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डायरी के पन्ने- 1

[हर महीने की पहली और 16 तारीख को डायरी के पन्ने छपा करेंगे।]

1. सुबह एक फोन आया जयपुर से। वे दैनिक भास्कर से थे और चाहते थे कि मैं उन्हें नीलकंठ महादेव के फोटो उनकी साइट पर लगाने दूं। मैंने अनुमति दे दी। शाम को विधान का फोन आया कि भास्कर की साइट पर तुम्हारे फोटो लगे हैं। मैंने भी देखा। उनकी थीम थी राजस्थान के मन्दिरों में सम्भोग और अध्यात्म का रिश्ता। इसमें उन्होंने उदयपुर, बाडमेर के साथ नीलकंठ महादेव के कुल मिलाकर बारह फोटो लगा रखे हैं। ज्यादातर मेरे फोटो हैं लेकिन वर्णन तितर-बितर तरीके से कर रखा है। दैनिक भास्कर का वह पेज यहां क्लिक करके देखा जा सकता है।


1. दिसम्बर और जनवरी में रेलयात्राएं नहीं की जा सकीं। मैं अक्सर इन दो महीनों में रेलयात्राएं नहीं करता हूं क्योंकि कोहरे के कारण ट्रेनें घण्टों लेट हो जाती हैं। इसकी पूर्ति फरवरी में होती है। पिछले महीने दिल्ली से अहमदाबाद, उदयपुर, रतलाम, कोटा और दिल्ली की रेलयात्राओं का आरक्षण कराया था। लेकिन बुरी तरह तलब लगी है यात्रा करने की। आज एक और रेलयात्रा की योजना बनी- दिल्ली से श्रीगंगानगर, सूरतगढ, अनूपगढ। कुछ ही महीने पहले श्रीगंगानगर से सूरतगढ वाली लाइन मीटर गेज से बडे गेज में परिवर्तित हुई है। दिल्ली से श्रीगंगानगर 5 फरवरी को निकलूंगा और सात फरवरी को वापस लौटूंगा। डेबिट कार्ड से रिजर्वेशन होने से चार किलोमीटर दूर शाहदरा जाकर लाइन में नहीं लगना पडता।
2. आज कई दिनों बाद नहाया। सायंकालीन ड्यूटी (दो से दस बजे तक) थी। अच्छी धूप निकली थी, मैं बिना टोपा लगाये ऑफिस चला गया। ऐसा करने से सुबह तक गले से संकेत मिलने लगे कि नजला-जुकाम होने वाला है। कमजोर शरीर वालों को अपना शरीर व्याधिरहित रखने के लिये बडी सावधानियां रखनी होती हैं। मैं हर साल नवम्बर और फरवरी में बीमार पडता हूं। शुरू में जुकाम होता है, बाद में खांसी, बुखार भी आ जाते हैं जो पन्द्रह बीस दिन से पहले पीछा नहीं छोडते। डाक्टर के पास जाने से कतराता हूं। 


1. एक झन्नाटेदार खबर मिली कि घुमक्कड डॉट कॉम नामक पर्यटन साइट किसी ने हैक कर ली है और सारी पोस्टें मिटा दी हैं। यह व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिये जश्न मनाने की बात थी लेकिन समूहगत तौर पर नहीं। मेरे काफी मित्र वहां लिखते हैं, उनका भयंकर नुकसान अपने नुकसान से कम नहीं होता। जश्न मनाने की बात इसलिये कि वहां मेरा हमेशा से विवाद होता आया है। खैर, पकौडी बनाकर जश्न मनाया गया। अगले दिन साइट मालिकों ने मेहनत की और सारी पोस्टें यथारूप दिखने लगीं।
2. यूथ हॉस्टल का परिचय पत्र आ गया। जनवरी में इसके लिये आवेदन किया था। साथ ही 1 मई से 11 मई तक हिमाचल में सौरकुंडी पास की ट्रेकिंग के लिये भी नाम दे दिया। जब नाम दे दिया, खाते से पैसे कट गये तो अक्ल आई कि यह ट्रेकिंग ग्यारह दिनों की होगी। हालांकि मुझे इन ग्यारह दिनों के लिये मेट्रो की तरफ से स्पेशल छुट्टियां मिलेंगी, लेकिन अब सोच रहा हूं कि यह वक्त की बडी बर्बादी होगी। छुट्टियों की मेरे पास कोई कमी नहीं है, इस समय मेरे खाते में सौ से ज्यादा छुट्टियां बची हुई हैं। अपने खाते से छुट्टियां लेकर ग्यारह दिनों में कोई बहुत बडा काम कर सकता हूं। रही बात इस ट्रेकिंग की तो मुझे लगता है कि अपने प्रयासों से मैं इस ट्रेक को तीन दिन में निपटा सकता हूं। दुविधा में हूं।
3. हमारे जंगले की बाहरी तरफ एक कबूतरी ने दो अण्डे दिये। खास बात है कि जंगले में शीशा लगा है, अन्दर शीशे से सटकर ही मेरा बिस्तर है। शीशे के दूसरी तरफ कूलर रखा है जो गर्मियों से ही वहां रखा हुआ है। कबूतरी ने शीशे और कूलर के बीच की खाली जगह का इस्तेमाल अपना आशियाना बनाने में किया। कुछ महीने पहले भी उसने अण्डे दिये थे, मुझे देखते ही कबूतरी अण्डों को छोडकर उड जाया करती थी। उसे क्या मालूम कि यहां शीशा है? शिशु-हत्या के पाप से बचने के लिये मैंने शीशे पर अखबार चिपका दिया था। सही सलामत बच्चे हो गये और उड गये। उसके बाद मैंने घोंसला उजाड दिया ... अब पुनः कबूतरों ने वहीं घोसला बनाया। मैंने लाख कोशिश की लेकिन मेरे लद्दाख भ्रमण के दौरान कबूतरी ने अण्डे दे दिये। अब तय किया कि शीशे पर अखबार नहीं चिपकाऊंगा। लेकिन इस कपोतद्वय की हिम्मत देखिये कि ये अब उडने को तैयार नहीं है। मेरा सिर शीशे पर लगा रहता है, उस तरफ कबूतरी भी शीशे से चिपककर अण्डों को सेती रहती है। शुरू में डर जाती थी, उड जाती थी लेकिन अब नहीं उडती। एक अण्डा सेते समय नीचे गिर गया और फूट गया। एक अभी भी बचा है।




1. मौसम खराब। मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की है कि उत्तर भारत बारिश की चपेट में आ गया है जो अगले कई दिनों तक जारी रहेगी। कल श्रीगंगानगर के लिये निकलना है, बारिश में यात्रा नहीं करना चाहता, दुविधा में हूं।

2. लग रहा है कि बीमार होने से बच जाऊंगा। दो दिन पहले गले में जो खराबी आने के लक्षण प्रकट हुए थे, अब नहीं हैं। हालांकि इस दौरान मिलावटी रिफाइंड तेल से बनी जी भरकर पकौडियां खाईं। मिलावटी तेल इसलिये कि यह हमेशा घी की तरह जमा रहता है, जबकि शुद्ध तेल कभी जमता नहीं है। जब मैं खरीदकर लाया था, तो इस बात का पता नहीं था। अब फेंकना भी नहीं चाहता, अपने पसीने के कमाई लगी हुई है इसमें। डॉक्टर और मेरी तो पता नहीं किस जन्म की दुश्मनी है, मैं उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहता। बिना दवाई के ही आराम मिल रहा है।


1. श्रीगंगानगर यात्रा रद्द। रात्रि ड्यूटी थी। चार तारीख की रात साढे ग्यारह बजे से एक बजे तक बूंदाबांदी हुई, फिर साढे तीन बजे दोबारा कुछ और तेज बूंदाबांदी शुरू हुई। पांच बजे तो आधे घण्टे तक मूसलाधार बारिश होती रही, फिर कम हो गई। छह बजे आरक्षण रद्द कर दिया। मैं वैसे तो पानी सिर के ऊपर डालना नहीं चाहता, लेकिन सर्दियों में बारिश का पानी अगर एक बूंद भी सिर पर पड जाये तो भारी पाप समझता हूं। 
2. बारिश हो, रात्रि सेवा हो और सिर पर दो चार बूंद पानी ना पडे, ऐसा असम्भव है। कुछ बूंदे पानी अपने ऊपर भी गिर गईं, दोपहर बाद सोकर उठा तो आधे घण्टे तक रुक-रुककर छींकें आती रहीं। जुकाम हो गया। जिस बात का डर था, वो होनी शुरू हो गई है।
3. कल यानी बुधवार को मेरा साप्ताहिक अवकाश है। लेकिन इस बार कुछ कारणों से अवकाश रद्द हो गया है। मुझे नाइट ड्यूटी करनी पडेगी। मैं अवकाश रद्द होने को अपने लिये बहुत शुभ मानता हूं। इस रद्द अवकाश के स्थान पर मुझे महीने भर के अन्दर एक छुट्टी लेनी पडेगी, जो मैं अक्सर अगले किसी अवकाश के साथ ले लेता हूं, दो दिन की छुट्टियां मिल जाती हैं। इलाहाबाद जाकर महाकुम्भ देखने की योजना बन रही है, 24 फरवरी को जाकर 27 को वापस आना।
4. राहुल सांकृत्यायन की ‘मेरी जीवन यात्रा भाग-2’ का पठन पूरा। भाग-3 शुरू। हाहाहा! बेचारा राहुल! अपनी रूसी घरवाली के बुलावे पर तीसरी बार रूस जा रहा है। मैं तो उसे आजन्म कुंवारा ही समझता रहा। मुझे क्या पता था कि महाराज ने रूस में अपना वंश चला रखा है।
5. कहते हैं कि किताबें अपने कद्रदान को खुद ढूंढती हैं। ऐसा ही आज हुआ। पुस्तक मेले में चला गया। उम्मीद थी कि एकाध पुस्तक ही पसन्द आयेगी लेकिन बिमल डे से लेकर प्रेमचन्द तक मुझे बडा शक्तिशाली कद्रदान समझ बैठे। देखते ही देखते 28 किताबें खरीद डालीं और 3100 से ज्यादा रुपये खर्च हो गये।


1. जुकाम अपने चरम पर। नाक से गंगा-जमुना बहनी शुरू हो गई है। अब दिन-रात इसी में डूबे रहेंगे, महाकुम्भ अपने घर में ही।


1. शामली से ईश्वर सिंह मिलने आये। बार-बार कहते रहे कि जाटराम के दर्शन करके मैं धन्य हो गया। वैसे उनकी आयु लगभग चालीस साल से भी ज्यादा है। युवावस्था में फौज में भर्ती हुए। वहां ट्रेनिंग के दौरान वरिष्ठ अफसरों द्वारा गाली-गलौच और मारपीट से तंग आकर नौकरी छोड दी। घुमक्कडी का जबरदस्त शौक था इसलिये घर से निकल गये, साधु बन गये। भारत के कोने-कोने में घूमे, वापस घर लौटे। अब धुन है कि एक घुमक्कड शास्त्र तो राहुलजी लिख गये, दूसरा हम लिखेंगे। घुमक्कड-पुस्तकालय भी खोलेंगे। काफी देर तक बातें हुईं, अच्छा लगा।
2. गांव से पिताजी और छोटा भाई आशु दिल्ली आए। कल सुबह तीनों बाप-बेटे मथुरा जायेंगे।


1. सुबह सात बजे दिल्ली से आगरा जाने वाली पैसेंजर पकड ली। बारह बजे तक मथुरा। बाकी यात्रा विवरण बाद में विस्तार से प्रकाशित किया जायेगा।


1. गोवर्धन परिक्रमा की। यात्रा विवरण बाद में प्रकाशित किया जायेगा। रात ग्यारह बजे तक दिल्ली वापस लौट आये।


1. एक वाकया फेसबुक से। आगरा से किसी प्रीति शर्मा नामक लडकी का मित्र बनने का अनुरोध आया। फोटो भी लगा रखा था, चेहरा अच्छा आकर्षणयुक्त था। मैंने तुरन्त एक क्लिक करके उसे मित्र बना लिया। चैटिंग शुरू। मैं पहले भी दो बार ऐसे मामलों में धोखा खा चुका हूं। लेकिन दोनों बार आखिरकार अपने मित्र ही निकले जो नकली लडकी बनकर मेरे ‘जज्बातों’ से आनन्द उठाते थे। इस बार भी यही सोचा कि वही मित्र हैं। लेकिन भण्डा फूटने से पहले उस लडकी के साथ भरपूर चैटिंग कर ली जाये, ऐसा मैं सोचता था। आगरा वाली लडकी ने बडे ही शालीन तरीके से चैटिंग की जिससे मुझे उसके लडकी होने पर यकीन बढने लगा। उसने मुझे आगरा आने का आमन्त्रण भी दिया। मैंने मना कर दिया तो अचानक कहा कि "तुम्हें आगरा आना ही होगा। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती।" बस, यही मेरे कान खडे हो गये। चार घण्टे मित्र बने हुए नहीं, जीने मरने की बात! मैंने उससे फोन नम्बर मांगा। उसने कहा कि पापा के पास रहता है। मैंने कहा कि मेरा नम्बर लो, फोन करो। उसने मना कर दिया कि पैसे नहीं हैं। तब मैंने कहा कि पहले खुद को लडकी सिद्ध करो, फिर बात करना। तब तक के लिये तू अपने घर, मैं अपने घर। इसका जिक्र अपने छत्तीसगढी मित्र डब्बू मिश्रा के सामने किया, उन्होंने जांच पडताल की तो बताया कि उससे तुरन्त दूर हो जाओ। वो पाकिस्तानी है। घूमने के लिहाज से आगरा आया होगा, हैकर भी हो सकता है।

डायरी के पन्ने-2

Comments

  1. राम राम जी, आपने डायरी लिखने की एक नयी शुरुआत की हैं. बहुत अच्छा. अब तो पक्के साहित्यकार बन गए हो. घुमक्कड तो नंबर वन हो ही. कबूतर का घोंसला, और कबूतर, वाकई प्रकृति से जुड़े हुए हो. बस अब एक बार तुम्हारे से मिलने की इच्छा हैं. क्योंकि घुमक्कडी और ब्लोगिंग में आप हमारे गुरु हो. आपसे ही प्रेरणा लेकर के ही हमने छोटी मोटी शुरुआत की हैं. वन्देमातरम...

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  2. उस लड़की के साथ जब तेरी बाते हो रही थी तो में भी उसमें शरीक थी नीरज ..और मैंने भी उस वक्त बहुत फितरे कसे थे हा हा हाहा

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  3. Chhattisgarh ka dost छत्तीसगढी मित्र डब्बू मिश्रा kaun hai kanha ka hai bhai ham bhi to c.g. se hai kya unka pata / mobile no milega

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  4. जाट बाबु यूथ हॉस्टल वाले शहर वालो के हिसाब से टूर बनाते हैं... 11 दिन का तो कोई तुक नहीं बनता है...

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  5. हाहाहाहा अपने जाटराम को फंसाना बाएं हाथ का काम है । बस नाम लडकी का होना चाहिये ।

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  6. बहुत बढ़िया लिख रहे हैं आप ! 92 मे मुझे भी ये शौक चर्राया था ! लेकिन हमारे जैसे आलसी आदमी के बस का नहीं है ! सबसे अच्छी बात कि आप की डायरी तुरंत पढ़ने को भी मिल रही है। कुछ लोग अपनी डायरी को पर्सनल रखते हैं ।

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  7. अरे नीरज ये फसबूक बहुत बुरी है, मेरे दोस्तों ने भी ऐसा २ बार किया है .... क्या मिलता है इनको ... उसके बाद से तो में अजनबी लड़की को एक्सेप्ट भी नहीं करता हूँ ...

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. Well, maintaining a diary is a good habit and a skill of time management. i also maintain a diary for my day activity. its make our life easy & life memorable........ great start !
    you are a good Photo-graph-er too now, no doubt !
    Best of luck :)

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

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