Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2012

गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 8 जून 2012 की सुबह नौ बजे हमने गौमुख के लिये प्रस्थान कर दिया। मेरे साथ एक पत्रकार चौधरी साहब और कुली नन्दू भी था। हमारे पास स्लीपिंग बैग, टैण्ट और खाने का भरपूर सामान था। गंगोत्री समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर है। इतनी ऊंचाई पर ट्रेकिंग करना मायने रखता है। साधारण सेहत वाला इंसान इतनी ऊंचाई पर सही सलामत पैदल नहीं चल सकता। इसके लिये सेहत साधारण से ऊपर चाहिये। हम दोनों साधारण से ऊपर तो थे, लेकिन ज्यादा ऊपर नहीं। गंगोत्री से अच्छी तरह निकल भी नहीं पाये थे कि एक ‘टोल टैक्स’ चुकाना पडा। सौ रुपये की पर्ची कटी। बताया गया कि कुलियों के, पॉर्टरों के, गाइडों के भले के लिये यह टैक्स लिया जाता है। हालांकि इसमें से एक धेला भी इन लोगों के ना तो पास जाता है, ना ही इनके लिये खर्च किया जाता है। इसका सबूत था नन्दू, जिसके कारण हमें यह टैक्स देना पडा और नन्दू को इससे कोई फायदा नहीं होता। कोई उसे पूछता तक नहीं। यहां अपने पत्रकार साहब खदक पडे। कहने लगे कि दिल्ली जाकर आरटीआई लगाऊंगा और पता करूंगा कि कितना पैसा इन लोगों पर खर्च किय

उत्तरकाशी से गंगोत्री

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 7 जून 2012 को जब हम उत्तरकाशी फॉरेस्ट कार्यालय से गौमुख जाने का परमिट बनवा रहे थे, तो वहीं पर दो मोटी-मोटी महिलाएं भी थीं। वे भी परमिट बनवाने आयी थीं। गौरतलब है कि अगर हम अपने साथ गाइड या पॉर्टर भी ले जाते हैं, तो उनका भी परमिट बनवाना पडता है। लोकल आदमियों ने उनसे पूछा कि क्या आप अपने साथ कोई गाइड-पॉर्टर नहीं ले जायेंगीं। उन्होंने मना कर दिया। लोगों ने उन्हें पोर्टर ले जाने की सलाह दी- उनके मोटापे को देखते हुए। उनका दोनों का वजन अगर सौ-सौ किलो नहीं भी था तो नब्बे नब्बे किलो से कम भी नहीं था। महिलाओं ने एक बार तो लोकल आदमियों की तरफ पर्यटकों वाले अंदाज से देखा। अक्सर हम कहीं भी जाते हैं, तो लोकल आदमियों की निष्पक्ष सलाह को शक की निगाह से देखते हैं। हमें यह लगता है कि सामने वाला हमें ठगने की कोशिश कर रहा है या हमें बेवकूफ बना रहा है। उसी हिकारत भरे अन्दाज से उन्होंने उन आदमियों को देखा। कहने लगीं कि हम वैष्णों देवी गयी थीं, तो पैदल ही गई थीं। वहां हमें कोई दिक्कत नहीं हुई तो यहां कैसे हो जायेगी। वे ठहरे बेचारे किस्म के

उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 6 जून 2012 की शाम तक हम उत्तरकाशी पहुंच गये थे। लगातार बारह घण्टे हो गये थे हमें बाइक पर बैठे बैठे। आधा घण्टा नरेन्द्रनगर और आधा घण्टा ही चम्बा में रुके थे। थोडी देर चिन्यालीसौड भी रुके थे। इन बारह घण्टों में पिछवाडे का ऐसा बुरा हाल हुआ जैसे किसी ने मुर्गा बनाकर पिटाई कर दी हो। बाइक से उतरते ही हमारे मुंह से निकला- आज की अखण्ड तपस्या पूरी हुई। मैंने बताया था कि मेरे साथ चौधरी साहब थे, जो दिल्ली के एक प्रसिद्ध अखबार में पत्रकार थे। अब पत्रकारों का बडा जबरदस्त नेटवर्क होता है। कहीं भी चले जाओ, मोबाइल नेटवर्क मिले या ना मिले, पत्रकारों का पूरा फुल नेटवर्क मिलता है। उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान है जहां पर्वतारोहण की कक्षाएं चलती हैं, पर्वतारोहण सिखाया जाता है, वो भी बिल्कुल सस्ते दामों पर। हमारे पत्रकार साहब का एक नेटवर्क उस संस्थान में भी है। उसका शॉर्ट नाम निम (NIM- Nehru Institute of Mountaineering) है। उत्तरकाशी में कहीं भी किसी से पूछ लो कि निम कहां है, आपको सही जानकारी मिल जायेगी। तो जी, हम भी निम में जा

गंगोत्री-गोमुख-तपोवन यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी

अक्सर ऐसा होता है कि जब भी मैं कहीं जाने की योजना बनाता हूं तो पेट में मरोडे उठने लगते हैं। जी खुश हो जाता है कि इतने दिन और बचे हैं, मैं फलां तारीख को इतने बजे वहां पर रहूंगा। और उन मरोडों की वजह से पेट खराब हो जाता है, दस्त भी लग जाते हैं। उसी खराबी की वजह से मेरी कई यात्राएं कैंसिल हुई हैं। मई में ग्वालियर वाली नैरो गेज ट्रेन की सवारी करनी थी, पेट खराब और यात्रा कैंसिल। उसका सारा रिजर्वेशन करा लिया था, पक्की योजना बन गई थी, लेकिन ऐन टाइम पर पेट में मरोडे उठे। सोचा गया कि भयंकर गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा है, तुरन्त रिजर्वेशन कैंसिल और यात्रा भी कैंसिल। अपने एक और घुमक्कड दोस्त हैं- सन्दीप पंवार । उन्हें बीस मई के आसपास सारपास की ट्रेकिंग पर जाना था यूथ हॉस्टल की तरफ से। उनकी देखा-देखी मैंने भी अपने खुद के आधार पर सारपास पार करने की योजना बनाई। और कब बीस मई आई और कब चली गई, पता ही नहीं चला। ये भी ध्यान नहीं रहा कि सन्दीप भाई ने वो यात्रा की या नहीं। ... एक मिनट, पूछ लेता हूं उनसे....