Skip to main content

कमरुनाग से वापस रोहांडा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
13 मई 2014, मंगलवार
आज हमें कमरुनाग से शिकारी देवी जाना था जिसकी दूरी स्थानीय निवासी 18 किलोमीटर बताते हैं। रास्ता ऊपर पहाडी धार से होकर ही जाता है, तो ज्यादा उतराई-चढाई का सामना नहीं करना पडेगा।
आंख खुली तो बाहर टप-टप की आवाज सुनकर पता चल गया कि बारिश हो रही है। हिमालय की ऊंचाईयों पर अक्सर दोपहर बाद मौसम खराब हो जाता है, फिर एक झडी लगती है और उसके बाद मौसम खुल जाता है। सुबह मौसम बिल्कुल साफ-सुथरा मिलता है। लेकिन आज ऐसा नहीं था। मैं सबसे आखिर में उठने वालों में हूं, सचिन ही पहले उठा और बाहर झांक आया। बताया कि बारिश हो रही है। इसका अर्थ है कि पूरी रात बूंदाबांदी होती रही थी और अभी भी खुलना मुश्किल है। ऐसे में हम शिकारी देवी नहीं जा सकते थे क्योंकि सचिन व सुरेन्द्र के पास रेनकोट नहीं थे। फिर वो रास्ता ऊपर धार से होकर ही है जहां मामूली हवा भी बडी तेज व ठण्डी लगती है।

दस बज गये और ग्यारह भी बज गये। आवाज देकर चाय और पकौडियां मंगा ली। कम्बलों में बैठे बैठे चाय पीने का आनन्द गजब का होता है।
सचिन का स्वभाव जल्दबाजी करने का है। वह हमेशा जल्दी करो, जल्दी करो कहता रहता है। फिर ऊपर से जाट, वो भी मुजफ्फनगर का; निर्णय पहले लेता है, अक्ल बाद में लगाता है। कहने लगा शिकारी माता जायेंगे, चाहे कुछ भी हो जाये। हमसे उठ जाने व जल्दी करने को कहने लगा। मैंने सुझाव दिया कि अगर यहां से दो छतरियों का इंतजाम हो सके तो कर लो। चाहे खरीदनी ही क्यों न पडे। बात उसकी समझ में आई। बाहर गया और कुछ देर बाद निराश होकर लौट आया- ये तो किसी भी कीमत पर छतरी नहीं दे रहे। बाद में मैंने पन्नी का इंतजाम करने का सुझाव दिया लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका। इसका अर्थ यही था कि यही पडे रहो और बारिश रुकने की प्रतीक्षा करते रहो। एकाध घण्टे में रुक गई तो ठीक, नहीं तो बारिश रुकते ही वापस रोहांडा चले जायेंगे।
तभी सचिन की निगाह पडी मेरे स्लीपिंग बैग पर। मैं रात इसे ही ओढकर सोया था। पूछने लगा कि क्या यह वाटरप्रूफ है? मैंने कहा, हां है। बोला बस तो मेरा काम हो गया। इसे ही लपेट लूंगा। मैंने फिर सुझाव दिया कि एक बार इसे लपेटने की प्रैक्टिस कर। उसने लपेटने की कोशिश की। लाखवीं कोशिश में वह कुछ सफल हुआ। अब मैंने फिर कहा कि इसे इसी तरह लपेटकर और बैग कमर पर लटकाकर झील का एक चक्कर लगाकर आ। क्या पता बाहर निकलते ही यह फिर काबू से बाहर हो जाये?
बाहर काफी तेज हवा चल रही थी। वह स्लीपिंग बैग को लपेटे लपेटे ही बाहर चला गया। उसके जाने के बाद मैंने सुरेन्द्र से कहा कि बारिश और इतनी तेज हवा में मैं शिकारी देवी नहीं जाऊंगा। अभी हम रजाईयों में बैठे हैं, रास्ते में जब धार पर उडा देने वाली और सुई की तरह चुभने वाली ठण्डी हवा लगेगी तो मुसीबत हो जायेगी। शिकारी फिर कभी। सुरेन्द्र सहमत था।
कुछ देर बाद सचिन आ गया। स्लीपिंग बैग की तरफ से वह काफी खुश था। उसने बताया कि स्थानीय लोगों से शिकारी देवी जाने की बात की थी तो उन्होंने मुझे लताड दिया। वे कह रहे हैं कि रास्ते में उडा देते वाली हवा चल रही होगी और न जाने की सलाह दे रहे हैं। फिर मैंने भी कुछ भाषण-प्रवचन दिये, सचिन बुझे मन से मान गया।
यहां से दाल-चावल खाकर एक बजे हम वापस रोहांडा के लिये चल दिये। अब तक मौसम खुल चुका था। सुरेन्द्र ने कहा भी कि अब मौसम खुल गया है, शिकारी देवी चल सकते हैं लेकिन मैंने मना कर दिया। कारण था कि अभी भी हवा बहुत तेज चल रही थी और मैं अगले चार पांच घण्टों के लिये मौसम की तरफ से निश्चिन्त नहीं हो सकता था खासकर इस समय। दोपहर बाद पूरे हिमालय की ऊंचाईयों पर मौसम खराब होने लगता है। अगर अभी हमें ठीक लग रहा है तो जरूरी नहीं कि अगले चार घण्टों तक ठीक ही रहेगा।
मेरा अन्दाजा ठीक निकला। जब तीन घण्टे बाद हम नीचे पहुंचे तो ऊपर मौसम खराब हो चुका था और घने काले बादल यहां कमरुनाग के आसपास दिख रहे थे।
मुझे नीचे उतरने के लिये डण्डे की आवश्यकता पडती है। कल जब ऊपर आ रहे थे तो मैंने अपना ट्रैकिंग पोल सचिन को दे दिया था। अब वापस ले लिया क्योंकि एक तो तेज ढलान था और दूसरे, चौबीस घण्टे से बारिश होते रहने से फिसलन भी हो गई थी। सचिन के लिये रास्ते में पडी एक मजबूत टहनी को उठा लिया था। सुरेन्द्र बिना डण्डे के उतरा।
हमने वापस आने में कोई जल्दबाजी नहीं की। आराम से फोटो खींचते हुए आये। बारिश के बाद आसमान खुलने से वातावरण भी धुला धुला हो गया था। काफी देर तक धौलाधार के बर्फीले पहाड दिखते रहे और दूसरी तरफ सुदूर किन्नौर तक का इलाका दिख रहा था। हालांकि उधर बादल होने के कारण किन्नौर की बर्फीली चोटियां नहीं दिखीं। बडी देर तक सुरेन्द्र उन बादलों को बर्फ मानता रहा व फोटो खींचता रहा।
रोहांडा आकर गर्मी लगने लगी। गर्म कपडे उतारकर बैग में रख लिये व दूसरे कपडे पहन लिये। तब तक सुन्दरनगर की बस भी आ चुकी थी। सचिन के पास और घूमने का समय नहीं था जबकि मेरे व सुरेन्द्र के पास एक दिन और था। सुन्दरनगर से सचिन ने दिल्ली की बस पकड ली और हमने मण्डी की। मण्डी से जोगिन्दरनगर जायेंगे और कांगडा घाटी रेल में यात्रा करेंगे।

कमरुनाग झील

देव कमरु का मन्दिर



सचिन कुमार जांगडा

झील के किनारे से दिखता रोहांडा गांव






यहां से दिखतीं धौलाधार की बर्फीली पहाडियां।

















आडू का पेड




अगला भाग: कांगडा रेल यात्रा- जोगिन्दर नगर से ज्वालामुखी रोड तक

चूडधार कमरुनाग यात्रा

1. कहां मिलम, कहां झांसी, कहां चूडधार
2. चूडधार यात्रा- 1
3. चूडधार यात्रा- 2
4. चूडधार यात्रा- वापसी तराहां के रास्ते
5. भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार
6. तराहां से सुन्दरनगर तक- एक रोमांचक यात्रा
7. रोहांडा में बारिश
8. रोहांडा से कमरुनाग
9. कमरुनाग से वापस रोहांडा
10. कांगडा रेल यात्रा- जोगिन्दर नगर से ज्वालामुखी रोड तक
11.चूडधार की जानकारी व नक्शा




Comments

  1. Neeraj bhai..kiya july .aug me kamrunaag ki yatra. Ki ja sakti hai....waise maza aa raha hai . Aap k post ko padhkar...aap k post ka jyada wait nahi karna pad raha hai ..so thanks.....

    ReplyDelete
  2. नीरज जी, कमरुनाग झील के इतने मनमोहक /शानदार फोटोज पहली देखें हैं, फोटो नंबर १६ और १७ भी शानदार हैं धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब...... वैसे शिकारी देवी जी के आधार गाँव या शहर कौन सा है....|

    ReplyDelete
    Replies
    1. जंजैहली है जी। मण्डी व नेरचौक से जंजैहली का रास्ता जाता है। दूसरा रास्ता करसोग से है।

      Delete
  4. EK CHEEZ BATANA CHAUNGA KI TUM SHIKARI DEVI JA HI NI SAKTE BINA SHIKARI MATA KI PERMISSION K ISLIYE US DIN BARISH HO GAYI THI... SHIKARI DEVI JANA KOI BACHO KA KHEL NAHI... FIR KABHI TRY KAR LENA...

    ReplyDelete
    Replies
    1. bahi aaj pata chala ki bhagwaan ke yahan bhi pakshapaat hota hai .................... bole to aaj appoinment nahi ........... no meeting

      Delete
  5. नीरज ..................Nice Photo & YOU Good Work .........god bless you ....

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छे फोटो।बहुत बढिया ।धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. mast mausam, photos are picturesque, u must have enjoyed a lot !!

    ReplyDelete
  8. सुन्दर यात्रा लेख व फोटो नीरज भाई.

    ReplyDelete
  9. कमरूनाग की सुंदरता बेजोड़ है ----

    ReplyDelete
  10. aap ka lekhan va chayaken bahut achcha he.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब