इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 25 अगस्त 2017 कल बडनेरा से ट्रेन नंबर 18405 एक घंटा लेट चली थी। मैंने सोचा सूरत पहुँचने में कुछ तो लेट होगी ही, फिर भी साढ़े तीन का अलार्म लगा लिया। 03:37 का टाइम है सूरत पहुँचने का। 03:30 बजे अलार्म बजा तो ट्रेन उधना खड़ी थी, समझो कि सूरत के आउटर पर। मेरे मुँह से निकला, तुम्हारी ऐसी की तैसी मध्य रेल वालों। फिर तीन घंटे जमकर सोया। पौने सात बजे उठा तो भगदड़ मचनी ही थी। सात बीस की ट्रेन थी और अभी नहाना भी था, टिकट भी लेना था और नाश्ता भी करना था। दिनभर की बारह घंटे की पैसेंजर ट्रेन में यात्रा आसान नहीं होती। कुछ ही देर में आलस आने लगता है और अगर बिना नहाये ही ट्रेन में चढ़ गये तो समझो कि सोते-सोते ही यात्रा पूरी होगी। इसलिये टिकट से भी ज्यादा प्राथमिकता होती है नहाने की। टिकट का क्या है, अगले स्टेशन से भी मिल जायेगा। पश्चिम रेलवे वाले अच्छे होते हैं। पंद्रह मिनट में टिकट भी मिल गया और नहा भी लिया। इतने में राकेश शर्मा जी का फोन आ गया। वे स्टेशन पहुँच चुके थे। जिस प्लेटफार्म पर ट्रेन आने वाली थी, उसी प्लेटफार्म पर इत्मीनान से मिले।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग