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Showing posts from May, 2014

चूडधार यात्रा-1

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 7 मई 2014, बुधवार चण्डीगढ स्टेशन के प्रतीक्षालय में जब नहा रहा था तभी बाडमेर-कालका एक्सप्रेस आ गई। मैंने कालका तक का टिकट ले रखा था। फटाफट नहाया और ट्रेन में जा बैठा। ट्रेन यहां काफी देर तक रुकी रही थी। हालांकि आज हिमाचल में लोकसभा के चुनाव थे, फिर भी मैंने सोच रखा था कि चूडधार तो जाना ही है। अगर उत्तराखण्ड की तरह यहां भी बसों का टोटा रहा तो सोलन तक जाने के लिये ट्रेन थी ही। हिमाचल में यात्रा करने का एक लाभ ये भी है कि यहां के पहाडों में बहुत दूर दूर तक दूसरे राज्यों की सरकारी बसें भी जाती हैं। उत्तराखण्ड में ऐसा नहीं है। अगर हिमाचल परिवहन की बसें बन्द मिली तो हरियाणा, पंजाब और चण्डीगढ परिवहन की बसें भी नियमित रूप से शिमला और आगे तक जाती हैं।

कहां मिलम, कहां झांसी और कहां चूडधार?

बडे जोर-शोर से तैयारियां हो रही थी मिलम ग्लेशियर जाने की। काफी समय पहले वहां जाने की योजना बन चुकी थी, पर्याप्त होमवर्क भी कर चुका था। इसके अलावा मिलम और मुन्स्यारी के रास्ते में या थोडा-बहुत इधर उधर हटकर कुछ और स्थानों की भी जानकारी ले ली थी जैसे कि नन्दा देवी ईस्ट बेस कैम्प और नामिक ग्लेशियर। मेरा दिल्ली से सोमवार की सुबह निकलना होता है। हल्द्वानी जल्दी से जल्दी पहुंचने के लिये आनन्द विहार से शताब्दी एक्सप्रेस एक उत्तम ट्रेन है। पहले इसके स्थान पर एक एसी ट्रेन चला करती थी, उसमें थर्ड एसी के डिब्बे होते थे, आराम से सोने के लिये बर्थ मिल जाया करती थी और शताब्दी से सस्ती भी होती थी। अब इसे शताब्दी का दर्जा दे दिया है जिससे कुमाऊं वालों को भी यह कहने का मौका मिल गया है कि उनके पास भी शताब्दी है। हालांकि यह भारत की सबसे घटिया शताब्दियों में से एक है।

लद्दाख साइकिल यात्रा के लिये कुछ सुझाव

अभी पिछले दिनों निरंजन वेलणकर साहब से मेल पर बात हुई- लद्दाख साइकिल यात्रा के बारे में। पेश है वह वार्तालाप ज्यों का त्यों: निरंजन वेलणकर: घुमक्कडी जिन्दाबाद नीरज जी! आपको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक प्रणाम! हर सुबह आपकी गाथा पढ़ने के लिए आपकी साईट पर जाता हूं। वाकई आप बहुत बढिया लिख रहे हैं- बहुत बढिया आपने किया है। आपके लेखन में जो अभिवृत्ति (attitude) है, वो भी काफ़ी ऊँची है। आप कई सारी बातों को सम्मिलित कर यथार्थ दृश्य प्रस्तुत करते हैं। शब्द पर्याप्त नही है और आपको निरंतर अपनी तारीफ सुनते हुए अजीब सा भी‌ लगता होगा, इसलिए रुकता हूं। आपसे कुछ मार्गदर्शन चाहिए था। लद्दाख साईकिल यात्रा के बारे में। मेरी साईकिल 5500 रू. मे ली हुई 18 गियर की एक सामान्य साईकिल है। क्रॉस बाईक की। जुलाई से अब तक कुल 1380 किलोमीटर चलाया है। दो शतक और तेरह अर्धशतक है। थोडी बार कुछ छोटी- मोटी पहाडी पर भी चलाई है। स्तर 3 और स्तर 2 के घाट/चढाईयों पर भी चलाया है। इसमें आपकी राय चाहिए थी।

लाल किला, दिल्ली- एक फोटोयात्रा

पिछले दिनों लालकिला जाना हुआ। इसके बारे में इतना कुछ लिखा जा चुका है कि मेरा लिखने का मन नहीं है। कुछ फोटो हैं, जो आपको पसन्द आयेंगे। एक बात बताना चाहूंगा। मैं शास्त्री पार्क में रहता हूं। जिस जगह हमारे क्वार्टर हैं, वे यमुना के इतने नजदीक हैं कि कभी कभी लगता है कि कहीं ये इसके डूब क्षेत्र में तो नहीं हैं। उधर यमुना के दूसरी तरफ बिल्कुल मिलकर ही लालकिले की बाहरी दीवार है। दोनों स्थानों को डेढ सौ साल पुराना लोहे का ऐतिहासिक पुल जोडता है। इसी पुल से पहली बार दिल्ली में रेल आई थी। यह रेलवे लाइन पुल पार करके लालकिले के अन्दर से गुजरती है। पर्यटकों को उधर जाने की अनुमति नहीं है, इसलिये किले में घूमते समय यह दिखाई भी नहीं देती। लेकिन जब ट्रेन से जाते हैं तो साफ पता चल जाता है।

वडोदरा से रतलाम पैसेंजर ट्रेन यात्रा

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 20 फरवरी थी और दिन था बृहस्पतिवार। वडोदरा से सुबह सवा सात बजे कोटा पैसेंजर चलती है। इसे स्थानीय तौर पर पार्सल पैसेंजर भी कहते हैं। मुझे अपने पैसेंजर नक्शे में रतलाम से वडोदरा को जोडना था। दिल्ली से रतलाम तक मैंने कई टुकडों में पैसेंजर यात्रा कर रखी है। दिन शामगढ में छिपेगा तो टिकट शामगढ तक का ले लिया। कोटा से निजामुद्दीन तक का मेरा आरक्षण मेवाड एक्सप्रेस में था। शामगढ से कोटा तक इंटरसिटी से जाऊंगा। पार्सल पैसेंजर प्लेटफार्म नम्बर पांच पर खडी थी। प्लेटफार्म चार से सात बजकर पांच मिनट पर वडोदरा-भिलाड एक्सप्रेस (19114) रवाना हो गई। प्लेटफार्म एक पर भुज-बान्द्रा एक्सप्रेस (19116) थी। साढे सात बजे यानी पन्द्रह मिनट की देरी से पार्सल पैसेंजर रवाना हुई। प्लेटफार्म से निकलते ही गाडी रुक गई। वडोदरा इतना बडा स्टेशन है कि यहां कई ‘आउटर’ हैं। असल में अहमदाबाद की तरफ से डबल डेकर आ रही थी, इसलिये इस ट्रेन को रुकना पडा। डबल डेकर चली गई, उसके बाद जयपुर-बान्द्रा (12980) गई, तब यह आगे बढी। इसी दौरान उदयपुर-बान्द्रा (22902) निकली। यहां तक गाडी

सूरत से मुम्बई पैसेंजर ट्रेन यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । सूरत एक व्यस्त स्टेशन है। सात बजे जब मैं होटल से निकलकर स्टेशन पहुंचा, तब भी यहां कई ट्रेनें खडी थीं। आज 19 फरवरी थी और दिन था बुधवार। सबसे पहले निगाह पडी प्लेटफार्म नम्बर एक पर खडी पुरी-अजमेर एक्सप्रेस (18421) पर जो बिल्कुल ठीक समय पर चल रही थी। फिर प्लेटफार्म दो पर भुज-बान्द्रा कच्छ एक्सप्रेस (19132) आ गई। प्लेटफार्म तीन पर मुम्बई-अहमदाबाद पैसेंजर (59441) तो चार पर भुसावल पैसेंजर (59075)। मुम्बई-अहमदाबाद पैसेंजर में कुछ डिब्बे नन्दुरबार वाले भी लगे होते हैं। उन्हें इस ट्रेन से हटाकर भुसावल पैसेंजर में जोड दिया जायेगा। प्लेटफार्म दो से कच्छ एक्सप्रेस के जाने के बाद जयपुर-यशवन्तपुर गरीब रथ स्पेशल (06512) आ गई। सबसे आखिर में प्लेटफार्म तीन पर अपनी बोरीबली पैसेंजर (59440) आई। यह ट्रेन अहमदाबाद से आती है। मैंने वसई रोड तक का टिकट ले लिया। बीस मिनट की देरी से ट्रेन रवाना हुई। सूरत से अगला स्टेशन उधना जंक्शन है। यहां से एक लाइन भुसावल जाती है। जब पैसेंजर उधना से चली तो भुसावल की तरफ से श्रमिक एक्सप्रेस (19052) आती दिखी। श्रमिक ए