इस यात्रा की किताब ‘ हमसफ़र एवरेस्ट ’ हमारे भारत में प्रवेश करते ही समाप्त हो जाती है। इसके बाद क्या हुआ, आज आपको बताते हैं। इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें । 4 जून 2016 तो सीमा पार कर लेने के बाद फरेंदा की तरफ़ दौड़ लगा दी, जो यहाँ से 50 किलोमीटर दूर है। सड़क अच्छी बनी है। निकट भविष्य में और भी अच्छी बन जायेगी। लेकिन सामने से आते गाड़ी वाले अपनी हैड़लाइट डाउन नहीं करते। नेपाल में दूर से देखते ही हैड़लाइट डाउन कर लेते थे। यदि हम ऐसा करने में देर लगा देते तो सामने वाला लाइटें जला-बुझाकर तब तक इशारा करता रहता, जब तक हम डाउन न कर लें। वास्तव में नेपाल में भारत के मुकाबले ‘ट्रैफिक सेंस’ ज्यादा अच्छी है। लेकिन आज हमें कुछ भी ख़राब नहीं लग रहा था। जल्द ही मैंने भी हैड़लाइट डाउन करनी बंद कर दी और उसी ज़मात में शामिल हो गया, जिसकी अभी-अभी आलोचना कर रहा था। विमलेश जी के भाई का नाम कमलेश है। वे फरेंदा में मिल गये। बिजली विभाग में अच्छे पद पर हैं। अपने क्वार्टर पर अकेले ही थे और हमारे लिये रोटी व दाल चावल बना रखे थे। दीप्ति ने कहा - “आज भी दाल-भात।” मैंने कहा - “नहीं, ये दाल-भात
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग