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Showing posts from November, 2020

केदारकंठा ट्रैक भाग-3 (केदारकंठा चोटी तक)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 केदारकंठा ट्रैक भाग-2 सुबह 6 बजे ही उठ गए थे, क्योंकि आज हमें बहुत ज्यादा चलना था। आज हम 2800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित जूड़ा लेक पर थे और पहले 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारकंठा चोटी पर जाना था और उसके बाद सांकरी भी लौटना था। जूड़ा लेक से चोटी तक पहुँचने में हमें कम से कम 5 घंटे लगने थे और चोटी से नीचे सांकरी तक उतरने में 4 घंटे लगने थे। इस प्रकार आज हमें कम से कम 9 घंटे तक ट्रैक करना था। चाय बनाने के बाद खिचड़ी बनाई। निकलते-निकलते 9 बज गए। थोड़ा लेट जरूर हो गए। सारा सामान आज यहीं टैंटों में छोड़ दिया। अपने साथ केवल थोड़ा-सा भोजन और पानी ही रखा। बारिश होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, इसलिए रेनकोट भी यहीं छोड़ दिए। कई गर्म और भारी-भरकम कपड़े भी छोड़ दिए और टैंट लगा रहने दिया। कोई चोरी-चकारी नहीं होती है। लेकिन चोरी का एक उदाहरण दूँगा। यह चोरी हमने की। हुआ ये कि कल जब हम जूड़ा लेक पर आए थे, तो एक लोकल ढाबे वाले ने अपना टैंट लगा रखा था। उसका ढाबा अभी तक तैयार नहीं हुआ था, इसलिए उसने काफी सामान अपने टैंट में रख रखा था। किसी काम से वह वापस सांकरी चला गया। वह हमारे गाइड़ अवतार

केदारकंठा ट्रैक-2 (सांकरी से जूड़ा का तालाब)

केदारकंठा ट्रैक भाग-1 सुबह सवेरे अवतार भाई उपस्थित थे। हमें इस ट्रैक के लिए एक पॉर्टर की आवश्यकता थी, तो होटल वाले ने आज सुबह अवतार भाई को बुला लिया। वे सौड़ गाँव के रहने वाले हैं, जो सांकरी से एकदम लगा हुआ है।  “कितने पैसे लोगे?” “आप कितने लोग हो?” “तीन।” “केदारकंठा ट्रैक करना है ना आपको?” “हाँ।” “6000 रुपये पर पर्सन लगेंगे।” “अरे, तुम्हें होटल वाले ने बताया नहीं क्या? हमें पूरी बुकिंग नहीं करनी है। हमें केवल एक पॉर्टर चाहिए। दो दिनों के लिए।” “आप दो दिनों में ट्रैक करोगे? यह दो दिन का ट्रैक नहीं है।” “देखो अवतार भाई, हमें दो दिनों के लिए एक पॉर्टर चाहिए। हमने होटल वाले से पॉर्टर की बात की थी।” “नहीं, पॉर्टर तो मिलने मुश्किल हैं। नेपाली लोग लॉकडाउन के कारण आए नहीं हैं।” “फिर तो तुम रहने दो। हम मार्किट में जा रहे हैं। पॉर्टर आराम से मिल जाएगा।” “अच्छा, ठीक है। कितना सामान है?” “तुम्हें केवल राशन लेकर चलना है। कैंपिंग का सारा सामान हमारे पास है और हम लेकर चलेंगे।” “दो दिनों का राशन भी बहुत हो जाएगा। फिर बर्तन-बुर्तन भी होंगे। दो पॉर्टर लगेंगे।” “कितना राशन लग जाएगा? आधा किलो चावल, आधा कि

केदारकंठा ट्रैक-1 (विकासनगर से सांकरी)

लॉकडाउन के कारण कई महीनों से घर में ही पड़े हुए थे और पहाड़ों में ट्रैकिंग तो छोड़िए, घर के आसपास पैदल चलना तक मुश्किल हो गया था। फिर सितंबर आते-आते जब माहौल सामान्य हुआ, तो सबसे पहले केदारकंठा ट्रैक ही दिमाग में आया। इसका कारण था हमारा वहम। हमें लगने लगा था कि पैरों में जंग लग गई है, इसलिए छोटे ट्रैक से ही अपनी जंग उतारनी चाहिए। उधर दीप्ति लगातार मेरे 80 किलो वजन को गूगल कर-करके देखती, तो उसे बॉडी-मास इंडेक्स ‘ओवरवेट’ बताता।  खैर, हिमाचल से और उत्तराखंड के भी कई इलाकों से खबरें आ रही थीं कि स्थानीय लोग टूरिस्टों को आने नहीं दे रहे। भले ही राज्य सरकारों ने सबकुछ खोल दिया हो, लेकिन स्थानीय लोगों को लग रहा था कि टूरिस्ट लोग अपने-अपने बैगों में कोरोना लेकर आ जाएँगे। जबकि वही स्थानीय लोग दिल्ली, देहरादून और चंडीगढ़ की मंडियों में सेब लेकर रोज आना-जाना कर रहे थे और छोटे-मोटे कामों के लिए लगातार इन शहरों में जा रहे थे। लेकिन हमारे इन सीधे-सादे पहाड़ियों को आज तक भी यही लग रहा है कि टूरिस्ट लोग अपने बैगों में कोरोना भरकर लाएँगे और उनके गाँव में फैला देंगे। तो सबसे बड़ी समस्या यही थी कि सांकरी के नि