Skip to main content

फोटो-यात्रा-4: एवरेस्ट बेस कैंप - दुम्जा से फाफलू

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें
14 मई 2016
“जब भात के साथ दाल और आलू आये तो कोठारी जी ने पूछ लिया - ‘‘वेज?” अर्थात इसमें मांस तो नहीं है? लड़की रसोई में गयी और सरसों का भगोना उठा लाई और परोसते हुए बोली - “वेज।” यहाँ हमें संदेह हुआ कि कहीं ये लोग इसे ही ‘वेज’ तो नहीं कहते? हम ‘वेज’ कहते तो हमारा आशय शाकाहारी से होता, लेकिन यहाँ उबली हुई बे-स्वाद सरसों परोस दी जाती। इसके बाद भी कई बार ऐसा ही हुआ, तब हमें पक्का पता चल गया कि यही ‘वेज’ है। हमें यह सब्जी निहायत नापसंद थी और हम इसे बिल्कुल भी नहीं खाना चाहते थे। अब हम बड़ी दुविधा में पड़ गये थे। हम ‘वेज खाना’ ही लेना चाहते थे, लेकिन ‘वेज’ नहीं। कमाल यह हुआ कि सरसों बर्बाद न हो, इसलिये हमने दाल-भात माँगते समय यह कहना शुरू कर दिया था - “‘वेज’ मत देना।"





एवरेस्ट बेस कैंप ट्रैक पर आधारित मेरी किताब ‘हमसफ़र एवरेस्ट का एक अंश। किताब तो आपने पढ़ ही ली होगी, अब आज की यात्रा के फोटो देखिये:



दुम्जा में कमरे की खिड़की से दिखती सुनकोसी घाटी...



दुम्जा की हवा में तरोताज़ा होतीं मोटरसाइकिलें...

दुम्जा से नाश्ता करके चल दिये...




बी.पी. हाईवे - नेपाल की सबसे सुंदर सड़क...





खुर्कोट से दूरियाँ...





घुर्मी गाँव...

घुर्मी में मुर्गी...

घुर्मी में सुनकोसी पर बना पुल...

सुनकोसी पुल से दूरियाँ...

नीचे रास्ता हलेसी जाता है, ऊपर सोलूखुंबू... एवरेस्ट सोलूखुंबू में है तो हमें ऊपर जाना होगा...





ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ते जाते हैं, घुर्मी और सुनकोसी का पुल छोटे होते जाते हैं...

ओखलढुंगा...


ओखलढुंगा में लंच - दाल, भात, आलू-गोभी, गाजर का अचार, सलाद और ‘वेज’...

दूर से ओखलढुंगा ऐसा दिखता है...

फाफलू की ओर...

ऊँचाई बढ़ती जाती है और बादल भी...

वेलकम टू सोलूखुंबू... समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर ऐसा शानदार स्वागत कम ही स्थान करते हैं...






फाफलू में डिनर - दाल, भात, आलू की सब्जी, स्वादिष्ट सलाद और ढेर सारी ‘वेज’... 


फाफलू में मेन्यू कार्ड का कवर...



और हिंदी बिल्कुल भी नहीं समझने वाली नेपाली महिलाओं का पसंदीदा काम - भारतीय हिंदी सीरियल देखना...








1. फोटो-यात्रा-1: एवरेस्ट बेस कैंप - दिल्ली से नेपाल
2. फोटो-यात्रा-2: एवरेस्ट बेस कैंप - काठमांडू आगमन
3. फोटो-यात्रा-3: एवरेस्ट बेस कैंप - पशुपति दर्शन और आगे प्रस्थान
4. फोटो-यात्रा-4: एवरेस्ट बेस कैंप - दुम्जा से फाफलू
5. फोटो-यात्रा-5: एवरेस्ट बेस कैंप - फाफलू से ताकशिंदो-ला
6. फोटो-यात्रा-6: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से जुभिंग
7. फोटो-यात्रा-7: एवरेस्ट बेस कैंप - जुभिंग से बुपसा
8. फोटो-यात्रा-8: एवरेस्ट बेस कैंप - बुपसा से सुरके
9. फोटो-यात्रा-9: एवरेस्ट बेस कैंप - सुरके से फाकडिंग
10. फोटो-यात्रा-10: एवरेस्ट बेस कैंप - फाकडिंग से नामचे बाज़ार
11. फोटो-यात्रा-11: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से डोले
12. फोटो-यात्रा-12: एवरेस्ट बेस कैंप - डोले से फंगा
13. फोटो-यात्रा-13: एवरेस्ट बेस कैंप - फंगा से गोक्यो
14. फोटो-यात्रा-14: गोक्यो और गोक्यो-री
15. फोटो-यात्रा-15: एवरेस्ट बेस कैंप - गोक्यो से थंगनाग
16. फोटो-यात्रा-16: एवरेस्ट बेस कैंप - थंगनाग से ज़ोंगला
17. फोटो-यात्रा-17: एवरेस्ट बेस कैंप - ज़ोंगला से गोरकक्षेप
18. फोटो-यात्रा-18: एवरेस्ट के चरणों में
19. फोटो-यात्रा-19: एवरेस्ट बेस कैंप - थुकला से नामचे बाज़ार
20. फोटो-यात्रा-20: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से खारी-ला
21. फोटो-यात्रा-21: एवरेस्ट बेस कैंप - खारी-ला से ताकशिंदो-ला
22. फोटो-यात्रा-22: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से भारत
23. भारत प्रवेश के बाद: बॉर्डर से दिल्ली




Comments

  1. मस्त है नीरज साहब।यात्रा फिर से शुरु तस्वीरों के साथ

    ReplyDelete
  2. सर् जी लग रहा है अब आपकी पुस्तक खरीदनी ही पड़ेगी।

    ReplyDelete
  3. Neeraj ji ye jo Menu hai isme Indian currency ke hisab se rate likhe hai ya nepal ke. Baki photos bahut acche hai 👌

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब