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Showing posts from February, 2010

पूर्णागिरी – जहाँ सती की नाभि गिरी थी

वो किस्सा तो सभी को पता ही है – अरे वो ही, शिवजी-सती-दक्ष वाला। सती ने जब आत्महत्या कर ली, तो शिवजी ने उनकी अन्त्येष्टि तो की नहीं, बल्कि भारत भ्रमण पर ले गये। फिर क्या हुआ, कि विष्णु ने चक्र से सती की ’अन्त्येष्टी’ कर दी। कोई कहता है कि 51 टुकडे किये, कोई कहता है 52 टुकडे किये। हे भगवान! मरने के बाद सती की इतनी दुर्गति!!! जहाँ जहाँ भी ये टुकडे गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गयी। एक जगह पर नाभि भाग गिरा, वो पर्वत की चोटी पर गिरा और पर्वत में छेद करके नीचे नदी तक चला गया। यह नदी और कोई नहीं, भारत-नेपाल की सीमा निर्धारित्री शारदा नदी है। अब पता नहीं कैसे तो लोगों ने उस छेद का पता लगाया और कैसे इसे सती की नाभि सिद्ध करके शक्तिपीठ बना दिया। लेकिन इससे हम जैसी भटकती आत्माओं की मौज बन गयी और भटकने का एक और बहाना मिल गया। इस शक्तिपीठ को कहते हैं पूर्णागिरी। यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं अंचल में चम्पावत जनपद की टनकपुर तहसील के अन्तर्गत आता है। जिस तरह से जम्मू व कटरा पर वैष्णों देवी का रंग छाया है, उसी तरह टनकपुर पर पूर्णागिरी का। आओ, पहले आपको टनकपुर पहुंचा देते हैं-

रोहतक का चिड़ियाघर और तिलयार झील

आज पहली बार हरियाणा के पर्यटन स्थल के बारे में बताते हैं। शुरूआत करते हैं रोहतक से। रोहतक दिल्ली से मात्र सत्तर किलोमीटर पश्चिम में है। दिल्ली-फिरोजपुर रेल लाइन पर स्थित एक जंक्शन है। रोहतक का सबसे प्रसिद्द मटरगश्ती केंद्र है - तिलयार झील। यह एक कृत्रिम झील है जिसमे यमुना नहर से पानी पहुँचाया जाता है। झील बहुत बड़े भूभाग में फ़ैली है, बीच बीच में टापू भी हैं। झील के चारों तरफ घूमने के लिए पक्का रास्ता बना है। इस पर कई पुल भी हैं। झील के बगल में है चिड़ियाघर - रोहतक चिड़ियाघर। वैसे तो यह एक छोटा सा चिड़ियाघर ही है, केवल कुछ पक्षी, हिरन, बाघ व तेंदुआ ही हैं। फिर भी हरियाली से भरपूर है और भीड़ से दूर।

शिव का स्थान है - शिवखोडी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । एक बार की बात है। एक असुर था- भस्मासुर। उसने शिवजी से वरदान ले लिया था कि वो जिसके सिर पर भी हाथ रखेगा, भस्म हो जायेगा। इसका पहला प्रयोग उसने शिवजी पर ही करना चाहा। शिवजी की जब जान पर बन आयी तो शिवजी जान बचाकर दौडे। लेकिन भस्मासुर भी कोई लंगडा नही था, शिवजी का पीछा किया। वे एक गुफा में जा घुसे। फिर अपने त्रिशूल से गुफा के अन्दर ही संकरा सा रास्ता बनाते बनाते और अन्दर घुसते रहे। हां, उन्होने इस गुफा का रास्ता भी बन्द कर दिया था। भस्मासुर बाहर ही बैठ गया। कभी ना कभी तो बाहर निकलेंगे ही। शिवजी नहीं निकले। फिर आये विष्णुजी, माता पार्वती का वेश बनाकर। भस्मासुर मोहित हो गया। बोला कि हे पार्वती, मुझसे विवाह करो। पार्वती ने शर्त रख दी कि अगर तुम भोले शंकर की तरह ताण्डव नृत्य करो, तो विवाह हो सकता है। भस्मासुर बोला कि ताण्डव तो मुझे आता ही नही है। पार्वती ने कहा कि, मुझे आता है, मेरे साथ करो। भस्मासुर खुश। पार्वती की नकल करने लगा। जैसे ही पर्वती ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा, भस्मासुर ने भी ऐसा ही किया और भस्मासुर ध्वस्त।

माता वैष्णों देवी दर्शन

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । जम्मू पहुँचे, कटरा पहुँचे, पर्ची कटाई, जयकारा लगाया और शुरू कर दी चढाई। चौदह किलोमीटर की पैदल चढाई। दो किलोमीटर के बाद बाणगंगा पुल है। यहाँ चेकपोस्ट भी है। सभी यात्रियों की गहन सुरक्षा जांच होती है। पर्ची की चेकिंग भी यहीं होती है। वैसे तो कटरा से बाणगंगा चेकपोस्ट तक टम्पू भी चलते हैं जो आजकल बीस रुपये प्रति सवारी के हिसाब से लेते हैं। चेकपोस्ट के पास से ही पोनी व पालकी उपलब्ध रहती है। पोनी व पालकी का किराया माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड द्वारा निर्धारित है। पोनी व पालकी की सवारी शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को ही करनी चाहिये लेकिन भले चंगे लोग भी इनका सहारा ले लेते हैं। यहाँ तक नकली चढाई थी, असली चढाई तो बाणगंगा के बाद ही शुरू होती है। पूरा रास्ता पक्का बना हुआ है। जगह जगह विश्राम शेड बने हैं। पीने के पानी व फ्री शौचालयों की तो कोई गिनती ही नहीं है। पूरे रास्ते भर खाने-पीने की दुकानों का भी क्रम नहीं टूटता। करीब सौ-सौ मीटर पर कूडेदान रखे हैं। श्रद्धालुओं के साथ साथ ही घोडे व खच्चर भी चढते उतरते हैं। वे लीद करते है

जम्मू से कटरा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । उस दिन जम्मू मेल करीब एक घण्टे देरी से जम्मू पहुँची। यह गाडी आगे ऊधमपुर भी जाती है। मैने प्रस्ताव रखा कि ऊधमपुर ही चलते हैं, वहाँ से कटरा चले जायेंगे। लेकिन प्रस्ताव पारित होने से पहले ही गिर गया। यह 27 दिसम्बर 2009 की सुबह थी। जाडों में कहीं जाने की यही सबसे बडी दिक्कत होती है कि भारी-भरकम सामान उठाना पडता है, जिसमे गर्म कपडे ज्यादा होते हैं। स्टेशन से बाहर निकले। हर तरफ कटरा जाने वालों की भीड। बसें, जीपें, टैक्सियां, यहाँ तक कि नन्हे नन्हे टम्पू भी; कटरा जाने की जिद लगाये बैठे थे। हम तीनों ईडियट एक खाली बस में बैठ गये। बस वाला कटरा कटरा चिल्ला रहा था। हमें बस खाली दिखी तो तीनों ने तीन सीटों पर कब्जा कर लिया, खिडकी के पास वाली। यह 2X2 सीट वाली बस थी। हमारे बराबर में एक एक सीट खाली देखकर बाकी सवारियों ने बैठना मना कर दिया, उन्हे भी खिडकी वाली सीट ही चाहिये थी। कंडक्टर ने हमसे खूब कहा कि भाई, तुम अलग-अलग सीटों पर मत बैठो, साथ ही बैठ जाओ, लेकिन यदि रामबाबू और रोहित मेरे पास बैठ जाते तो उनकी शान कम हो जाती। जब झगडा बढ गय

वैष्णों देवी यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । वैष्णों देवी गए और फिर आये, आते ही एक शुभ काम हो गया। खैर, मेरे साथ अभी तक आप जम्मू मेल से सफ़र कर रहे हो, पानीपत से निकलते ही खर्राटे भरने लगे हो। जागने पर क्या हुआ, ये बताऊंगा मैं बाद में, पहले एक खुशखबरी। हमने एक कंप्यूटर खरीद लिया है। अपनी खाट पर बैठे-बैठे ही रजाई की भुक्कल मारकर (ओढ़कर), गोद में कीबोर्ड रखकर, बराबर में माऊस रखकर ई-आनन्द लेना शुरू कर दिया है। लेकिन सुख है, तो दुःख भी है। अरे भाई, एक कंजूस की जेब से जब पैसा निकलता है तो दुःख तो होगा ही। कोई मामूली रकम नहीं, पूरे पांच अंकों में, वो भी एक ही झटके में। चलो खैर, वापस जम्मू मेल में पहुँचते हैं, और देखते हैं कहाँ पहुँच गए।