Skip to main content

मलाणा- नशेडियों का गांव

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
मलाणा समुद्र तल से 2685 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक काफी बडा गांव है। यहां आने से पहले मैं इसकी बडी इज्जत करता था लेकिन अब मेरे विचार पूरी तरह बदल गये हैं। मलाणा के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां प्राचीन काल से ही प्रजातन्त्र चलता आ रहा है। कहते हैं कि जब सिकन्दर भारत से वापस जाने लगा तो उसके सैनिक लम्बे समय से युद्ध करते-करते थक चुके थे। सिकन्दर के मरने पर या मरने से पहले कुछ सैनिक इधर आ गये और यहीं बस गये। इनकी भाषा भी आसपास के अन्य गांवों से बिल्कुल अलग है।
एक और कथा है कि जमलू ऋषि ने इस गांव की स्थापना की और रहन-सहन के नियम-कायदे बनाये। प्रजातन्त्र भी इन्हीं के द्वारा बनाया गया है। आप गूगल पर Malana या मलाणा या मलाना ढूंढो, आपको जितने भी लेख मिलेंगे, इस गांव की तारीफ करते हुए ही मिलेंगे। लेकिन मैं यहां की तारीफ कतई नहीं करूंगा। इसमें हिमालयी तहजीब बिल्कुल भी नहीं है। कश्मीर जो सुलग रहा है, वहां आप कश्मीरी आतंकवादियों से मिलोगे तो भी आपको मेहमान नवाजी देखने को मिलेगी लेकिन हिमाचल के कुल्लू जिले के इस दुर्गम गांव में मेहमान नवाजी नाम की कोई प्रथा दूर-दूर तक नहीं है। ग्रामीणों की निगाह केवल आपकी हरकतों पर रहेंगी और मामूली सी लापरवाही आपकी जेब पर भारी पड जायेगी।

कुल्लू के अन्य गांवों की तरह यहां भी घर लकडी के बनाये जाते हैं। गांव के बीच में जमलू का मन्दिर है। और भी कई दूसरे मन्दिर हैं। यहां गैर-मलाणियों को अछूत माना जाता है। उन्हें गांव में केवल निर्धारित पथ पर ही चलना होता है। यदि आपने किसी देवस्थान या घर को स्पर्श कर लिया तो आपकी खैर नहीं। पूरा गांव एक नम्बर का निकम्मा है। निकम्मों की जमात हर घर के सामने बैठी रहती है और आने-जाने वालों पर निगाह रखती है। आपके किसी इमारत को छूने भर से ही आप पर प्रथम दृश्ट्या 2500 रुपये का जुर्माना लग जायेगा। वो तो अच्छा है कि हर घर पर तख्ती टंगी है कि छूना मना है, छूने पर 2500 रुपये का जुर्माना लगेगा। जमलू मन्दिर के बाहर तो फोटो खींचने की भी मनाही लिखी दिखी।
यह छुआछूत की बुराई तो कुछ भी नहीं। असल बुराई तो कुछ और है। यहां चरस और अफीम की खेती होती है। चरस की कीमत बाजार में कितनी है, इसे हर मलाणी जानता है। इसे यहां मलाणा क्रीम कहते हैं। आपको कदम कदम पर टोका जायेगा कि क्रीम चाहिये क्या। यहां चरस उगाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। हालांकि मलाणा से बाहर ले जाने पर प्रतिबन्ध है। लेकिन मलाणा क्रीम आसानी से अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुंच जाती है। यहां की चरस अच्छी गुणवत्ता वाली मानी जाती है, इसलिये ज्यादा महंगी भी है।
अच्छी खासी खेती होती है और हर खेत में नशा ही उगाया जाता है। जिसके पास जमीन ज्यादा, उसकी आमदनी भी ज्यादा। लालच का आलम यह है कि अभी जिस खतरनाक रास्ते से हम आये हैं, जहां खडे होने की भी जगह नहीं मिलती है, वहां भी फुट फुट भर के खेत बना रखे हैं। हालांकि सरकार चरस की खेती को हतोत्साहित कर रही है और मलाणियों को फ्री में गेहूं आदि के बीज बांट रही है लेकिन कौन अपने लाखों के कारोबार को छोडकर गेहूं उगायेगा?
मलाणा से कुछ दूर एक और गांव है रसोल। पता नहीं चरस वहां भी पैदा होती है या नहीं। मुझे यकीन है कि होती होगी। मलाणी केवल रसोल में ही विवाह सम्बन्ध बनाते हैं और रसोल वाले केवल मलाणा में। हजारों सालों से ऐसा ही होता आ रहा है। आपस में ही शादी-ब्याह। निश्चित रूप से आनुवांशिक बीमारियां पैदा हो गई होंगी।
गांव के बाहर कुछ रेस्ट हाउस बने हैं, जो निःसन्देह मलाणियों के ही हैं। यहां कोल्ड ड्रिंक से लेकर भारतीय, चाईनीज, इटैलियन, कॉंटिनेंटल, ये, वो, सब तरह का खाना मिलता है। रुकने को कमरे भी। भारतीयों से ज्यादा विदेशी यहां आते हैं। 99 प्रतिशत लोग नशेडी होते हैं। चरस को देश से बाहर ले जाने का सारा काम भी विदेशियों पर ही है। इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं कसोल के इजराइली। कसोल पूरी तरह इजराइलियों की बस्ती है। जी हां, वही कसोल जो मणिकर्ण से तीन-चार किलोमीटर पहले पडता है। कसोल मलाणा क्रीम की मण्डी है।
मलाणा से मलाणा नाला ज्यादा दूर नहीं है। उस तरफ सडक है। गांव से सडक की दूरी करीब ढाई-तीन किलोमीटर है। ये ढाई-तीन किलोमीटर जबरदस्त चढाई भरे हैं। नशेडियों को यहां पहुंचने के लिये खूब पसीना बहाना पडता है लेकिन उसके बाद जो उन्हें मिलता है, वो उनके लिये ज्यादा कीमती है। मलाणा नशेडियों का मक्का है। ये नशेडी जब मलाणा घूमकर वापस लौटते हैं तो इसके गुण तो गायेंगे ही। इंटरनेट पर जो भी कुछ इसकी शान में लिखा गया है, सब नशेडियों ने ही लिखा है।
भयंकर गन्दगी है यहां। न लोग साफ, न ही उनके घर व गलियां। जरुरत भी क्या है? बैठे बिठाये लाखों में खेलते हैं। अब प्रशासन को चाहिये कि मलाणा के साथ सख्ती से पेश आये। अब इन्हें गेहूं के बीज बांटना बन्द करके इनकी चरस पर ही चोट करनी चाहिये। खडी फसल को बर्बाद करते रहना चाहिये। आने-जाने वालों पर कडी नजर रखी जाये और उनकी नियमित कठोर जांच की जाये। जमलू मन्दिर को अपने नियन्त्रण में ले लेना चाहिये। हालांकि कोई हिमाचली ऐसा नहीं कर सकेगा, इसके लिये बाहर से भी बुलाया जा सकता है। इससे मलाणियों में छुआछूत की भावना कम होगी। क्रोधित होकर जमलू अगर तांडव कर दे तो उसे भी सबक सिखाया जा सकता है।
मलाणा वास्तव में हिमाचल और आखिरकार भारत पर एक कलंक है। अपनी विलक्षण संस्कृति होना ठीक है लेकिन नशा किसी भी हालत में ठीक नहीं है।

मलाणा से दिल्ली
कुल्लू से रोज यहां एक बस आती है। बाकी सारा आवागमन टैक्सियों से होता है। जरी जाने के लिये 800 रुपये में एक गाडी बुक की। ड्राइवर जरी का रहने वाला था। खफा था वो भी मलाणियों से। पूरे रास्ते इनकी आलोचना ही करता रहा।
मलाणा नाले पर एक बांध बना है और उसका पानी सुरंगों से होकर जरी के पास पावर प्लांट में जाता है। एक और बांध और भी आगे बनाया जा रहा है। यह सडक उस नये बांध तक सामान ले जाने के लिये ही बनाई गई है। लेकिन सडक बनने से पहले पुराने बांध से नये बांध तक सामान पहुंचाने के लिये रज्जु-मार्ग का प्रयोग किया जाता था। यह रज्जु मार्ग अब भी है और इसकी तारों पर जगह-जगह ट्रालियां लटकी हैं। अब यह रज्जु-मार्ग बन्द है।
जरी से हमें कुल्लू की बस मिल गई। लेकिन भून्तर के पास इसमें पंक्चर हो गया। पंक्चर ठीक कराकर आगे बढे तो जाम लगा मिला। ड्राइवर ने बस तुरन्त वापस मोड ली और ब्यास के बायें किनारे पर बनी सडक से कुल्लू पहुंच गया। भून्तर से मनाली तक ब्यास के दोनों तरफ सडकें हैं। मुख्य सडक दाहिनी तरफ वाली है। बायीं तरफ वाली मुख्य नहीं है इसलिये ट्रैफिक नहीं होता।
हम तीन दिनों से पैदल चल रहे थे, थक गये थे। इसलिये हम चाहते थे कि दिल्ली किसी वोल्वो बस से ही जायेंगे। लेकिन जब काउंटर पर जाकर पता किया तो वोल्वो तो क्या, साधारण बस के भी लाले पड गये। अगले एक सप्ताह तक सभी बसें पूरी तरह भरी हैं। यह जून का महीना था और सभी लोग छुट्टियां मनाने मनाली जाते हैं। हिमाचल की बसों में ऑनलाइन बुकिंग होती है तो बसें पहले ही भर जाती हैं।
अब क्या करें? काउंटर वाले ने बताया कि कोई हरियाणा की बस आयेगी तो उसमें चले जाना। हरियाणा की बसों में पहले से बुकिंग नहीं होती। जाओ और किसी भी खाली सीट पर बैठ जाओ। थोडा घूमे-फिर तो पता चला कि कम से कम सौ सवा सौ यात्री किसी हरियाणा की बस की प्रतीक्षा में हैं। बढिया भीड थी। अशोक ने कहा कि हममें से जो भी कोई पहले बस में चढेगा, वो बाकियों के लिये सीट घेर लेगा। लेकिन मैंने कहा- मनाली में भी ऐसा ही हाल हो रहा होगा भीड का। यहां जो भी बस आयेगी, वो मनाली से ही आयेगी। जाहिर है कि भरी ही होगी। अगर बस कुल्लू से पहले ही पूरी भर गई तो हरियाणा वाले बस को यहां नहीं लायेंगे, बाईपास से निकाल ले जायेंगे। फिर भी अगर कोई बस अगर आ भी गई तो उसमें इक्का-दुक्का सीटें ही होंगी या फिर एक सीट यहां, एक सीट वहां। एक आदमी चार सीटें नहीं घेर सकता। सभी अपनी-अपनी सीटों के लिये स्वयं जिम्मेदार होंगे।
तभी हरियाणा की एक बस आती दिखी। भीड टूट पडी। कुछ ही सीटें खाली थीं। हमने हालात का सटीक पूर्वानुमान लगाया था और प्रवेश द्वार के पास ही खडे हो गये थे, इसलिये चारों को सीटें मिल गईं।
समाप्त।

मलाणा गांव


मलाणा के बच्चे

जमलू मन्दिर


चेतावनी लिखी है कि गांव के बीच बने रास्ते पर ही चलें। किसी इमारत को न छुएं। नहीं तो 2500 रुपये जुर्माना।

जरी से मलाणा आने वाली सडक

सडक से मलाणा जाने का द्वार। पीछे मलाणा गांव दिख रहा है।

रज्जु-मार्ग और सीमेण्ट आदि ढोने वाली ट्रालियां

मलाणा जाने का एक और रास्ता




चन्द्रखनी ट्रेक
1. चन्द्रखनी दर्रे की ओर- दिल्ली से नग्गर
2. रोरिक आर्ट गैलरी, नग्गर
3. चन्द्रखनी ट्रेक- रूमसू गांव
4. चन्द्रखनी ट्रेक- पहली रात
5. चन्द्रखनी दर्रे के और नजदीक
6. चन्द्रखनी दर्रा- बेपनाह खूबसूरती
7. मलाणा- नशेडियों का गांव




Comments

  1. pahli bar aap se himalay k kisi jagah ki burai suni h to jahir h vo jagah mtlb vanha k log kitne gye gujre honge jo itni khubsurat jagah ka satyanash kr rkha h,
    and wish u a vry happy diwali

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. मैं खुद इस कसोल क्षेत्र में कई सालों से घूमता रहा हूँ. कसोल में पड़े रहने वाले विदेशी यहूदी ज्यादा हैं, ये मुख्यतः इसराइली, यूरोपियन और रशियन हैं. इन्ही ने गोवा के रस्ते हिमालयी चरस का अंतरराष्ट्रीय कारोबार संभाला हुआ है. इन यहूदियों ने और भी उंचाई पर चरस के सबसे बेहतरीन खेत कब्ज़ा किये हुए हैं. करोड़ों डॉलर का नशा गोवा के रस्ते दुनिया भर में पहुंचाया जाता है. गोवा ड्रग्स की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय मंडी है, जो कसोल घाटी की तरह यहूदी माफिया के कब्ज़े में है.

    इन यहूदियों के कारण सरकार चाह कर भी कोई कडा एक्शन नहीं ले पाती. क्योंकि यहूदी इतने ताकतवर और कमीने हैं की उन्हे नाराज करने का मतलब अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी मोल लेना है, वर्ना मलानियों की कोई औकात है? आप JEWISH RUSSIAN MAFIA इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो इनके खतरनाक यहूदी नेटवर्क के बारे में हैरतअंगेज़ जानकारियां मिलेंगी.

    ReplyDelete
  4. नीरज भाई नमस्कार ,आपको और आपके सभी पाठको को दीपवली की हार्दिक शुभकामनाए ,मलाणा के बारे मे आपने एक पुरानी पोस्ट मे भी जिक्र किया था, लेकिन वहाँ इतनी विस्तृत जानकारी नही थी। आपकी इस पोस्ट को पढ़कर दुःख और आश्चर्य दोनों को अनुभव कर रहा हु ,कि आज के आधुनिक और सभ्य समाज मे भी रूढ़िवादी विचारधारा वाला गांव भारत मे है। मै ये नही समझ पा रहा हु कि इस गांव को नशे का कारोबार करने की छूट सरकार ने क्यों दी हुई है। अगर भारत सरकार यहूदी स्मगलरो के दबाव मे कुछ नही करती तो ये तो और भी अधिक दुर्भाग्य की बात है।

    ReplyDelete
  5. Good one , Neeraj bhai aapke blog se yuva O ko nasha nahi karne ki prerna milti he . Aaj fir aap hamare dil me MODI ban gaye .

    ReplyDelete
  6. Neeraj bhai.....
    Ek baat samaj me nahi aati hai..aakir sarkar ine itni riyayat keo de rahi hai...jabki india me iski kheti pratibandhit hai.....waise malana k bare me behtar jankari mili ....thanks..
    Happy diwali...
    Ranjit..

    ReplyDelete
  7. Neeraj bhai.....
    Ek baat samaj me nahi aati hai..aakir sarkar ine itni riyayat keo de rahi hai...jabki india me iski kheti pratibandhit hai.....waise malana k bare me behtar jankari mili ....thanks..
    Happy diwali...
    Ranjit..

    ReplyDelete
  8. मुझे याद आया, इस नाम का उल्लेख किसी हॉलीवुड फ़िल्म में था

    जानकारी सचमुच पहली बार पढी
    आभार आपका

    ReplyDelete
  9. नीरज भाई दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं,
    हिमाचल का एक अलग ही रूप के दर्शन हुए,नशेडियो की दुनियां

    ReplyDelete
  10. महत्वपूर्ण जानकारी।प्रशाशन न जाने क्यों आँख कान बंद किये रहता है।

    ReplyDelete
  11. सरकार की जानकारी में नहीं हो ऐसा तो सम्भव नहीं लगता,मगर हो सकता है किसी तरह की मजबूरी हो। आपका वर्णन बहुत सुन्दर और सराहनीय है। आपको और आपके समस्त पाठकों को दीपावली की बधाई और शुभ कामनीऐं।

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर वर्णन तथा चित्रण नीरज जी,

    निश्चित रूप से शासन को सारी जानकारी होगी, लेकिन सरकारी कामकाज के हाल हर जगह एक जैसे हैं। हमारे करीब ही राजस्थान की सीमा से लगे शहर हैं नीमच तथा मन्दसौर जिनके आसपास के गावों में अफीम की बेतहाशा खेती गैरकानूनी ढंग से होती है लेकिन शासन कुछ नहीं कर पाता। मंदसौर के पास एक ढोढर नाम का गांव है जहाँ बांछड़ा नामक एक जाति की बहुलता है, इस गांव का मुख्य रोजगार वेश्यावृत्ति है तथा इस यहाँ की बेटियाँ, बहुएँ तथा औरतें सदियों से वेश्यावृति का ही काम करती हैं. गांव के आदमी कोई काम नहीं करते, अपनी बहनों तथा बीवियों के लिए ग्राहक तलाश करके लाना तथा बाकी समय दारू पीकर पड़े रहना ही इनकी रोजमर्रा की जिंदगी है. शादियाँ सिर्फ घर के लड़कों की होती है लड़कियों की नहीं, लड़कियों को तो बचपन से ही (१२-१३ वर्ष की उम्र से) जीवन भर के लिए पुरुषों का बोझ उठाने के लिए पुश्तैनी धंधे में धकेल दिया जाता है. स्थानीय पुलिस इनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाती क्योंकी पुलिस के ज्यादातर बाशिंदे खुद ही इनके मुफ्त के ग्राहक होते हैं।

    नीरज जी आपके लेख महज यात्रा वृत्तांत ना होकर कई बार अति महत्वपूर्ना सामाजिक संदेश भी दे जाते हैं.....मुझे कई बार लगता है आपकी प्रेरक तथा साहसिक यात्राओं के लिए भारत शासन के द्वारा आपको सम्मानित करना चाहिए. मैं तो चाहता हूँ की विकिपीडिया पर भी आपका एक पेज हो. मैं आपको भारत का एक विशिष्ट व्यक्तित्व मानता हूँ........देखता हूँ कब मेरा ये सपना पूरा होता है ?

    धन्यवाद.

    ReplyDelete
    Replies
    1. मुकेशजी आपने सही कहा --- मैं खुद मन्दसौर ,मनासा और नीमच रही हूँ --वहां अफीम की खेती जोरदार होती है और उसके लिए सरकार ही पट्टे वितरीत करती है वहाँ के किसान सरकार के लिए ही अफीम पैदा करते है -- पर वहाँ अफ़ीम के अलावा दूसरी खेती भी होती है --

      Delete
  13. Neeraj ji......
    Diwali ki hardik shubkamnaye.........
    Akshat.....

    ReplyDelete
  14. घटिया गाँव की बढ़िया जानकारी। :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सुन्दर ---सारी जानकारी एक ही शब्द में निहित कर दी ---

      Delete
  15. VERY VERY INTERESTING ARTICLE AND BEAUTIFUL PHOTOS.

    ReplyDelete
  16. आश्चर्य गाँव है मलाणा --- आनुवांशिक बीमारियां क्या बला है ? क्यों घर छूने नहीं देते ? क्या तुमने उनमें से किसी से पूछा था ? क्या वहाँ हमारे देश का कानून नहीं चलता ? हमारे देश को वहां सख्ती से काम करना --मैंने टी वी पर एक सीरियल देखा था "पॉवडर " वहाँ की ही स्टोरी थी गाँव का नाम नहीं लिया था --पर आज तुम्हारी स्टोरी पढ़कर याद आया क्राईम ब्रॉन्च वाले मनाली से ही वहां जाते है उनकी जडे दिल्ली तक फैली हुई बताई गई थी --इस गाँव से नशे को ख़तम करना मामूली बात नहीं फिर भारत सरकार को विदेशी मुद्रा भी तो मिलती है ---पर मोदी सरकार को कुछ तो करना ही चाहिए ---

    ReplyDelete
  17. नीरज जी तुमने अपने शब्दों से मलाना कुरूपता को जीवंत कर दिया. एक अच्छा और सारगर्भित लेख पढ़कर मजा आ गया. एक बात समझ नहीं आई आपको प्रकृति का रसास्वादन करना पसंद है उसपर आप इतना अच्छा लिखते भी हो कहाँ इंजीनियरिंग लाइन में फंस गए................ :D

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब