इस यात्रा वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । पहाड़ पर गांवों में घर दूर दूर होते हैं। बीच में खेत होते है। अब रमेश मुझे गाँव के मन्दिर में ले गया। मन्दिर क्या एक पीपल के पेड़ के नीचे पूजा घर की तरह था। इस मन्दिर के पुजारी रमेश के पिताजी ही थे। मान्यता है कि हर रोज ताजे निकले दूध में से थोड़ा थोड़ा यहाँ पर चढाया जाता है। नहीं तो अगले दिन से पशु के थन से दूध की जगह खून निकलता है। अब रमेश कहने लगा कि चल तुझे एक गुफा दिखता हूँ। पूरा गाँव पार करके इस पहाडी की चोटी से ज़रा सा नीचे एक छोटी सी गुफा थी। हम उसे बाहर से ही देखने लगे। तभी अचानक मैं चौंक पड़ा। इसकी दीवारों पर सांप जैसी आकृतियाँ बनी हुई थी। पहली बार में तो मैं भी सोच बैठा था कि इसमे तो सांप हैं। लेकिन वो बिल्कुल प्राकृतिक थी।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग