई कुश्ती की कहानी है । इस बार १९६९ ई० में दिल्ली में पुनः भारत केसरी दंगल हुवा और फिर अन्तिम कुश्ती मा० चन्दगीराम और मेहरदीन की हुई । यह कुश्ती मैंने प्रोफेसर शेरसिंह की प्रेरणा पर स्वयं देखी । मैं काशी जा रहा था । मेरे पास समय नहीं था, चलता हुआ कुछ देख चलूं, यह विचार कर वहां पहुँच गया । उस दिन बड़ी भारी भीड़ थी । कुश्ती देखने के लिए दिल्ली की जनता इस प्रकार उमड़ पड़ेगी, मुझे यह स्वप्न में भी ध्यान नहीं आ सकता था । वैसे यह दंगल २८ अप्रैल से चल रहा था । इस भारत केसरी दंगल में क्रमशः सुरजीतसिंह, भगवानसिंह, सुखवन्तसिंह तथा रुस्तमे अमृतसर बन्तासिंह को १० मिनट के भीतर अखाड़े से बाहर करने वाला हरयाणा का सिंहपुरुष अखाड़े में उतरा । उधर जिससे टक्कर हुई थी, वह उपविजेता मेहरदीन सम्मुख आया । दोनों में टक्कर होनी थी । बड़े-बड़े पहलवान कुश्ती जीतकर पुनः उसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लेते । क्योंकि पुनः हार जाने पर सारे यश और कीर्ति के धूल में मिलने का भय रहता है । किन्तु कौन चतुर व्यक्ति हरयाणे के इस नरकेसरी की प्रशंसा किये बिना रह सकता है ? जो अपनी शक्ति और बल पर आत्मविश्वास करके पुनः भारतकेसरी के दंगल में कूद पड़ा और अपने द्वारा हराये हुये मेहरदीन से पुनः टकराने के लिये अखाड़े में उतर आया । इधर मा० चन्दगीराम को अपने भुजबल पर पूर्ण विश्वास था । उसने गतवर्ष इसी आधार पर समाचार पत्रों में एक बयान दिया था – <br />“भीमकाय मेहरदीन पर दाव कसना खतरे से खाली नहीं था । भारतकेसरी की उपाधि मैंने भले ही जीत ली, पर मेहरदीन के बल का मैं आज भी लोहा मानता हूँ । पर इतना स्पष्ट कर दूं कि अब वह मुझे अखाड़े में चित्त नहीं कर पायेगा । मैंने उसकी नस पकड़ ली है और अब मैं निडर होकर उससे कुश्ती लड़ सकता हूं और इन्हीं शब्दों के साथ मैं मेहरदीन को चुनौती देता हूं कि वह जब भी चाहे, जहां उसकी इच्छा हो, मुझ से फिर कुश्ती लड़ सकता है ।" <br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-64897299931232070462013-05-26T18:09:23.331+05:302013-05-26T18:09:23.331+05:30main bhi such shimla neeraj ji ke sath ghum lun, b...main bhi such shimla neeraj ji ke sath ghum lun, badha maja aya,, age shimla tak dekhana hain setting on chair,,Motiullah Tahirhttps://www.blogger.com/profile/16242205820538704508noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-85014032393880376252013-05-10T12:39:56.462+05:302013-05-10T12:39:56.462+05:30naseeb wale ho neeraj babu jo aise aise babaon se ...naseeb wale ho neeraj babu jo aise aise babaon se mil paate ho............<br />फकीराhttps://www.blogger.com/profile/10475423696992129780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-41369139460206242422013-05-10T10:26:56.829+05:302013-05-10T10:26:56.829+05:30badiya......badiya......Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-22565823541118703542013-05-10T00:49:44.042+05:302013-05-10T00:49:44.042+05:30हा..हा...भालू वाली बात ने मजा बाँध दिया... राजा एक...हा..हा...भालू वाली बात ने मजा बाँध दिया... राजा एक बार छोड़ दे, राक्षस नहीं.....:DDJ_knighthttps://www.blogger.com/profile/15108542510675912441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-85696847845750395562013-05-09T23:30:35.006+05:302013-05-09T23:30:35.006+05:30Bahut badhiya..maza aya padh ke.. Babaji tho ek du...Bahut badhiya..maza aya padh ke.. Babaji tho ek dum HI FI wale hain...inse milne ki talab jaag gai..Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/01530492371119827878noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-33607780188359032412013-05-09T21:26:53.896+05:302013-05-09T21:26:53.896+05:30वाह, यह पढ़कर आनन्द आ गया..नेटवर्क हो तो ब्लॉगिंग ...वाह, यह पढ़कर आनन्द आ गया..नेटवर्क हो तो ब्लॉगिंग भी कर सकते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-73960684884507768552013-05-09T15:19:02.917+05:302013-05-09T15:19:02.917+05:30बहुत बढ़िया यात्रा विवरण नीरज. बाबाजी को नीरज बाब...बहुत बढ़िया यात्रा विवरण नीरज. बाबाजी को नीरज बाबा का प्रवचन बिलकुल सटीक था.Silentsoulhttps://www.blogger.com/profile/17118623598759862858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-26605008429963894132013-05-09T08:02:50.739+05:302013-05-09T08:02:50.739+05:30बिलकुल सही नीरज भाई !
साधु ऐसे ही होने चाहिये। ...बिलकुल सही नीरज भाई ! <br /><br />साधु ऐसे ही होने चाहिये। दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने वाले ! <br /><br />ये लोग समाज सुधारक हैं, समाज बिगाडक भी बन सकते हैं। ये ही समाज की बीमारियों को भगाने की पहल करेंगे तो समाज भी इनके पीछे हो लेगा।amanvaishnavihttps://www.blogger.com/profile/04526620740401350882noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-82802833459820957102013-05-09T07:50:23.643+05:302013-05-09T07:50:23.643+05:30राम राम जी, बहुत ही सुन्दर पोस्ट हैं, हिमालया का, ...राम राम जी, बहुत ही सुन्दर पोस्ट हैं, हिमालया का, सेवो के बागों का, विहंगम नज़ारा, असली बाबा तो ऐसे ही होते हैं. फक्कड, मस्त मलंग. नीरज भाई घुमक्कडी में लगे रहो और हमें भी घुमाते रहो. धन्यवाद. वन्देमातरम...प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTAhttps://www.blogger.com/profile/02103326902710548202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-77095633639224064472013-05-09T07:47:26.125+05:302013-05-09T07:47:26.125+05:30राम राम जी, खूबसूरत अति सुन्दर, क्या नज़ारे है हिम...राम राम जी, खूबसूरत अति सुन्दर, क्या नज़ारे है हिमालया के. असली संत तो यही होते हैं, दीन दुनिया, ऐशी आराम से दूर..और नीरज भाई असली घुमक्कड तुम ही हो, जंहा पैर निकल पड़े वही पहुँच गए. लगे रहो और हमें भी घुमाते रहो धन्यवाद, वन्देमातरम...प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTAhttps://www.blogger.com/profile/02103326902710548202noreply@blogger.com