Skip to main content

2013 की घुमक्कडी का लेखा-जोखा

साल 2013 घुमक्कडी के लिहाज से एक बेहतरीन साल रहा। इस साल मेरे कुछ बडे सपने पूरे हुए मसलन लद्दाख जाना। दो महायात्राएं हुईं और दोनों ही लद्दाख की। अभी भी बीते साल की घुमक्कडी के बारे में सोचता हूं तो स्वयं ही सिर गर्व से उठ जाता है। कभी विचार आता है कि क्या वे यात्राएं मैंने ही की हैं। क्या फिर से वैसी ही कोई यात्रा कर सकूंगा?
बाकी बातें बाद में करेंगे, पहले एक नजर इस साल हुई छोटी बडी सभी यात्राओं पर:
1. जनवरी में लद्दाख यात्रा:
एक तो लद्दाख, फिर जनवरी में। लद्दाख एक ऐसी जगह है जहां किसी भी साधन से जाओ, आप हमेशा बधाई और शाबाशी के पात्र माने जाओगे। वायुमार्ग से लद्दाख जाना और वहां घूमना भी कम रोचक नहीं होता। अगर यात्रा जनवरी जैसे कडक सर्द मौसम में हो तो फिर क्या कहने! तापमान हमेशा शून्य से नीचे ही रहता है। कभी शून्य तक भी पहुंच जाये तो कहा जायेगा कि आज मौसम कुछ गर्म था। दिल्ली में तीन चार डिग्री तक आते ही सर्दी के पता नहीं कब तक के रिकार्ड टूटने लगते हैं। दस बीस कपडे पहने होने के बावजूद भी कंपकंपाहट नहीं जाती। लद्दाख में शून्य डिग्री जनवरी के महीने में गर्म माना जाता है। ठण्ड का आलम यह होता है कि नहाने के बाद अगर तौलिया बाहर खुले में टांग दिया तो पांच मिनट में ही वह लोहे की चादर जैसा कठोर हो जाता है।
नदियां जम जाती हैं। जांस्कर नदी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। बर्फ की मोटी सुरक्षित चादर बन जाती है। इसी चादर पर सौ सौ किलोमीटर तक स्थानीय निवासी आना जाना करते हैं और बाहर से इक्के-दुक्के आये ट्रेकर इसे चादर ट्रेक कहते हैं। चादर ट्रेक अर्थात सबकुछ जमा हुआ- ऊंचे ऊंचे झरने तक जमे हुए।
और मुझे गर्व है कि मैं जनवरी में न केवल लद्दाख गया बल्कि चादर ट्रेक भी किया और एक ठिठुरती रात में शून्य से पच्चीस डिग्री नीचे के तापमान में एक खुली गुफा में साधारण कपडों में रात भी गुजारी।

 2. वृन्दावन-गोवर्धन यात्रा: पिताजी और धीरज के साथ यह यात्रा 12 और 13 फरवरी को की गई। इसमें वृन्दावन और मथुरा की सूक्ष्म यात्रा के अतिरिक्त गोवर्धन परिक्रमा भी की गई।

3. पैसेंजर ट्रेन यात्रा:
18 से 20 फरवरी तक यह यात्रा की गई। इसमें अहमदाबाद से उदयपुर मीटर गेज की पैसेंजर ट्रेन में यात्रा की और अगले दिन रतलाम से चित्तौडगढ के रास्ते कोटा तक ब्रॉड गेज की पैसेंजर ट्रेन में। यात्रा में प्रशान्त और नटवर लाल ने भी साथ दिया।

4. छत्तीसगढ यात्रा: 27 फरवरी से 2 मार्च तक यात्रा हुई। यात्रा डब्बू मिश्रा के कहने से हुई लेकिन बाद में कुछ कारणों से डब्बू से विवाद इतना बढ गया कि इसके कारण एक पोस्ट हटानी भी पडी। यात्रा तो अच्छी रही लेकिन वृत्तान्त अच्छा नहीं लिखा जा सका। पाठकों ने खासकर टांग-खींचकों ने कई दिनों तक फजीहत किये रखी। इस यात्रा का सबसे खुशनुमा पहला ही दिन था जब राजेश तिवारी जी के साथ डोंगरगढ गया।
5. हिमानी चामुण्डा यात्रा: हिमाचल में धर्मशाला के पास धौलाधार की बर्फीली पहाडियों के नीचे हिमानी चामुण्डा है। यात्रा 3 से 6 अप्रैल तक हुई और नटवर ने साथ दिया। हिमानी चामुण्डा के अलावा बरोट भी गये।
6. सराहन यात्रा: 24 से 27 अप्रैल तक सराहन यात्रा की गई। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण बशल चोटी के नीचे बाबाजी की कुटिया में खिचडी बनाना और भोग लगाना रहा। यात्रा यादगार रही।
 
7. लद्दाख साइकिल यात्रा: साल की दूसरी महायात्रा। यकीन नहीं होता कि साइकिल से लद्दाख भी जाया जा सकता है। यह यात्रा 4 जून से 26 जून तक चली। दिल्ली से बस पर रखकर मनाली तक साइकिल ले गया। मनाली से यात्रा शुरू कर दी। चौदह दिन लगे 474 किलोमीटर दूर लेह पहुंचने में और 6 दिन लगे लेह से श्रीनगर की 434 किलोमीटर को तय करने में।
8. कोंकण ट्रेन यात्रा: इसमें कमल और प्रशान्त ने साथ दिया। सबसे पहले अजन्ता गुफाएं देखी गईं। फिर जामनेर से पाचोरा तक नैरो गेज की ट्रेन यात्रा, दिवा से मडगांव और आगे मंगलौर तक पैसेंजर ट्रेन यात्रादूधसागरजोग प्रपात जैसे विशाल जलप्रपातों को मानसून में देखा। गोकर्ण भी देखा। यात्रा 6 से 15 अगस्त तक चली।
 
9. हर की दून यात्रा: साल की यह उत्तराखण्ड की एकमात्र यात्रा थी और असफल रही। खराब जूतों के कारण पैरों में छाले पड गये व यात्रा बीच में ही छोडकर आना पडा। यात्रा अक्टूबर के पहले सप्ताह में की गई।
10. हिसार से मेडता सिटी पैसेंजर ट्रेन यात्रा: यह यात्रा 22 व 23 अक्टूबर को हुई। हिसार से शुरू करके रात्रि विश्राम चूरू में करके अगले दिन मेडता रोड तक पैसेंजर ट्रेन में और मेडता रोड से मेडता सिटी तक रेलबस में गया।
 
11. दिल्ली चिडियाघर: सहकर्मी विपिन और धीरज के साथ यह सूक्ष्म यात्रा की गई 10 नवम्बर के आसपास। चिडियाघर पहले भी देख चुका था लेकिन इस बार फोटो खींचने के उद्देश्य से गया।
13. थार साइकिल यात्रा: यह साइकिल यात्रा हाल ही में हुई 23 से 28 दिसम्बर तक। साथ दिया नटवर ने। इसमें दिल्ली से जैसलमेर तक ट्रेन से गया, साइकिल ट्रेन में ही ले गया। जैसलमेर से साइकिल यात्रा शुरू कर दी। तनोट गया, लोंगेवाला गया। ठेठ थार का रहन सहन देखा। 
इस साल कुल मिलाकर 101 छुट्टियां ली गईं जिनमें 52 साप्ताहिक अवकाश और 51 अन्य छुट्टियां शामिल हैं। एक छुट्टी दिसम्बर खत्म होते ही गल जायेगी, उसे न ले पाने का मलाल रहेगा। पिछले साल 98 छुट्टियां ली थीं।
और अब रेलयात्राएं
2013 में कुल 60 रेलयात्राएं कीं और 17592 किलोमीटर की दूरी तय की। इनमें 29 बार में 3908 किलोमीटर पैसेंजर से, 19 बार में 6385 किलोमीटर मेल/एक्सप्रेस से और 12 बार में 7299 किलोमीटर की दूरी सुपरफास्ट ट्रेनों से तय की। इस साल की सबसे लम्बी रेलयात्रा मडगांव से निजामुद्दीन तक 2174 किलोमीटर और सबसे छोटी रेलयात्राएं रहीं 12-12 किलोमीटर की- वृन्दावन से मथुरा और कल्याण से दिवा तक।
2014 के लक्ष्य
2013 के लिये हिमालय पार की धरती पर घूमना तय किया था जिसमें मैं बेहद सफल भी रहा। लद्दाख और लाहौल जमकर देखा। हालांकि किन्नौर, पांगी और स्पीति नहीं जा पाया। इस साल के लिये पूर्वोत्तर भारत के भ्रमण का लक्ष्य रखा गया है। देखते हैं कितना सफल हो पाता हूं।

2012 की घुमक्कडी का लेखा-जोखा........2014 की घुमक्कड़ी का लेखा-जोखा




Comments

  1. Kinnar kilasha sath dena padega , all the best. & happy new year

    ReplyDelete
  2. वाह ! घुमक्कड़ों के लिए जानकारी का दस्तावेज बनता जा रहा है आपका ब्लॉग !!

    ReplyDelete
  3. घुमक्कड़ों के लिए जानकारी

    ReplyDelete
  4. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. Congrats Neeraj Bhai......Rahul Sanskritayan ki parampara ko aage le jane ke liye.....

    ReplyDelete
  7. इधर अपनी तो छुट्टियाँ ऐसे ही हर साल गल जाती हैं, छुट्टियाँ ही नहीं मिलती हैं ।

    ReplyDelete
  8. नीरज भाई नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, आपकी थार साईकिल यात्रा का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.

    ReplyDelete
  9. चलो मजे से ये साल भी निकल गया।

    ReplyDelete
  10. नवागत वर्ष सन् 2014 ई. की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  11. वाह, अभिरुचि इसे कहते हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब