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थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार

17 दिसंबर 2016
किराडू से साढ़े ग्यारह बजे चले। अगला लक्ष्य था मुनाबाव में भारत-पाक सीमा देखना। सड़क सिंगल है, लेकिन ट्रैफिक न होने के कारण कोई दिक्कत नहीं होती। कभी-कभार कोई ट्रक या कोई जीप सामने से आ जाती।
रामसर एक बड़ा गाँव है। अच्छी चहल-पहल थी।
गड़रा रोड़ से दो किलोमीटर पहले सड़क किनारे लगे एक सूचना-पट्ट पर निगाह गयी - “शहीद स्मारक लोको पायलट, 1965 भारत पाक युद्ध।” तुरंत बाइक रोकी और मुख्य सड़क से लगभग 100 मीटर दूर रेलवे लाइन के किनारे ले गये। यहाँ एक स्मारक बना है। गौरतलब है कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में कश्मीर से लेकर गुजरात तक लड़ाई छिड़ी हुई थी। इतनी लंबी सीमा में कभी भारतीय सेना पाकिस्तान के अंदर जाकर कब्जा कर लेती, तो कभी पाकिस्तानी सेना भारत के अंदर। मुनाबाव रेलवे स्टेशन पाकिस्तान के कब्जे में आ गया था। उसी दौरान बाड़मेर से मुनाबाव जाती एक ट्रेन पर 10 सितंबर की रात साढ़े दस बजे गड़रा रोड़ के पास पाकिस्तान ने निशाना साधा। इसके गार्ड़ और फायरमैन समेत कई कर्मचारी शहीद हो गये। थोड़ा आगे इंजीनियरिंग स्टाफ का शहीद स्मारक भी है।
गड़रा रोड़ पर शिव चौराहे के पास कई होटल हैं। भूख लग रही थी और आगे मुनाबाव में कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा, इसलिये यहीं भरपेट खाने के लिये रुक गये। जय भवानी भोजनालय में भोजन निहायत स्वादिष्ट था। प्रति थाली साठ-साठ रुपये लगे।
गड़रा सिटी पाकिस्तान में है और यहाँ से केवल सात किलोमीटर ही दूर है। बँटवारे से पहले उसी गड़रा सिटी के नाम पर यह गड़रा रोड़ स्टेशन बना। आज गड़रा सिटी का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। गूगल मैप के सैटेलाइट में देखने पर पता चलता है कि वह शहर अब केवल खंड़हर ही शेष है। जबकि भारत का गड़रा रोड़ इतना बड़ा हो गया है कि इसे गड़रा सिटी भी कहा जा सकता है।
गड़रा रोड़ से डेढ़ बजे चल दिये। यहाँ से मुनाबाव करीब चालीस किलोमीटर दूर है। इन चालीस किलोमीटर में हमें एक भी वाहन नहीं दिखायी दिया।
घंटे भर में मुनाबाव जा पहुँचे। बी.एस.एफ. का बैरियर लगा हुआ था। हमने बाइक खड़ी की और संतरी से आगे जाने के बारे में बात की। उसने बताया कि आज शनिवार है और भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली ट्रेन ‘थार एक्सप्रेस’ का दिन है, इसलिये हम आपको आगे नहीं जाने दे सकते। कुछ ही दूर उनके साहब खड़े थे। वे भी पास आ गये। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के रहने वाले थे। बड़े खुश हुए। कहने लगे - ‘आप किसी और दिन आते तो हम आपको सीमा तक जाने देते। सीमा यहाँ से केवल दो किलोमीटर ही दूर है। लेकिन आज नहीं जाने देंगे। बी.एस.एफ., इंटेलीजेंस समेत कई विभाग आज मुनाबाव में हैं। किसी और दिन आना सुबह सात से शाम पाँच के बीच - कोई मना नहीं करेगा।’
हम इस बात को बख़ूबी समझते थे। वापस मुड़ने का विचार कर रहे थे, तभी साहब ने कहा - ‘आप इतनी दूर से सीमा देखने आये हैं। हम आपकी निराशा समझते हैं। बगल में रेलवे स्टेशन है। आप वहाँ घूमकर आ जाओ। अभी थोड़ी देर पहले पाकिस्तान वाली ट्रेन आयी है। आपके लिये उसे देखना भी यादगार होगा।’
और क्या चाहिये हमें! दीप्ति दौड़कर सड़क और रेलवे लाइन के बीच में लगी रेलिंग के पास जा खड़ी हुई। फिर सभी स्टेशन में दाख़िल हुए। यहाँ तीन प्लेटफार्म हैं। एक प्लेटफार्म बाड़मेर से आने वाली पैसेंजर ट्रेन के लिये है। यह ट्रेन बाड़मेर से आती है और घंटे भर रुककर वापस बाड़मेर चली जाती है। बाकी दो प्लेटफार्म थार एक्सप्रेस के लिये हैं।
जोधपुर स्थित भगत की कोठी से शुक्रवार रात को भारतीय रेल की थार एक्सप्रेस चलना शुरू करती है। भगत की कोठी में यात्रियों की मामूली जाँच होती है। इसके लिये वहाँ विशेष प्लेटफार्म भी बना हुआ है। इसके बाद ट्रेन को मुनाबाव तक लाइन क्लियर मिलती है और ट्रेन रास्ते में कहीं भी नहीं रुकती। सुबह छह बजे के आसपास ट्रेन मुनाबाव आ जाती है। उधर कराची से भी प्रति शुक्रवार पाकिस्तान रेलवे की थार एक्सप्रेस चलती है और शनिवार की सुबह तक खोखरापार जीरो पॉइंट स्टेशन तक आ जाती है। खोखरापार जीरो पॉइंट पाकिस्तान का आख़िरी स्टेशन है। इधर मुनाबाव में सभी यात्रियों को ट्रेन से उतार दिया जाता है और ढंग से सामान समेत इमीग्रेशन जाँच होती है। जाँच होने के बाद यात्रियों को प्लेटफार्म के दूसरे हिस्से में बैठा दिया जाता है। ट्रेन पूरी तरह खाली हो जाती है।
उधर खोखरापार जीरो पॉइंट पर भी सभी यात्रियों की सघन जाँच होती है। जाँच के बाद उन्हें पाकिस्तान रेलवे की उसी ट्रेन में बैठा दिया जाता है। यह ट्रेन सीमा पार करती है और पाकिस्तान से भारत में प्रवेश कर जाती है। फिर यह मुनाबाव के तीसरे प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो जाती है। पाकिस्तान से आये सभी यात्री ट्रेन से उतरकर इमीग्रेशन चेकिंग के लिये चले जाते हैं। पाकिस्तान रेलवे की यह खाली ट्रेन सुबह जोधपुर से आये यात्रियों - जिनकी चेकिंग हो चुकी थी - को लेकर वापस पाकिस्तान चली जाती है। खोखरापार में पाकिस्तान उनकी इमीग्रेशन चेकिंग करता है और उसके बाद यात्री कराची चले जाते हैं। उधर भारत में मुनाबाव में पाकिस्तान से आये यात्री चेकिंग के बाद भारतीय रेलवे की ट्रेन में बैठकर जोधपुर की ओर चले जाते हैं।
छह महीने पाकिस्तान रेलवे की हरी ट्रेन मुनाबाव आती है और छह महीने भारतीय रेलवे की नीली ट्रेन खोखरापार जीरो पॉइंट जाती है।
जब हम मुनाबाव स्टेशन पहुँचे तो पाकिस्तान से आयी ट्रेन से सभी यात्री उतर चुके थे। इसी प्लेटफार्म के दूसरे भाग में जोधपुर से आये यात्री सारी चेकिंग से निपटकर इसमें बैठने को तैयार खड़े थे। स्टेशन पर विधिवत उदघोषणा हुई - “यात्रीगण कृपया ध्यान दें। खोखरापार की ओर जाने वाली थार एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर दो पर आ रही है।” पाकिस्तानी ट्रेन ने सीटी बजायी और खिसकने लगी और इसी प्लेटफार्म के दूसरे हिस्से में जाकर खड़ी हो गयी। यात्री इसमें बैठने लगे। कुछ ऊँचे पाजामे वाले यात्री दरवाजों पर भी बैठे। शायद वे पाकिस्तानी होंगे और अपने देश की ट्रेन देखकर ज्यादा उत्साहित हो गये होंगे। कुछ देर बाद फिर से उदघोषणा हुई - “खोखरापार की ओर जाने वाली थार एक्सप्रेस चलने को तैयार है।”
और पाकिस्तान रेलवे की हरी ट्रेन सीटी बजाती हुई खिसकने लगी - सीमा की ओर।
वापस बैरियर पर पहुँचे। हम तो खुश थे ही, साहब और भी ज्यादा खुश थे। धन्यवाद, चाय, नहीं, फिर आना, शनिवार नहीं, सात से पाँच ... जैसी बातें हुईं और हम दो बजकर पचास मिनट पर वापस चल दिये।
दो किलोमीटर बाड़मेर की तरफ़ चलने पर एक तिराहा है। तीसरी सड़क उत्तर में म्याजलार होते हुए जैसलमेर जाती है। इस सड़क का कोई भी यात्रा-वृत्तांत मुझे इंटरनेट पर नहीं मिला, इसलिये खासकर मैं बेहद उत्साहित था। थार का यह सुदूरवर्ती इलाका है और सड़क सीमा के लगभग समांतर ही है। पश्चिम में दस-पंद्रह किलोमीटर दूर सीमा है।
रेत के कई धोरे मिले - खूब बड़े-बड़े धोरे। उनके पास बसे गाँव। समूह में सिर से सिर भिड़ाये खड़ी भेड़ें। भेड़ों की यह आदत बड़ी अच्छी लगी। धूप से बचने का यह अनोखा तरीखा इन्होंने सीख लिया है। एक-दूसरे की परछाई में खड़े हो जाओ। बाकी शरीर भले ही धूप से न बच पाये, लेकिन प्रत्येक भेड़ का सिर छाँव में होता है।
कई बार रेत के टीले देखकर आश्चर्य होता। यह एकदम अनछुई रेत थी। इन पर कभी किसी पर्यटक के, घुमक्कड़ के पैर नहीं पड़े हैं। हम भी इन्हें दूर से ही निहारते रहे। सीमावर्ती और पर्यटकों से दूर का यह इलाका था, हम बाइक से उतरकर रेत पर मौजमस्ती करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे।
पाँच बजे म्याजलार पहुँचे। यह इस सड़क का सबसे बड़ा गाँव है। सुमित की इच्छा यहाँ रुकने की थी, जबकि मैं 50 किलोमीटर आगे खुडी में रुकना चाहता था। म्याजलार रुकते तो टैंट लगाना पड़ता और आज मैं टैंट नहीं लगाना चाहता था। तय हुआ कि म्याजलार में चाय पीकर आगे बढ़ेंगे।
चाय की एक दुकान के सामने बाइक रोक दी। म्याजलार वालों ने शायद कभी पर्यटक नहीं देखे होंगे, कभी राजस्थान से बाहर की बाइक नहीं देखी होगी और जींस पहने कोई लड़की भी नहीं देखी होगी। जरा ही देर में पूरा म्याजलार इकट्ठा हो गया। एक पुलिस वाला आया। पूछताछ करने लगा। आई-कार्ड़ देखे। और हिदायत दे दी कि बॉर्ड़र का इलाका है, चाय पीओ और नॉन-स्टॉप चलते जाओ। खुड़ी से पहले मत रुकना और कभी इधर मत आना। भीड़ के बीच हम खड़े थे। दीप्ति ने एक ही घूँट में चाय पीकर अपनी जीभ जला ली और फटाक से हेलमेट लगाकर काला शीशा बंद कर लिया। एक शराबी सुमित के पीछे पड़ गया - मुझे भी चाय पिलाओ। और म्याजलार के जो लोग पीछे रह गये थे या जिन्हें देर से हमारी खबर मिली - वे भी हाँफते हुए दौड़ते चले आ रहे थे।
बेहद असामान्य माहौल था। मैंने माहौल सामान्य बनाने को सुमित से पूछा - “किसने कहा था यहाँ चाय पीने को?”
दीप्ति और सुमित दोनों ने एक-साथ कहा - “तुमने।”
-“अच्छा, मैंने ही कहा था? और यहाँ रात रुकने की किसकी इच्छा थी?”
सुमित बोला - “जल्दी चाय निपटा और निकल यहाँ से।”
म्याजलार से दो किलोमीटर आगे निकलकर हम रुके। बड़ी राहत की साँस ली। तीनों के चेहरे कह रहे थे - “हे भगवान! क्या था यह सब?”


मरुभूमि में ऐसे भी घर होते हैं।

गड़रा रोड़ से दो किलोमीटर पहले



इसका मतलब भाप का इंजन ट्रेन को खींच रहा था और उस समय यहाँ मीटरगेज थी।


गड़रा रोड़ पर भोजन ... कभी जाओ तो यहाँ भोजन अवश्य करना।


गड़रा रोड़ का शिव चौराहा ... इसका यह नाम शिवजी भगवान के नाम पर नहीं है, बल्कि इसलिये है क्योंकि यहाँ से एक सड़क शिव नामक स्थान तक जाती है।

गड़रा रोड़ से दूरियाँ

मुनाबाव में बैरियर के पास


बेरी के बेर


मुनाबाव स्टेशन पर खड़ा थार एक्सप्रेस का पाकिस्तानी रेक यानी पाकिस्तानी ट्रेन।

मुझे इसमें दो ही अक्षर समझ आ रहे हैं ... वैसे तो प्यार के ढाई अक्षर होते हैं ... लेकिन ये दो अक्षर भी PR (प्यार) ही हैं।

मुनाबाव से जैसलमेर की ओर जाती सड़क







सभी का सिर छाँव में है, तो सभी भेड़ें समझ रही हैं कि वे छाँव में हैं।




म्याजलार जाना एक यादगार अनुभव बन गया ... ऐसे भी और वैसे भी ...







(प्रत्येक फोटो पर नंबर लिखे हैं। आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बतायें।)


थार बाइक यात्रा के सभी लेख:
1. थार बाइक यात्रा - भागमभाग
2. थार बाइक यात्रा - एकलिंगजी, हल्दीघाटी और जोधपुर
3. थार बाइक यात्रा: जोधपुर से बाड़मेर और नाकोड़ा जी
4. किराडू मंदिर - थार की शान
5. थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार
6. खुड़ी - जैसलमेर का उभरता पर्यटक स्थल
7. राष्ट्रीय मरु उद्यान - डेजर्ट नेशनल पार्क
8. धनाना: सम से आगे की दुनिया
9. धनाना में ऊँट-सवारी
10. कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव
11. लोद्रवा - थार में एक जैन तीर्थ
12. जैसलमेर से तनोट - एक नये रास्ते से
13. वुड़ फॉसिल पार्क, आकल, जैसलमेर
14. बाइक यात्रा: रामदेवरा - बीकानेर - राजगढ़ - दिल्ली




Comments

  1. 1,15,17 और 22
    म्याजलार के बारे में जानकार थोड़ा अजीब लगा

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  2. महाबार से सुबह निकले थे,तो किराड़ू पहुँचने तक माहौल थोड़ा उदासीन था,कुछ अच्छा नहीं लग रहा था,लेकिन किराड़ू आने के बाद माहौल थोड़ा बदला और शहीद स्मारक लोको स्टाफ मुनाबाओ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ सामान्य हो गया,अब मुझे अच्छा लग रहा था।
    शहीद स्मारक लोको स्टाफ रुकना बहुद अच्छा लगा,मुनाबाओ से आगे नहीं जाने की थोड़ी निराशा थी,लेकिन यह भी पाकिस्तानी थार एक्सप्रेस को देखने से दूर हो गई।
    मुनाबाओ से म्याजलार तक एकदम सुनसान वीराने मे मोटरसाइकिल चलाने मे आनंद आ रहा था।
    खुड़ी,साम,जैसलमेर मे तो सभी रुकते है, म्याजलार जैसे दुर्गम जगह कौन आता है, इसीलिए यही डेरा डालने का मन हो रहा था,लेकिन जब वहाँ चाय के लिए रुके तो हवाईयां उड़ गई,कम से कम 100 लोगो ने हमें घेर लिया,किसी की नज़र हमें एलियन समझ रही थी,तो किसी की नज़र आतंकवादी,यहाँ की चाय और माहौल जीवन भर याद रहेगा।
    अच्छा हुवा चाय पीते ही खिसक लिए,और रुकते तो शायद वो लोग हमें छू कर देखते...और आपस में बात करते,रे भाई ये सच में इंसान ही है ना...???

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    1. सुदूर में ऐसा ही अनपेक्षित होता है... हम प्रत्येक सुदूर-वासी को हिमालय-वासी समझ बैठे और नतीजा सामने था ... फिर भी, जो भी हुआ, बहुत अच्छा हुआ... लाइफ़-टाइम अचीवमेंट...

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  3. चित्र 14
    एकदम सही समय
    एकदम सही केप्शन

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    1. चित्र 14 में तो कोई कैप्शन ही नहीं है...

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    2. ओह्ह्ह...14 गलत लिख दिया।
      चित्र 13 है,मेरा पसन्दीदा।

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  4. Ha Ha Ha !
    Logo ne utsuktavash or suspected samajh aapko gher liya
    padkar bahut hansi aayi aur dukh bhi hua
    aapko taklif hui
    lekin main aapko bata doon ki ye areas bahut hi backward hai
    shayad aam logon se 50 saal pichhe
    lekin ye helpful hote hain aur guests ka jor shor se welcome karte hain
    yahan aaj bhi is area me dulhan bhi sasural ya peehar train me (one passenger)
    me jaati hai wahan mahila ka jeans me hona ek aascharya se kam nahi hai
    rail shaheed smarak and munabao station main bhi do baar gaya hun
    humare jodhpur mandal se saal me ek baar shahid mele me jo wahan lagata hai sammilit hone hum 150-200 log har saal (raiway union ke members) jate hain
    Main railway me Bhagat ko kothi station per hi service karta hun
    Neeraj Bhai so sorry ke aapko dikkat hui
    lekin mujhe aapse ye narajagi hai ki aap jodhpur se nikle aur mujse nahi mile
    aap mujshe milte to aapka attitude hum rajasthani logo ke prati positive hota
    next time aapko mujse milana hai my mobile no. 9414914104

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    1. धन्यवाद सर जी, आपका यह प्यारा-सा कमेंट बहुत अच्छा लगा ..
      लेकिन मैंने इस यात्रा में कहीं भी राजस्थानियों के प्रति निगेटिव एटीट्यूड़ नहीं दिखाया है... हम प्रत्येक क्षण को एंजोय कर रहे थे और यह सब इस यात्रा-वर्णन में भी दिख रहा होगा...
      आपसे परिचय नहीं था, इसलिये आपसे मिल नहीं पाया ... अगली बार कोशिश करूँगा...

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  5. Nice travel narration Neerajji. I like photo no 18,22,26,30,31,

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  6. मुझे तो सारे फोटो ही अच्छे लगे । ये पाकिस्तानी लोग भी हमारे जैसे है , बस 1947 में वो लकीर के उस पार चले गए । वैसे पहली बार मरुस्थल के किसी सुदूर क्षेत्र के बारे पढ़ा । अच्छा लगा ।

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    1. धन्यवाद पाण्डेय जी... इस सुंदर टिप्पणी के लिये...

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  7. मुझे तो सारे फोटो ही अच्छे लगे । ये पाकिस्तानी लोग भी हमारे जैसे है , बस 1947 में वो लकीर के उस पार चले गए । वैसे पहली बार मरुस्थल के किसी सुदूर क्षेत्र के बारे पढ़ा । अच्छा लगा ।

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  8. म्याजलार का वृत्तांत बहुत ही अच्छा लगा।
    18 न•फोटो मे पेडो के बाद कुछ तीन जगह पर दिख रहा है । क्या है ?
    मुझे अच्छा तो उसी के बारे मे पूछ लू

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    1. सबसे दाहिने वाला और बीच वाला, ये दोनों कुएँ लग रहे हैं। बायें वाला शायद कोई झाड़ी है।

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  9. 14 और 32, मरुभूमि के फोटो इतने सजीव हैं कि किसी एक या दो को चुनना शायद आप के लिए भी मुश्किल होगा। इतने शानदार फोटो के लिए बधाई ।

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  10. कभी इधर मत आना ????
    क्या मतलब हम भारतीय हैं सीमा के ईलाकों में भी नही जा सकते क्या ???
    खैर वैसे भी आपकी यात्रा तो ज्ञानवर्धक होती है

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    1. पाकिस्तान से लगती सीमा के पास जाना थोड़ा मुश्किल इसलिये होता है क्योंकि तस्कर ताक में रहते हैं - बॉर्डर पार करने के लिये। इसलिये चौकसी ज्यादा रहती है।

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  11. 1, 21 and 13 ki photo n caption dono hi accha laga....

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  12. एक बेहद रोमांचक यात्रा रहा। एक तरफ जहां दूर दराज के बीहड़ क्षेत्र में खतरनाक यात्रा रहा वहीं दूसरी तरफ सीमा पर भारतीय रेल और पाकिस्तान रेलवे भी देखने समझने को मिल गया। एक तरफ जहां खूबसूरत रेगिस्तान मिले, वहीं दूसरी तरफ म्याजलार वालों की अजनबी दुनिया। इस मुनाबाव क्षेत्र की यह आप की तीसरी यात्रा है। अटारी वाली समझौता एक्सप्रेस और सियालदाह वाली मैत्री एक्सप्रेस की तरफ भी कभी नंबर लगना चाहिए।

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    1. धन्यवाद सर जी... बाकी दोनों ट्रेनें भी देखूँगा जल्द ही...

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  13. मयाजलार में ऐसा कया था जो पुलिस वाला कह रहा था कि दुबारा मत आना।

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  14. शानदार नीरज भाई, मैंने लगभग आपके सारे यात्रा वृतान्त पढ़े है, मैं बाड़मेर के एक गांव का हूँ तो मुझे थोड़ा अजीब लगा कि आपको थार में असुविधा हुई. फेसबुक पर तो आपसे मैं मिल चुका हूँ,, आपकी मेरा पूर्वोत्तर, एवरेस्ट मुसाफिर आदि किताबें पढ़ चुका हूँ, बाड़मेर रेगिस्तान का निवासी व पहाड़ों में पढ़ा हूँ, टिहरी गढ़वाल एस आर टी परिसर बादशाहीथौल में पढ़ा हूं तो पहाड़ो को मैं दूसरा घर मानता हूँ ,अगली बाड़मेर आओ तो फेसबुक पर इन्फर्म जरूर करना, www.facebook.com/naval.janni Naval Jani नाम से है, 2005 के बाद मैं पहाड़ो की तरफ नहीं गया ,जाना चाहता हूँ दीपावली से होली के बीच मौसम में कोई टूर पहाड़ों का हो तो बताना, अवश्य ,, 👌

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब