इस यात्रा का विचार कहाँ से आया? पता नी। लेकिन मुझे बर्फ़ अच्छी तो लगती है, डर भी लगता है। यार लोग चादर ट्रैक, केदारकांठा ट्रैक इत्यादि के बर्फ़ीले फोटो शेयर करते तो आह-सी निकलती। फिर जल्द ही अपनी ‘कैपेसिटी’ भी पता पड़ जाती। “हमारे बस की ना है।” और इस प्रकार बर्फ़ीले ट्रैक बर्फ़ में ही दबे रह जाते। तो क्या करें? यह बर्फ़ तो मई में जाकर पिघलेगी। इन पाँच महीनों में क्या करें? और नींव पड़ी इस ग्रुप यात्रा की। दिसंबर में अक्सर इस तरह के आइडिये मन में आ ही जाते हैं। हैप्पी न्यू ईयर दिखता है, ‘छब्बी’ जनवरी दिखती है और मन करता है कि यार-दोस्तों के साथ एक आसान-सी यात्रा पर चलें। दो साल पहले नागटिब्बा गये थे। इन दो सालों में इतना अनुभव तो हो गया कि बर्फ़ में ट्रैकिंग ठीक ना है। तो आसान-सा कार्यक्रम बनाया - एक गाँव में चलते हैं, जहाँ से हिमालयी बर्फ़ीली चोटियाँ दिखती हों, एकदम शांत वातावरण हो और घर जैसा अनुभव हो। फिर थोड़ा-सा हिसाब-किताब लगाया और यार लोगों में घोषणा कर दी कि 5000 रुपये लगेंगे। दिल्ली से उत्तराखंड परिवहन की बस से सीधे उत्तरकाशी जायेंगे, फिर रैथल जायेंगे और तीसरे दिन उसी बस से दिल्ली लौट आय
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग