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डायरी के पन्ने-29

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं।

1. फिल्म ‘पीके’ देखी। फिल्म तो अच्छी है, अच्छा सन्देश देती है लेकिन कुछ चीजें हैं जो अवश्य विवादास्पद हैं। मुझे जो सबसे ज्यादा आहत किया, वो दृश्य था जब पीके ‘शिवजी’ को बाथरूम में बन्द कर देता है और इसके बाद शिवजी जान बचाकर भागते हैं। दूसरी बात कि फिल्म कहीं न कहीं इस्लाम को बढावा देती महसूस हुई। मसलन बार-बार पीके का कहना कि शरीर पर धर्म का ठप्पा। इससे कहीं न कहीं यह सन्देश जाता है कि जो धार्मिक हैं, उनके शरीर पर ठप्पा होना चाहिये, अन्यथा वे धार्मिक नहीं। गौरतलब है कि मुसलमानों के शरीर पर धर्म का ठप्पा लगा होता है।
बाकी तो एक शानदार फिल्म है ही। दो भगवान होते हैं- एक, जिसने हमें बनाया और दूसरा, जिसे हमने बनाया। इसी आधार पर जो बुराईयां समाज में व्याप्त हैं, वही सब इस फिल्म में दिखाया गया है।

2. ब्लॉग का जो टैम्पलेट बदला था, उसके बारे में बहुत से सुझाव आये। लगभग सभी पर अमल किया और ब्लॉग लगातार ‘यूजर-फ्रैण्डली’ बनता चला गया। ज्यादातर शिकायत रंगों को लेकर आई। हैडर का रंग जो पहले हरा था, एक शिकायत के बाद हल्के नीले रंग का कर दिया। लिंक का रंग पहले गहरा लाल था, एक शिकायत आई और इसे गहरा नीला कर दिया, दूसरी शिकायत आई और यह हल्का भूरा हो गया।
जोधपुर के एक पाठक हैं- सेमी-ब्लाइण्ड हैं, उम्रदराज भी हैं। उन्होंने फोन पर ही टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि एक स्वस्थ आदमी की तुलना में सेमी-ब्लाइण्ड को पढने में काफी समस्याएं होती हैं, कम्प्यूटर पर पढने में भी। रंगों का ज्यादातर चुनाव उन्होंने ही किया। संयोग से जब भी उनका फोन आता, मैं ऑनलाइन ही बैठा रहता। वे उधर से कुछ बताते, इधर मैं झट से उसे ठीक कर देता। उन्होंने कहा कि पोस्ट में दो पैराग्राफ के बीच में कुछ स्पेस होना चाहिये, एक बार ‘एण्टर’ मार दिया करो। गौरतलब है कि पुराने टैम्पलेट में दो पैरा के बीच में स्वतः ही थोडा सा स्पेस आ जाया करता था लेकिन इस नये टैम्पलेट में नहीं आता। यह मुझे भी अच्छा नहीं लगता। इसका इलाज यही है कि हर बार पैरा बदलते ही एण्टर मार दिया करूं।
लेकिन उधर मैं यह भी चाहता हूं कि ब्लॉग की सभी पोस्टों में साम्य बना रहे। लिखने का जो पैटर्न पहले से चला आ रहा है, वो आगे भी जारी रहे। कुछ बदला जाये तो सभी पोस्टों में बदला जाये। इसलिये पैरा के बीच में स्पेस देने के लिये मुझे हर पोस्ट पर जाना होगा। 600 से भी ज्यादा पोस्ट हैं, बडा समयसाध्य कार्य है। इसलिये यह पैरा के बीच में जो स्पेस की योजना बनी थी, उसे रद्द कर देना पडा। दूसरी बात कि देर-सवेर स्पेस देने का कोई न कोई ऑटोमैटिक तरीका मुझे मिल ही जायेगा। जब उस तरीके को लागू करूंगा तो वह पूरे ब्लॉग पर लागू होगा। उस समय ये ‘एण्टर’ वाले पैराग्राफ भद्दे लगेंगे। यहां और ज्यादा स्पेस आ जायेगा। तब मुझे पुनः प्रत्येक पोस्ट पर जाकर एक-एक करके सभी से ‘एण्टर’ हटाने पडेंगे। इसलिये फिलहाल जैसा भी पैरा है, उसे वैसा ही रहने देते हैं।

3. पिछले दिनों अंकुर गुप्ता मिलने आया। हम दोनों साथ ही पढे हैं। मैं इधर नौकरी करने लगा और अंकुर बी-टेक करने के बाद रेलवे में सेक्शन इंजीनियर बन गया। गाजियाबाद में पोस्टिंग है। कई दिन पहले ही बता दिया था कि वो रविवार को दिल्ली आयेगा तो मेरे पास भी आयेगा। मैंने बता दिया कि किस तरह आना है। रविवार को मेरी नाइट ड्यूटी थी, फिर भी मैं दिन में जागा रहा कि कब अंकुर आ जाये। वो नहीं आया। बाद में मैं सो गया, फोन पर बात हमने की नहीं।
अगले दिन सोमवार को दिन में जब मैं सो रहा था तो उसका फोन आया। मेरा फोन साइलेंट था, पता नहीं चला। बाद में जब उठा, उसे कॉल की तो उसने बताया कि वो अभी पुरानी दिल्ली स्टेशन पर है, अब मेरे यहां आना चाहता है। मैंने हामी भर दी और पुनः सो गया। आंख खुली दो घण्टे बाद। अंकुर की 35 मिस्ड कॉल। फोन किया तो जाहिर है कि वो गुस्से में ही होगा। बोला कि वो हमारे क्वार्टर के मेन गेट पर आ गया था, क्वार्टर नम्बर पता नहीं था, इसीलिये फोन कर रहा था। आखिरकार घण्टे भर तक कोशिश करने के बाद वापस चला गया। चार बातें और सुनाई। आखिरकार नहीं आया और गाजियाबाद चला गया।
ऐसा मेरे साथ अक्सर होता रहता है। जो भी यार-दोस्त होते हैं, उनके लिये फुरसत का दिन होता है रविवार; जबकि मेरे लिये रविवार होता है नाइट ड्यूटी करके दिन में सोने का दिन। मैं ज्यादातर मोबाइल साइलेंट करके सोता हूं। तो अगर कभी किसी से मिलने का वादा किया भी हो तो रात भर जगने के बाद सब भूल जाता हूं। इसी तरह तकरीबन एक साल से फरीदाबाद के सहदेव दलाल भी मिलने की कोशिश करते रहे लेकिन मिलना नहीं हो पाया। एक बार गैर-रविवार को बोले कि भाई, कुछ भी हो, आज तो मिलना ही है। मैं संयोग से तब दिन की ड्यूटी में था। कह दिया कि आ जाओ। जब तक ड्यूटी समाप्त हुई, दलाल साहब भी शास्त्री पार्क आ गये। फिर तो शाम तक गपशप होती रही।
पता नहीं कुछ लोगों की याददाश्त गजब की क्यों होती है? दलाल साहब की याददाश्त भी ऐसी ही है। पुरानी बातें जो मैं लिखकर भूल गया, सब बताने लगे। मुश्किल तो तब होती जब वे पूछते कि आपने ऐसा क्यों लिखा था? ऐसा क्या हुआ था? ऐसा सही नहीं हुआ, ऐसा गलत हुआ। मुझसे स्पष्टीकरण मांगते, तो मैं सोचने लगता कि क्या मैंने कभी ऐसा भी कुछ लिखा था? कई बार याद आ जाता, कई बार याद नहीं आता।
कहने लगे कि तुम्हारी त्रियुण्ड यात्रा को पढकर पिछले दिनों मैं भी त्रियुण्ड गया था। लेकिन आपने जो उसे बडा खतरनाक और दुर्गम ट्रेक लिखा है, वास्तव में ऐसा नहीं है। मैंने समझाया कि त्रियुण्ड यात्रा मेरी जिन्दगी की पहली ट्रेकिंग थी। पहली बार बर्फ मैंने इसी ट्रेक में देखी थी। वो छह साल पुराना लेख है, उसे आज के साथ जोडकर मत देखो। त्रियुण्ड से आगे जो बर्फ के विशाल पहाड दिखते हैं, उनमें इन्द्रहार दर्रा भी है। मैं आज इन्द्रहार दर्रा आसानी से पार कर सकता हूं और इसे कठिन भी नहीं बताऊंगा। लेकिन दलाल साहब को बात फिर भी समझ नहीं आई। कई बार ऐसा ही कहा कि तुमने उसे खतरनाक और दुर्गम बताया था, जबकि ऐसा नहीं है। आखिरकार मुझे कहना पडा कि ठीक है, वो दुर्गम है। आपने उसे कर लिया, अच्छी बात है। अब भविष्य में उससे भी आगे बढिये।
उनका एक ब्लॉग भी बनाया लेकिन अभी तक उन्होंने इसमें कुछ भी लिखना शुरू नहीं किया है। गुस्सा आता है जब मेहनत करके किसी का ब्लॉग बनाओ और वो इसकी तरफ देखता तक नहीं। एक और मजेदार बात उन्होंने बताई कि वे ‘फोटोग्राफी चर्चा’ के लिये कुछ फोटो भेजना चाहते हैं लेकिन इसलिये नहीं भेजते कि उन्हें लगता है कि मैं उनकी बेइज्जती कर दूंगा, जैसा कि दूसरे फोटो पर करता हूं। मैंने समझाया कि अगर आप बेइज्जती के डर से अपने फोटो को अपने पास ही रखेंगे, किसी को दिखायेंगे नहीं तो आगे कैसे बढेंगे? आप फोटो भेजिये, जिसे आप बेइज्जती कह रहे हैं, वास्तव में वो बेइज्जती नहीं है।
ऐसा दूसरे मित्र भी सोचते होंगे कि फोटो भेज दी और नीरज ने कुछ कह दिया तो इज्जत खराब हो जायेगी। शायद इसी वजह से इस बार सिर्फ एक ही फोटो चर्चा के लिये आया है। चलो, कोई बात नहीं। मत भेजो, मेरे स्वयं के पास काफी फोटो हैं चर्चा करने के लिये।

4. गणतन्त्र दिवस पर पूरी परेड की लाइव कवरेज टीवी पर देखी। एक बार तो हास्यास्पद भी लगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने ऐसी चीजों की परेड कराई जा रही है जो उनके यहां वर्षों पहले एक्सपायर हो चुकी हैं। अब उनके पास ऐसे ऐसे हथियार हैं कि हम कल्पना तक नहीं कर सकते। दूसरी बात कि हमारे ज्यादातर हथियार रूस निर्मित हैं जो अमेरिका का सबसे बडा प्रतिद्वन्दी है। सोच तो रहा होगा ओबामा कि अजीब लोग हैं, मेरे सामने रूस के हथियारों की परेड करा रहे हैं। लेकिन कुछ हथियार स्वदेशी भी थे। गणतन्त्र दिवस परेड किसी ओबामा के लिये नहीं कराई जाती बल्कि हमारे स्वयं के लिये होती है।
सबसे अच्छा तब लगता था जब राजपथ पर हेलीकॉप्टर व लडाकू विमान उडते थे और एक मिनट बाद ही वे शास्त्री पार्क पहुंच जाते थे। पहले टीवी में देखते और फिर बालकनी में जा खडे होते।

5. ‘बिग बॉस’ समाप्त होने वाला है। यह कार्यक्रम हम तीनों को इतना पसन्द है कि रात नौ बजे सब कुछ छोडकर ‘कलर्स’ चैनल लग जाता है। नौ बजे तक हम खाना-पीना भी समाप्त कर लेते हैं या फिर खाना बनाकर टीवी के सामने खाने बैठ जाते हैं। पहले मैं इस कार्यक्रम को देखता था तो लडाई-झगडे देखकर कुछ न समझकर चैनल बदल लिया करता था लेकिन इस बार इसे पहले ही दिन से देखना शुरू किया। सब समझ में आने लगा।
यह असल में एक गेम शॉ है। जिसमें कुछ प्रतिभागी होते हैं, उन्हें आखिर तक घर में टिकना होता है। हर सप्ताह कोई न कोई घर से बेघर किया जाता है। घर में रहने की कठोर शर्तें होती हैं, रोज कुछ ‘टास्क’ पूरे करने होते हैं जिनका प्रत्येक सदस्य पर कुछ न कुछ असर पडता है- किसी पर सकारात्मक, किसी पर नकारात्मक।
इसे इस तरह समझा जा सकता है कि मान लो हम कोई वीडियो गेम खेल रहे हैं। गेम में एक हीरो है, जिसे हम कंट्रोल कर रहे हैं। हीरो को दुश्मनों से भिडना होता है, उन्हें मारना होता है, कुछ पॉइंट हासिल करने होते हैं लेकिन अक्सर हीरो मर भी जाता है। कभी-कभार ही ऐसा होता है कि हीरो गेम के आखिर तक पहुंचने में कामयाब हो पाता है। ठीक इसी तरह यहां कोई ‘बिग बॉस’ है जो घर के पात्रों को अपनी उंगली पर नचाता है। टास्क देता है, किसी को कम अंक मिलते हैं, किसी को ज्यादा। इससे किसी पर बेघर हो जाने का खतरा बढ जाता है, कोई सुरक्षित हो जाता है। एक पात्र द्वारा लिया गया कोई फैसला दूसरे पात्र पर भारी आफत डाल सकता है। ऐसे में दोस्ती होना, दुश्मनी होना, प्यार होना, गाली-गलौच होना साधारण है। लेकिन फिर भी प्रत्येक पात्र अपनी तरफ से ‘गेम’ खेलता है, अपनी चालें चलता है। यही सब देखना मजेदार होता है कि कौन क्या चाल चल रहा है, उस चाल का क्या नतीजा निकल रहा है। जैसे कि पिछले दिनों जब ऐजाज का घर में प्रवेश हुआ तो सब पुराने सदस्य इस नये को देखकर परेशान हो गये क्योंकि सबको पता था कि ऐजाज आखिर तक घर में बने रहने का माद्दा रखता है। सब कानाफूसी करते रहे कि इस आफत को कैसे टालें? आखिरकार अली ने अपना ‘माइंडगेम’ खेला। बातों बातों में ऐजाज को इतना उत्तेजित व क्रोधित कर दिया कि उसे अली पर हाथ उठाना पड गया। यहां किसी पर हाथ उठाने की सख्त मनाही है। आखिरकार ‘बिग बॉस’ ने फैसला लिया कि ऐजाज को हिंसा करने की वजह से बेघर कर दिया जाये। सभी यही चाहते थे कि ऐजाज बाहर हो जाये। कुल मिलाकर यही सब देखना मजेदार होता है।

6. एक बात मुझे बहुत आहत करती है कि ज्यादातर मित्र चाहते हैं कि मैं घुमक्कडी बन्द कर दूं। कहते हैं कि शादी होते ही घुमक्कडी बन्द हो जायेगी। फिर नून-तेल का भाव पता चलेगा। साल में एक बार भी घर से निकलकर दिखा दो तो माने। मान लो, शादी हो गई, तब भी घुमक्कडी उतनी ही जारी रही तो आप क्या कहोगे? कि बच्चे हो जाने दो, फिर पता चलेगा? यह सब उन लोगों द्वारा कहा जाता है जो स्वयं की जिन्दगी से परेशान हैं। वे चाहते हैं कि हम तो परेशान हैं ही, दूसरा हंसता-खेलता इंसान भी हमारी ही तरह परेशान रहे।
आप कितनी भी ‘दुआएं’ देते रहो मुझे, लेकिन जब तक शारीरिक रूप से सही-सलामत हूं, कम से कम तब तक तो घुमक्कडी बन्द होने वाली नहीं है।

7. आशीष गुटगुटिया जी ने पूछा- “जांस्कर में आपने व्हाइट वाटर राफ्टिंग क्यों नहीं की?”
आशीष सर, जांस्कर में राफ्टिंग केवल निम्मू के पास होती है। निम्मू अर्थात वो स्थान जहां जांस्कर नदी सिन्धु नदी में मिल जाती है। जहां जांस्कर नदी समाप्त हो जाती है। पहली बात तो यह है कि मुझे राफ्टिंग करने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं होती। दूसरी बात ये कि हम निम्मू के आसपास ट्रेकिंग नहीं कर रहे थे। बल्कि वहां से सैंकडों किलोमीटर दूर उस इलाके में थे जहां से जांस्कर नदी का उदगम होता है। उदगम के पास राफ्टिंग नहीं होती। यह ठीक वही बात हुई कि मैं दिल्ली से गाजियाबाद जाऊं और आप कहें कि तुम यूपी आये लेकिन बनारस क्यों नहीं गये?

8. कुछ बात विज्ञापनों की। काफी मित्र पूछते हैं कि गूगल एडसैंस से कितनी आमदनी हो रही है। वास्तव में अच्छी आमदनी हो रही है, मेरी उम्मीद से काफी ज्यादा है। लेकिन अभी तक सब आमदनी आंकडों में ही हो रही है। असल में जब भी हमारे एडसैंस खाते में सौ डॉलर इकट्ठे हो जाते हैं, तो गूगल हमारे घर पर चेक भेजता है। लेकिन सौ डॉलर का चेक भेजने से पहले वह डाक के माध्यम से एक पासवर्ड भेजता है। अभी तक वो पासवर्ड मेरे पास नहीं पहुंचा है। गूगल ने अपने यहां से भेज दिया होगा, रास्ते में कहीं होगा।
वैसे बता दूं कि जनवरी महीने में कुल मिलाकर लगभग 60 डॉलर यानी लगभग 3700 रुपये मेरे एडसैंस खाते में आ चुके हैं। जिनमें से लगभग 43 डॉलर रेलवे टाइम टेबल वाले ब्लॉग से आये हैं, शेष 17 डॉलर मुसाफिर हूं यारों से। आमदनी बढाने की कई तकनीकें भी हैं लेकिन मैंने अभी तक कोई भी तकनीक लागू नहीं की है। सिर्फ एडसैंस कोड अपने यहां लगा भर दिया है। अगर मैं उन तकनीकों को भी लागू करने लगा तो एडसैंस से आमदनी में और भी बढोत्तरी होगी।
तरुण भाई ने अमेजन एफिलियेट प्रोग्राम के बारे में बताया था। अमेजन के अलावा अन्य कई कम्पनियां भी इस तरह के प्रोग्राम आयोजित करती हैं। इसके तहत हमें अपने ब्लॉग में इन कम्पनियों के विज्ञापन लगाने होते हैं। जो कोई पाठक उन विज्ञापनों पर क्लिक करके वहां से कुछ खरीदेगा तो ये कम्पनियां हमें कुछ बोनस देंगी। मैंने अमेजन के कुछ प्रोडक्ट अपने यहां लगाये हैं। इसके लिये अलग से एक पेज बनाया है जहां यात्राओं से सम्बन्धित चीजें जैसे पुस्तकें, कैमरा, ट्राईपॉड, टैंट, स्लीपिंग बैग, जूते आदि खरीदे जा सकते हैं। वैसे तो अमेजन की मूल साइट पर आप स्लीपिंग बैग सर्च करोगे तो बहुत सारे स्लीपिंग बैग आ जायेंगे, फिर आप कन्फ्यूज हो जाओगे कि कौन सा खरीदें और कौन सा नहीं। मैंने ज्यादातर का अध्ययन किया है और कुछ चुनिन्दा प्रोडक्टों को ही अपने इस पेज पर लगाया है।
इसके अलावा अमेजन का एक सर्च विकल्प भी अपने यहां लगाया है। अगर आप यहां से सर्च करके अमेजन से कुछ खरीदोगे, तब भी मुझे कुछ बोनस मिलेगा। ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार बढता जा रहा है। अगर आपने अभी तक कभी ऑनलाइन शॉपिंग नहीं की है तो अब शुरू कर दीजिये। अगर शुरू कर चुके हैं तो इस ब्लॉग के माध्यम से खरीदेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। आपके तो उतने ही पैसे खर्च होंगे- सीधे अमेजन की साइट से खरीदें या इस ब्लॉग के माध्यम से।
अमेजन के अलावा दूसरी कम्पनियां भी हैं जो ऑनलाइन शॉपिंग कराती हैं जैसे फ्लिपकार्ट, स्नैपडील आदि। सभी की अपनी-अपनी पॉलिसी होती है, डिस्काउण्ट होते हैं, तौर-तरीके होते हैं। यदि आपको अमेजन पसन्द नहीं है तो मुझे बताइये, दूसरी कम्पनियों के भी एफिलियेट प्रोग्राम होते हैं। अभी हाल ही में फ्लिपकार्ट का एफिलियेट भी जॉइन किया है।
ताजा अपडेट: अभी पिछले दिनों किसी मित्र ने इस ब्लॉग के माध्यम से अमेजन पर क्लिक किया और 230 रुपये की खरीदारी की जिसके ऐवज में मुझे 10% यानी 23 रुपये मिले। चलिये खैर, शुरूआत तो हुई।
बहुत से मित्रों को ऑनलाइन शॉपिंग की जानकारी नहीं है या फिर कुछ सन्देह है। चलिये, थोडी सी जानकारी दे देते हैं और सन्देह दूर कर देते हैं। मैंने ऑनलाइन शॉपिंग की शुरूआत की थी होमशॉप-18 से। पहला कैमरा मैंने लगभग छह साल पहले वहीं से मंगाया था। मुझे कैमरों की कोई जानकारी नहीं थी। एक कैमरा जो सबसे सस्ता था, वही मंगा लिया। कैमरे ने ठीक साथ निभाया।
आजकल मैं बहुत ज्यादा ऑनलाइन शॉपिंग करता हूं। होमशॉप के अलावा स्नैपडील है, फ्लिपकार्ट है, अमेजन है। सितम्बर में मैंने जो लगभग 20000 का लैपटॉप लिया था, अमेजन से मंगाया था। एक नम्बर का लैपटॉप है। इससे भी पहले मैंने 32000 के डेस्कटॉप का ऑर्डर दिया था। लेकिन जब चार दिन बाद डेस्कटॉप घर पर आया तो मेरा बजट ढीला हो गया, मैंने मना कर दिया। बिना कोई प्रतिकार किये अमेजन वाले इसे वापस ले गये। इसके अलावा एक बार जूते मंगाये थे। पहने तो वे काफी टाइट थे। तुरन्त नेट खोलकर इन्हें बदलने को कह दिया। कुछ ही दिन बाद बडे जूते आ गये। वे छोटे जूते वापस ले गये और इसके कोई अतिरिक्त पैसे भी नहीं लगे। किताबें तो मैं मंगाता ही रहता हूं। हम जब किसी कम्पनी से ऑनलाइन मंगाते रहते हैं तो समय-समय पर गिफ्ट भी आ जाते हैं, अचानक, बिना किसी चार्ज के। जैसे एक बार होमशॉप ने कप-प्लेट का सेट भेजा था फ्री में। अभी पिछले दिनों अमेजन से रजाई मंगाई तो इसके साथ एक बडा सा कप भी आया। एक बार कैलेण्डर भेजा था, बडा शानदार कैलेण्डर था। मोबाइल अमेजन से मंगाया माइक्रोमैक्स का एण्ड्रॉयड वन।


9. टिप्पणियां तो आप करोगे नहीं। कई बार कह चुका हूं कि टिप्पणियों से ऊर्जा मिलती है। खैर, कोई बात नहीं। मत करो टिप्पणियां। बस, कुछ भी ऑनलाइन खरीदो तो इस ब्लॉग के माध्यम से खरीदना। अमेजन और फ्लिपकार्ट दोनों के सर्च लिंक लगा रखे हैं। अमेजन वाले ज्यादातर 10% का कमीशन देते हैं, कपडों-लत्तों और जूते-चप्पलों पर 15% का। फ्लिपकार्ट का भी कुछ करीब-करीब वैसा ही सिस्टम है। ऊपर बटन भी हैं- ’अमेजन पर खरीदें’, ‘फ्लिपकार्ट पर खरीदें’।
अमेजन का सर्च लिंक यह रहा।
फ्लिपकार्ट का सर्च लिंक यह रहा।

फोटोग्राफी चर्चा- 1    ..........    फोटोग्राफी चर्चा- 2




Comments

  1. आप की ङायरी से बहोत सिखने को
    मिलता है

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  2. हुजूर खरीदता मै भी हूँ फ्लिप्कार्ट से. अब यहीं से ले लिया करूँगा. एक फोटो भी भेजा है. करिए बेइज्जती... अपन बेइज्जती प्रूफ हैं :D

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    Replies
    1. धन्यवाद मिश्रा जी। आपका फोटो मिल गया है, दो सप्ताह बाद करते हैं ‘बेइज्जती’।

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  3. Thank you...kabhi udher gaya nahi.isliye meri knowledge limited hai..jo bhi jana internet ke through hi jana..thank u for correcting me.

    Aapka mitra
    Ashish Gutgutia

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  4. Online shopping karenge to sarvice kaha par milegi . exp. TV kharidta hu to folt honga to . please help .

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    1. सर्विस वो कंपनी देगी जिसका सामान है ..... अगर सोनी का टीवी लिया तो सोनी के सर्विस सेंटर से मिलेगी

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    2. चन्द्रकान्त दीक्षित ने ठीक बताया है कि सर्विस वो कम्पनी देगी जिसका सामान है।

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  5. भरपूर जानकारी वाला जानदार डायरी ,सामान्य ज्ञान से लेकर फिल्म और विज्ञापन तक टीवी शो से लेकर घुमक्कडी तक । सब कुछ बढ़िया लगा।

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  6. भाई माफ़ करना टिप्पणी करने में आलसी हूँ पर पढता जरूर हूँ आपका ब्लॉग ......अच्छा लगता है

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  7. फोटो भेज़ने का तरीका क्या है हम भी फोटो भेज़ना चाहते है

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    1. नीचे लिंक लगा है, उस पर क्लिक करके फोटो भेजने का तरीका जान सकते हैं।
      http://neerajjaatji.blogspot.in/2015/01/photography.html

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  8. आप की ङायरी से बहोत सिखने को
    मिलता है

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  9. आप की ङायरी से बहोत सिखने को
    मिलता है

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  10. नीरज भाई....
    आपके डायरी के पन्ने बहुत ज्ञान वर्धक लगे.... एडसेंस के बारे में काफी कुछ जानने को मिला ...

    धन्यवाद
    सफ़र हैं सुहाना
    New Post on Blog
    http://safarhainsuhana.blogspot.in/2015/01/train-journey-agra-to-jalpaiguriwest.html

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  11. Neeraj bhai i read ur every blog nd ur big fan.
    Maza aa jata h aapka blog padh k.
    Thank u nd all d best.
    Orr jab b kuch purchase karege to aap k blog page se hi .

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  12. 6. एक बात मुझे बहुत आहत करती है कि ज्यादातर मित्र चाहते हैं कि मैं घुमक्कडी बन्द कर दूं। कहते हैं कि शादी होते ही घुमक्कडी बन्द हो जायेगी। फिर नून-तेल का भाव पता चलेगा। साल में एक बार भी घर से निकलकर दिखा दो तो माने। मान लो, शादी हो गई, तब भी घुमक्कडी उतनी ही जारी रही तो आप क्या कहोगे? कि बच्चे हो जाने दो, फिर पता चलेगा? यह सब उन लोगों द्वारा कहा जाता है जो स्वयं की जिन्दगी से परेशान हैं। वे चाहते हैं कि हम तो परेशान हैं ही, दूसरा हंसता-खेलता इंसान भी हमारी ही तरह परेशान रहे।
    ek dum sahi bat sir ji....................

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  13. नीरज जी,

    आपसे मिलने का एक मौका मिला था लेकिन बदकिस्मती से वो हाथ से निकल गया। स्‍पाइसजेट ने इन्दौर से दिल्ली विमान सेवा बंद कर दी है और एन वक्त पर सारी बुकिंग्स भी कैंसल कर दी, जिसकी वजह से मेरा पूरा प्लान ही चौपट हो गया। मैं, कविता और बच्चे सभी बहुत उत्साहित थे आपसे मिलने को लेकिन उफ्फ़.......खैर एक ना एक दिन आपसे मिलना तो होगा, मुझे पूरा विश्वास है।

    आपकी डायरी पढ़कर मन प्रफुल्लित हो जाता है। लोगों का ये कहना की विवाह के बाद साल में एक बार भी घुमक्कड़ी के लिए निकल नहीं पाओगे, सरासर गलत है, हम दो बच्चों के साथ भी साल में कम से कम दो बार तो मैनेज कर ही लेते हैं। और अगर जीवनसाथी भी घुमक्कड़ी पसंद करने की प्रवृत्ति वाली मिल गई तो फिर तो मौजा ही मौजा। जाट देवता भी घर परिवाल वाले हैं, क्या उन्होने शादी के बाद घुमक्कड़ी छोड़ दी? विशाल और सोनाली राठोड़ साथ में श्रीखंड जैसी कठिन यात्रा कर सकते हैं तो नीरज क्यों नहीं? हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

    मैं भी ओनलाईन शौपिंग करते रहता हूँ. अभी कल ही फ्लिपकार्ट को दो हज़ार का ओर्डर किया है. अगर ये पोस्ट मैं kal पढ़ लेता तो यहीं से क्लिक कर देता. अगर यहाँ से क्लिक करने से आपको फ़ायदा पहुंचता है तो हमें क्या परेशानी है। आखिर आपका ब्लॉग मुफ्त में ही तो पढ़ने को मिलता है.

    मैं तो आगे से इस ब्लॉग के एड से ही क्लिक करूंगा और मुसाफिर हूँ यारों के सभी पाठकों से भी अपील करता हूँ की वे भी ऐसा ही करें। अपना तो कोई नुकसान है नहीं तो नीरज जी का फ़ायदा हो जाए तो क्या परेशानी है।

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  14. वाह,बेहतरीन पोस्ट

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

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ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब