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Showing posts from November, 2017

ऋषिकेश से दिल्ली काँवड़ियों के साथ-साथ

19 जुलाई 2017 आज का पूरा दिन हमारे पास था और हमें दिल्ली पहुँचने की कोई जल्दी नहीं थी। मैंने सोच लिया था कि आज अपनी काँवड़ यात्रा के दिनों को पूरी तरह जीऊँगा। मैं चार बार हरिद्वार से मेरठ और एक बार हरिद्वार से पुरा महादेव तक पैदल काँवड़ ला चुका हूँ। तो मैं भावनात्मक रूप से इस यात्रा से जुड़ा हुआ हूँ। आप अगर कभी भी काँवड़ नहीं लाये हैं तो समझ लीजिये कि इस यात्रा की खामियों और खूबियों को मैं आपसे बेहतर जानता हूँ। आज का समय न्यूज चैनलों का है और वे बदमाशों को काँवड़ियों का नाम देकर आपको दिखा देते हैं और आप मान लेते हैं कि काँवड़िये बदमाश होते हैं। मेरे लिये केवल पैदल और साइकिल यात्री ही काँवड़िये हैं; बाकी बाइक वाले, डाक काँवड़ वाले केवल उत्पाती लोग हैं। और इन्हीं लोगों के कारण पवित्र काँवड़ यात्रा अपमानित होती है। चूँकि हम भी बाइक पर ही थे, इसलिये इस श्रेणी में हम भी आसानी से आ सकते हैं, लेकिन हमारा काँवड़ यात्रा से कोई संबंध नहीं था। न हम गंगाजल लिये थे, न हमें किसी शिवमंदिर में जाना था और न ही हम अपनी यात्राओं के लिये सावन के मोहताज़ थे। हमारी बाइक पर साइलेंसर भी लगा था, सिर पर हेलमेट भी था और ब

पुस्तक-चर्चा: पग पग सनीचर

एक व्हाट्सएप घुमक्कड़ी ग्रुप है। और जैसा कि व्हाट्सएप के सभी ग्रुपों में होता है, इसमें भी देशभर के कुछ घुमक्कड़ मिलकर एक-दूसरे की टांग-खिंचाई में तल्लीन रहते थे। किसी जमाने में मैं भी इस ग्रुप का सदस्य था और दूसरों की खूब टांग खींचा करता था और जब दूसरा कोई मेरी खिंचाई कर देता, तो मैं ग्रुप छोड़कर भाग जाता था। तो ऐसे ही यह ग्रुप चल रहा था। चूँकि इसके सदस्य देशभर में रहते हैं तो कोई कहीं भी घूमने जाता, कंपनी मिल ही जाती थी। फिर इस ग्रुप में प्रवेश हुआ ललित शर्मा जी का। और उन्होंने नारा दिया - “कुछ अलग-सा करते हैं।” और अलग-सा करते-करते यह किताब बन गयी - पग पग सनीचर। इसमें उस ग्रुप के तीस सदस्यों के यात्रा-वृत्तांत व यात्रा-लेख हैं। यह संग्रह इसलिये भी खास है, क्योंकि दो-तीन लेखक ही इससे पहले ब्लॉग या समाचार-पत्रों में नियमित लिखते थे। बाकी ज्यादातर ने कभी भी सीरियसली नहीं लिखा। और इस किताब में सभी ने वाकई सीरियसली लिखा है। उम्मीद है कि इसके सभी लेखक आगे भी इसी तरह लिखते रहेंगे और हमें भविष्य में बहुत सारे यात्रा-वृत्तांत पढ़ने को मिलेंगे।

मेरी दूसरी किताब: हमसफ़र एवरेस्ट

जून 2016 में एवरेस्ट बेसकैंप की यात्रा से लौटने के बाद बारी थी इसके अनुभवों को लिखने की। अमूमन मैं यात्रा से लौटने के बाद उस यात्रा के वृत्तांत को ब्लॉग पर लिख देता हूँ, लेकिन इस बार ऐसा नहीं किया। इरादा था कि इसे पहले किताब के रूप में प्रकाशित करेंगे। लिखने का काम मार्च 2017 तक पूरा हुआ। अब बारी थी प्रकाशक ढूँढ़ने की। सबसे पहले याद आये हिंदयुग्म के संस्थापक शैलेश भारतवासी जी। पिछले साल जब मैं ‘लद्दाख में पैदल यात्राएँ’ लिख चुका था, तब भी शैलेश जी से ही संपर्क किया था। तब हिंदयुग्म नया-नया शुरू हुआ था और बुक पब्लिशिंग में ज्यादा आगे भी नहीं था। तब उन्होंने कहा था - “नीरज, अभी हमारा मार्केट बहुत छोटा-सा है। अच्छा होगा कि तुम किसी बड़े प्रकाशक से किताब प्रकाशित कराओ।” और ‘लद्दाख में पैदल यात्राएँ’ दस हज़ार रुपये देकर सेल्फ पब्लिश करानी पड़ी थी। तो इस बार भी शैलेश जी से ही सबसे पहले संपर्क किया। अब तक हिंदयुग्म एक बड़ा प्रकाशक बन चुका था और बाज़ार में अच्छी पकड़ भी हो चुकी थी। इनकी कई किताबें तो बिक्री के रिकार्ड तोड़ रही थीं।

फूलों की घाटी से वापसी और प्रेम फ़कीरा

17 जुलाई 2017 आज का दिन कहने को तो इस यात्रा का आख़िरी दिन था, लेकिन छुट्टियाँ अभी भी दो दिनों की बाकी थीं। तो सोचने लगे कि क्या किया जाये? एक दिन और कहाँ लगाया जाये? इसी सोच-विचार में मुझे उर्गम और कल्पेश्वर याद आये। दीप्ति से कहा - “चल, आज तुझे एक रमणीक स्थान पर ले चलता हूँ।” पेट भरकर नौ बजे के आसपास घांघरिया से वापस चल दिये। मौसम एकदम साफ था। कुछ सरदार घांघरिया की तरफ जा रहे थे। आपस में बात कर रहे थे - “हिमालय परबत इदरे ही है क्या?” दूसरे ने उत्तर दिया - “नहीं, मनाल्ली की तरफ है। इदर केवल हेमकुंड़ जी हैं।”

फूलों की घाटी के कुछ फोटो व जानकारी

फूलों की घाटी है ही इतनी खूबसूरत जगह कि मन नहीं भरता। आज कुछ और फोटो देखिये, लेकिन इससे पहले थोड़ा-बहुत पढ़ना भी पड़ेगा: बहुत सारे मित्र फूलों की घाटी के विषय में पूछताछ करते हैं। असल में अगस्त वहाँ जाने का सर्वोत्तम समय है। तो अगर आप भी अगस्त के महीने में फूलों की घाटी जाने का मन बना रहे हैं, तो यह आपका सर्वश्रेष्ठ निर्णय है। लेकिन अगस्त में नहीं जा पाये, तब भी कोई बात नहीं। सितंबर में ब्रह्मकमल के लिये जा सकते हैं। और जुलाई भी अच्छा समय है। बाकी समय अच्छा नहीं कहा जा सकता। तो कुछ बातें और भी बता देना उचित समझता हूँ: 1. जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से 20 किलोमीटर आगे और बद्रीनाथ से 30 किलोमीटर पीछे गोविंदघाट है। यहाँ से फूलों की घाटी का रास्ता जाता है। हरिद्वार और ऋषिकेश से गोविंदघाट तक बेहतरीन दो-लेन की सड़क बनी है। दूरी, समय और जाने के साधन के बारे में आप स्वयं निर्णय कर लेना।

पुस्तक-चर्चा: बादलों में बारूद

मज़ा आ गया। किताब का नाम देखने से ऐसा लग रहा है, जैसे कश्मीर का ज़िक्र हो। आप कवर पेज पलटोगे, लिखा मिलेगा - यात्रा-वृत्तांत। लेकिन अभी तक मुझे यही लग रहा था कि कश्मीर का यात्रा-वृत्तांत ही होगा। लेकिन जैसे ही ‘पुस्तक के बारे में’ पढ़ा, तो मज़ा आ गया। इसमें तो झारखंड़ के जंगलों से लेकर लद्दाख और सुंदरवन तक के नाम लिखे हैं। पहले सभी यात्राओं का थोड़ा-थोड़ा परिचय करा दूँ: 1. जंगलों की ओर झारखंड़ में छत्तीसगढ़ सीमा के एकदम पास गुमला जिले में बिशुनपुर के पास जंगलों की यात्रा का वर्णन है।

फूलों की घाटी

16 जुलाई 2017 आज का दिन तो बड़ा ही शानदार रहा। कैसे शानदार रहा? बताऊंगा धीरे-धीरे। बताता-बताता ही बताऊंगा। रात 2 बजे आँख खुली। बाहर बूंदों की आवाज़ आ रही थी। बारिश हो रही थी। सोचा कि सुबह तक मौसम अच्छा हो जाएगा। सो गया। फिर 6 बजे आँख खुली। बारिश अभी भी हो रही थी। उठकर दरवाजा खोलकर देखा। बादल और रिमझिम बारिश। इसके बावजूद भी यात्रियों का आना-जाना। कुछ यात्री नीचे गोविंदघाट भी जा रहे थे और कुछ ऊपर हेमकुंड भी जाने वाले थे। हमें किसी भी तरह की जल्दी नही थी। कल ही सोच लिया था कि बारिश में कहीं भी नही जाएंगे। न फूलों की घाटी और न गोविंदघाट। वापस दरवाजा लगाया और सो गया। आठ बजे आँख खुली। उतनी ही बारिश थी, जितनी दो घंटे पहले थी। लेकिन इस बार मैं नीचे चला गया और एक बाल्टी गर्म पानी को कह आया। साथ ही यह भी कह दिया कि आज भी हम यहीं रुकेंगे। होटल मालिक बड़ी ही विचित्र प्रकृति का है। आप कुछ भी कहें, वह आपका उत्साह ही बढ़ाएगा। मसलन आप बारिश में हेमकुंड जाना चाह रहे हैं, वह आपको जाने को कहेगा। और बारिश की वजह से नहीं जाना चाह रहे हैं, तो आपसे रुक जाने को कह देगा। तो मुझसे भी उसने कह दिया कि बारिश में नहीं

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब