tag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post1636534715697453736..comments2024-03-11T15:32:30.331+05:30Comments on मुसाफिर हूँ यारों: डायरी के पन्ने- 14नीरज मुसाफ़िरhttp://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-58830022286368522682014-09-04T04:11:12.170+05:302014-09-04T04:11:12.170+05:30स्टूडेंट भाई व्यापार करना बुरा नहीं है लेकिन लोगो ...स्टूडेंट भाई व्यापार करना बुरा नहीं है लेकिन लोगो की आस्था को आधार बनाकर व्यापार करना गलत है। नीरज जी के साथ साथ मेरी भी जिज्ञासा है की 108 ₹ का क्या औचित्य है। इसके लिए आपसे बेहतर तर्क की उम्मीद है। Mr. Vishalhttps://www.blogger.com/profile/08777013429638986072noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-63359219784048370492013-10-03T17:20:52.839+05:302013-10-03T17:20:52.839+05:30अगर सभी साधकों से गायत्री मंत्र का जप करने का संक...अगर सभी साधकों से गायत्री मंत्र का जप करने का संकल्प लिया जाता तो ज्यादा अच्छा था। प्राचीन काल में ऋषि मुनि मंत्र जप ही करते थे।NIRANJAN JAINhttps://www.blogger.com/profile/12051981865495991065noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-49118013313971417472013-10-03T00:32:40.658+05:302013-10-03T00:32:40.658+05:30अब आपने ये भी पहचान लिया की किसके मन में कटुता है ...अब आपने ये भी पहचान लिया की किसके मन में कटुता है ...... कटुता होती तो यहाँ आते ही क्यूँ.... किसी विरोधी विचार को व्यक्त करना कटुता हो जाती है क्या.... रही बात गायत्री मंत्र के शांति सिखाने की तो गायत्री मंत्र गाँधी बनना नहीं सिखाता... :PAjitabhhttps://www.blogger.com/profile/12976104361268650912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-14492745577941202802013-10-02T19:40:15.066+05:302013-10-02T19:40:15.066+05:30यह कौन प्रमाणित करता है की आपका तर्क सत्य है... तर...यह कौन प्रमाणित करता है की आपका तर्क सत्य है... तर्क वह होता है जो प्रश्न उत्पन्न करता है न की निष्कर्ष निकालता है....(जैसा कहा की ऐसे लोग 'मूर्ख' हैं...) ... वैसे नास्तिक होने मात्र से कोई आधुनिक नहीं हो जाता....Studenthttps://www.blogger.com/profile/04867194520236676736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-27614056489986887322013-10-02T19:37:45.670+05:302013-10-02T19:37:45.670+05:30बंधू कुछ चीजें अनुभव गम्य होती हैं... आप मुझे समझा...बंधू कुछ चीजें अनुभव गम्य होती हैं... आप मुझे समझा सकते हैं क्या की मोगरे की खुशबु कैसी होती है.. अंततः इस खुशबु का अनुभव मुझे ही करना पड़ेगा... जब आपने मंत्र लिखे ही नहीं तो आप दुसरे किसी को मूर्ख सिद्ध करने वाले कौन... रही बात 108 रु. की तो यह तो देने वाले की श्रद्धा वो एक लाख दे.. उसके पैसे देने से वो मूर्ख कैसे सिद्ध हो गया... कहने का भाव यही है की भारत में ही लाखों लोग मंत्र लिखते हैं... उनमे अनेकों आपसे कहीं अधिक तर्कशील भी हैं... खुद स्वयं जिन्होंने यह परम्परा शुरू की वो भी समझदार ही रहे हैं... अकेले आप उन सबको मूर्ख कैसे बता सकते हो??... और यदि वो व्यापार भी कर रहे हैं तो व्यापार करना बुरा है क्या... आप भी अपना ज्ञान अखबार वालों को बेच नहीं रहे क्या....Studenthttps://www.blogger.com/profile/04867194520236676736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-21747584585386963792013-10-02T19:37:25.379+05:302013-10-02T19:37:25.379+05:30:) रोचक विवाद।। प्रतिक्रिया देख कम से कम इतना ...:) रोचक विवाद।। प्रतिक्रिया देख कम से कम इतना तो तय हो ही जाता है कि गायत्री मंत्र कटुता का शमन नहीं कर पाता उलटा उबाल आ जाता है। :) <br /><br />मैंने अब आस्तिकों से विवाद करना छोड़ दिया है कारण साफ है वे तर्क को सत्य का मार्ग नहीं मानते... विवाद का आधारभूत औजार तो तर्क ही है। मतलब पूर्वधारणाएं ही नहीं मिल रहीं। बहस के किसी नतीजे पर पहुँचने की कम ही गुंजाइश है। उम्मीद है अमित के परिवार में शॉंति है। शुभाकांक्षाएं। मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-17834724169811815962013-10-02T13:55:39.283+05:302013-10-02T13:55:39.283+05:30मेरे एक मित्र हैं उन्हें भी ऐसा ही जूनून है अपने न...मेरे एक मित्र हैं उन्हें भी ऐसा ही जूनून है अपने नाम के आगे राणा जोड़ने का . आज से नहीं स्कूल कॉलेज के समय से .ईमेल में भी राणाजी . वैसे काफी अच्छे पढ़े लिखे हैं आईआईएम अहमदाबाद के पास हैं , लाखों रूपये महिना कमाते हैं मगर फिर भी राणा ही जोड़ते हैं नाम के आगे . न जाने क्या कारण है कभी पूछ नहीं पाया उनसे .स https://www.blogger.com/profile/03027465386856609299noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-16784547748267289502013-10-02T11:08:30.727+05:302013-10-02T11:08:30.727+05:30Aapse naraj nahi hu . Jise ham prem karate he use ...Aapse naraj nahi hu . Jise ham prem karate he use ham sirf prem karana hi jante he . Aab to the piint mantra lekhan se hamara manobal majbut hota h . Or aapne kabhi mandir or dan dakshina ke bare me bura likha nahi he . 1 2 bar likh liya hoga . Baki sandip bhai ke har lekh me pandit ki burai likhi hoti he . Brahmin pandit vo hote he jo uske pas nahi hota fir bhi aapko aashirvad dete he or vo sach hote bhi dekhe he .1 bat neeraj bhai aap dairy likhte he to vo aapke neeji vichar he usme parivartan ho shakte he . Aap itni durgam yatra karte ho vo aap kese kar shakte ho ? Ham vanchakgan aapkeliye prathna karte he ki hamare neeraj ko kuch na ho .jab aap leh manali gaye the or aapka phone nahi laag raha tha to hamne shree gayatri ma ke pas aapki dua ki prathna ki or mannat bhi mangi thi . Ham naraj nahi he . Trust ke chakkr me ham nahi padte aajkal aap samachar padhte hi he . Vese ae gayatri parivar shudhdha he .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16374667537621830947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-23234633586218713962013-10-02T03:26:25.631+05:302013-10-02T03:26:25.631+05:30रितु शर्मा, उबलने की कोई आवश्यकता नहीं है। विचार प...रितु शर्मा, उबलने की कोई आवश्यकता नहीं है। विचार परिवर्तनशील होते हैं और मेरे भी विचार समय और अनुभव के साथ बदलते रहते हैं। मैंने गायत्री परिवार और उसकी मान्यताओं पर बिल्कुल भी उंगली नहीं उठाई है। केवल मन्त्र लेखन के औचित्य के बारे में कहा है। पहले मैंने सोचा कि किसी भी कापी वगैरा पर लिख देते होंगे मन्त्र लेकिन जब मुझे वो छपी छपाई पुस्तिका मिली पांच रुपये वाली और उसके पहले ही पन्ने पर संकल्प पत्र है कि मन्त्र लेखक 108 रुपये देने का संकल्प लेते हैं, तो जो विचार मन में आये, लिख दिये।<br />भाभीजी से पूछा था मैंने इस बारे में। उन्होंने मुझे ऐसा जवाब दिया कि मुझे अपनी जिज्ञासा के लिये माफी मांगनी पड गई थी। एक और जानकार हैं बल्कि घनिष्ठ मित्र हैं उमेश जोशी जी, जो स्वयं गायत्री साधक हैं। उम्मीद थी कि इसे पढकर वे इस कार्य का औचित्य बतायेंगे। लेकिन उनका भी कोई उत्तर नहीं आया। हमेशा हर पोस्ट पर उनकी टिप्पणी आती थी, आज इस पोस्ट पर नहीं आई। शायद वे भी नाराज हो गये।<br />मुझे दो-तीन बातों की जिज्ञासा है कि मन्त्र लेखन का औचित्य क्या है? गायत्री ट्रस्ट द्वारा दी गई पुस्तिका में ही क्यों मन्त्र लिखे जायें? 108 रुपये का संकल्प क्यों कराया जा रहा है? <br />मैंने अभी कहा है कि विचार परिवर्तनशील होते हैं। ऐसा नहीं है कि जो धारणा अभी आपने मेरी पढी है, वो परिवर्तित नहीं हो सकती। हद से हद क्या होगा कि कुछ चाद-विवाद हो जायेगा, तर्क-वितर्क हो जायेगा। वाद-विवाद और तर्क-वितर्क बुरे नहीं हैं। गायत्री ट्रस्ट के एक कार्य पर जिज्ञासा करते ही आपका क्रोध क्या प्रदर्शित कर रहा है?नीरज मुसाफ़िरhttps://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-17493944090820061952013-10-02T02:51:42.333+05:302013-10-02T02:51:42.333+05:30वैसे गायत्री परिवार वाले आपसे कहीं अधिक पढ़े लिखे औ...वैसे गायत्री परिवार वाले आपसे कहीं अधिक पढ़े लिखे और तर्कशील हैं....कभी उनकी पत्रिका 'अखंड ज्योति' पढ़ लीजियेगा... एहसास हो जायेगा की 15 रूपये की पत्रिका में इतना ज्ञान मिलना वाकई काबिले तारीफ़ परिश्रम है.... बिना किसी का अध्ययन किये बोलने वाले दिग्विजय सिंह के अनुयायी ही हो सकते हैं...<br /><br />आपको जो उचित लगता है वह आप करते हैं जो नहीं लगता वह आप नहीं करते हैं... यह उचित है... लेकिन जो काम आप नहीं करते वह गलत हो जाये, उसे करने वाला मूर्ख हो जाए... इतना निर्णय करने की क्षमता अभी आपमें नहीं ... जितना ज्ञान आप में है, उतना भारत के हर गली कोने में बिखरा है... किसी आदमी के पीछे 1 आदमी साथ नहीं लगता, इसके विपरीत गायत्री परिवार ने जब यज्ञ का आयोजन किया तब 1 लाख यज्ञ वेदियाँ बनायी थी, उसके बावजूद भीड़ ज्यादा रही जिसमे दो तीन राज्यों के मुख्यमंत्री एवं अनेक गणमान्य नागरिक थे...अब वे लाख लोग मूर्ख और अकेला नीरज समझदार .... क्या बात है !!!.. और घोषित भी खुद नीरज ने किया !!!....<br /><br />गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्री राम शर्मा आचार्य थे... उन्होंने किस उद्देश्य से गायत्री मंत्र लिखने का प्रचार किया, यह अध्ययन का विषय है.... घर बैठकर कोई आन्दोलन नहीं चलाता लेकिन गाँधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में खोट हर कोई निकाल लेता है...<br />इस संस्था के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. प्रणव पंड्या Ph.D. हैं और आईआईएम सरीखे न जाने कितने ही संस्थानों में व्याख्यान देते रहते हैं... आपके तर्क अभी इतने प्रौढ़ नहीं की आप उनके शिष्यों को भी प्रतुत्तर दे सको.... हाँ दिग्विजय सरीखे तर्कों का कोई तोड़ नहीं...<br /><br />मैंने कई मर्तबा देखा है संदीप जी को और आपको भगवानो, संस्थाओं और पैसे के ऊपर तर्क करते... यदि आपके पास पैसे नहीं हैं (भगवान् न करे कभी ऐसा हो) तो इसका मतलब यह नहीं की दुनिया के सारे अमीर चोर हैं... अब उल्लू को दिन में दिखाई न दे इसमें सूरज का क्या दोष... यदि मंदिरों में पैसा देना गलत है... इन संस्थाओं को पैसा देना गलत है तो नीरज जी का 1600 का चेक ले लेना कहाँ तक उचित है... आप कहेंगे हमने मेहनत की... वो भी तो होली दिवाली दशहरा 365 दिन सुबह से शाम भगवान् को नहलाते कपडे पहनाते भोग लगाते रहते हैं... उनका काम वो कर रहे हैं , आपका आप कीजिए...(अब ये कम पढ़े लिखे आर्य समाजियों का तर्क मत देना की मूर्ती पे जल चढाने का क्या औचित्य, मूर्ती पूजा तो विदेशी आक्रमणों के पश्चात धर्म को सुरक्षित रखने के तौर पर हुई.... सिन्धु घाटी सभ्यता और मेसोपोटामिया से भी मिटटी की पकाई मूर्तियों के प्रमाण मिल चुके हैं...) <br />आप भिखारियों को भीख नहीं देते यह आपकी इच्छा , लेकिन जो देते हैं वो कोई चोर या पैसा उड़ाने वाले अमीर नहीं (जैसा की अक्सर संदीप जी की बातों से झलकता है), ये उनका सोचना है... <br />आखिर आप भी तो कई बार कावड़ लेकर गए हैं... भला हाइवे होते हुए वाहनों से न जाकर, पैदल चलकर महीने पंद्रह दिन सड़कों को जाम करने का क्या औचित्य ??<br /><br />एक घंटे गायत्री मंत्र लिखने लाख गुना बेहतर है सालियों से चोंच लड़ाने के या फेसबुक पे लडकियां ताड़ने के...Yogesh Sinsinwarhttps://www.blogger.com/profile/11989397830161944763noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-68343711419687227762013-10-02T00:15:53.941+05:302013-10-02T00:15:53.941+05:30neeraj ji जाट सब्द likhne मे कोयी बुरायी नही हे ...neeraj ji जाट सब्द likhne मे कोयी बुरायी नही हे क्योकी यह aap का kal or aaj bhi h aur िकसीko यह जात-पात का सूचक लगता हौ तो uska सोचने का नजरीया ही गलत है Sachin tyagihttps://www.blogger.com/profile/05026492634418980571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-28861492682402411322013-10-01T16:08:24.740+05:302013-10-01T16:08:24.740+05:30यात्रा केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना भर न...यात्रा केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना भर नहीं होता... भीतर से भी गतिशील होना पड़ता है। पत्थर की तरह गए वैसा ही पत्थर लौट आए... न कोई खरोंच न घिसाई... ये घुमक्कड़ी नहीं। नीरज के यात्री ब्लॉगर व पसंदीदा ब्लॉगर होने की मेरी घोषणा का आधार यही है...वे पत्थर नहीं है बदलते हैं बदलने के लिए तैयार भी। जाट नाम पनुर्विचार व ईमानदार स्वीकारोक्ति कि (अभी तक) लगाव इस काम में बाधा है, स्वागतयोग्य है। वैसे मेरा आकलन है कि नीरजत्व किसी जाटत्व के बस की पहचान नहीं है... जाटत्व का अतिक्रमण तुम्हारी नियति है। <br /><br />13 अक्तूबर की तिथि शायद बदलनी पड़े क्योंकि इस दिन दशहरा घोषित है आयोजन में दिक्कत होगी। अगर यात्रा का कार्यक्रम स्थगित है तो पहले वरना बाद में रख सकते हैं। मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-41714030676074148882013-10-01T13:59:10.897+05:302013-10-01T13:59:10.897+05:30intjaar rhta hai is dairy ka... achaa likha hai aa...intjaar rhta hai is dairy ka... achaa likha hai aap ne......कुछ कहता तो साफ सन्देश जाता कि लडके का कहीं चक्कर है। इतना तो ठीक था लेकिन मैं एक ऐसे इन्सान से बात कर रहा था जो बतंगड बनाने में माहिर है। पता नहीं क्या क्या कहानियां गढ लें। ‘ठीक कह रहे हो’ ऐसा कहकर चुप हो गया। अब देखना है कि हवा कैसी चलती है। हवा को अपने अनुकूल ढालना मुझे आता है। करूंगा अपने मन की ही।...:)<br /><br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11758005275832073039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-62419126790539430102013-10-01T11:56:38.517+05:302013-10-01T11:56:38.517+05:30jat vidroh ke mud me he. ghar walo ko tension ho ...jat vidroh ke mud me he. ghar walo ko tension ho raha he din par din ye ladka hath se niklata ja raha he vinay dharadhttps://www.blogger.com/profile/01366094806100131535noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-24977654692889826482013-10-01T10:56:52.233+05:302013-10-01T10:56:52.233+05:30जाट शब्द से प्रेम का जनक आप ही हैं, वैसे रेल्वे द्...जाट शब्द से प्रेम का जनक आप ही हैं, वैसे रेल्वे द्वारा आपको अब आरक्षण के लिये विशेष सुविधा होनी चाहिये ।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-52383166095366137402013-10-01T10:30:46.799+05:302013-10-01T10:30:46.799+05:30मेरा दो लोगों के साथ होने से ही दम घुटने लगता है। ...मेरा दो लोगों के साथ होने से ही दम घुटने लगता है। neeraj kyo??????????????<br /><br />YOGENDRA SOLANKIAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-2292484427494628292013-10-01T08:22:54.189+05:302013-10-01T08:22:54.189+05:30यदि नाम बदलने में समाज बदलने की शक्ति होती तो मैं ...यदि नाम बदलने में समाज बदलने की शक्ति होती तो मैं हर दिन एक नया नाम रख लेता। बुराई नाम में नहीं, लोगों के काम में होती है।<br />पढ़कर अच्छा लगता है कि आपको डायरी लिखने का समय मिल जाता है, एक वर्ष होने को आया, डायरी सोयी है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1291960956767275756.post-79992904678420905012013-10-01T08:03:25.714+05:302013-10-01T08:03:25.714+05:30राम राम नीरज जी, अबके रविवार के जागरण में बहुत प्र...राम राम नीरज जी, अबके रविवार के जागरण में बहुत प्रतीक्षा थी आपके लेख की, कोई बात नहीं, मैं आपके लेख पढता भी हूँ और परिवार वालो को और दोस्तों को भी पढाता हूँ. गर्व होता हैं आप पर. रही बात नाम की, जाट लिखने में कोई बुराई नहीं हैं. हमें तो आपके नाम से ही प्यार हैं.वन्देमातरम.. प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTAhttps://www.blogger.com/profile/02103326902710548202noreply@blogger.com