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16 नवम्बर 2010 की दोपहर लगभग ग्यारह बजे मैं ऊखीमठ में रुद्रप्रयाग जाने वाली जीप की प्रतीक्षा कर रहा था। तभी पीछे से किसी ने आवाज लगाई। पीछे मुडकर देखा तो एक 27-28 साल का गढवाली युवक एक दुकान में बैठा मुझे बुला रहा था। पूछा कि आप टूरिस्ट है। मुझे टूरिस्ट शब्द से चिढ है, इसलिये मैंने कहा कि नहीं, घुमक्कड हूं। यहां घूमने आया हूं। लेकिन तुम अपनी सुविधा के हिसाब से टूरिस्ट कह सकते हो।
बोला कि आपके बैग में पानी की बोतल लटकी है, इसलिये मैंने पहचान लिया। आपको जाना कहां है?
मैं घूमने के दौरान अक्सर चुपचाप ही रहता हूं और अपना कार्यक्रम किसी को बताना पसंद नहीं करता। फिर भी उसे बता दिया कि रुद्रप्रयाग जा रहा हूं।
“उसके बाद?”
“असल में मैं ट्रेकिंग गाइड हूं। ये देखो, मेरा कार्ड। भरत पुष्पवान नाम है मेरा। यही पास में ही गांव है- किमाना, वहां का रहने वाला हूं। अगर किसी सहायता की जरुरत हो तो बताओ।”
“नहीं, मुझे सहायता की कोई जरुरत नहीं है। असल में मुझे बद्रीनाथ जाना था। कल कपाट बन्द हो रहे हैं ना, उसी सिलसिले में। अब इधर से गोपेश्वर की कोई गाडी मिल ही नहीं रही है, इसलिये रुद्रप्रयाग जा रहा हूं, वहां से जोशीमठ जाऊंगा।”
“आप इतनी दूर से चक्कर काटकर जोशीमठ जाओगे। चलिये, मैं आपको सीधे इसी रास्ते से गोपेश्वर ले जाऊंगा। साथ में चोपता तुंगनाथ भी दिखाऊंगा। तुंगनाथ से आगे…”
“चंद्रशिला है। सब पता है मुझे।”
“केवल इतना ही नहीं है। देवरिया ताल भी है, बहुत पैदल चढना पडता है।”
“बहुत नहीं, ये सामने वाली पहाडी के ऊपर ही तो है।” (गूगल अर्थ से पहले ही देखकर चला था।)
“आपको तो सब पता है।”
“हां, मैं हमेशा घूमता रहता हूं और अकेला ही घूमता हूं। मुझे कब कहां जाना है, कैसे जाना है। यह तय करने का अधिकार केवल मुझे है, किसी ट्रेकिंग गाइड को नहीं।”
गाइडों के व्यवहार से अच्छी तरह परिचित हूं। वो गाइड भी क्या, जो किसी शिकार को आसानी से छोड दे। लेकिन यहां मुझे खुद को अनजान ना दिखाकर सर्वज्ञानी दिखाना था कि मैं यहां के बारे में सबकुछ जानता हूं और मुझे गाइड की जरुरत नहीं है।
लेकिन इसने अभी कहा था कि मैं आपको इसी रास्ते से गोपेश्वर ले जाऊंगा। यहां जब गाडी ही नहीं चल रही तो यह कैसे ले जायेगा।
“ये बताओ, तुम अभी कह रहे थे कि इसी रास्ते से गोपेश्वर जा सकते हैं। जरा बताना कि कैसे?
“हम यहां से पहले दुगलबिट्टा जायेंगे…”
“पहले ये बताओ कैसे जायेंगे?”
“वो सामने एक होटल दिख रहा है? उसी की एक शाखा दुगलबिट्टा में भी है। दुगलबिट्टा चोपता के पास ही है। अगर हम यहां होटल में सम्पर्क करते हैं तो वे अपनी गाडी से हमें दुगलबिट्टा छोड देंगे।”
“फिर आगे कैसे जायेंगे?”
“आज आगे जाने की जरुरत नहीं है। हम रात को दुगलबिट्टा में ही रुकेंगे- टेंट में। उनका किराया वैसे तो 800 रुपये है लेकिन मैं कुछ कम करा लूंगा। कल सुबह उठकर पहले चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला जायेंगे, रात को फिर से टेंट में ही सोयेंगे। परसों सुबह वहां से गोपेश्वर चले जायेंगे।”
“मैंने तुमसे अभी अभी कहा था कि मैं अपना कार्यक्रम खुद बनाता हूं- किसी दूसरे से नहीं बनवाता। फिर क्यों मुझे दुगलबिट्टा ले जाना चाहते हो? ठीक है, ये बताओ कि वहां रात रुकने का कितना खर्चा आयेगा।”
“500 रुपये।”
“मेरी औकात नहीं है 500 रुपये देने की।”
“भाईसाहब, क्या बात कर रहे हो? आप इतनी दूर से आये हो और 500 रुपये की शक्ल देख रहे हो।”
“मेरा साल में एक बार का काम नहीं है, साल भर में दस बार जाता हूं घूमने। इस तरह पैसे बहाने लगा तो हो गयी घुमक्कडी।”
“ठीक है, फिर आपको तुंगनाथ भी तो मिल रहा है।”
“वो तो कल यहां ऊखीमठ से भी मिल जायेगा। सुबह सात बजे वाली बस से। दुगलबिट्टा जाने की जरुरत ही नहीं है।”
“हां, ठीक कह रहे हो।”
“तुम कितने लेते हो।”
“मैं 600 रुपये एक दिन के लेता हूं। एक बार कुछ अंग्रेज आये थे, उन्होंने…”
“यहां कितने लोगे?”
“500 दे देना।”
“200’’
“नहीं, 200 में क्या होता है?”
“कोई बात नहीं, गरज तुम्हे है, मुझे थोडे ही है।”
आखिरकार 400 में सौदा तय हो गया। कल सुबह सात वाली पहली और आखिरी बस से चोपता जाना तय हुआ। लेकिन समस्या आयी कि अब क्या करें। रुद्रप्रयाग तो कैंसिल हो ही गया है। दोपहर का समय है, शाम तक क्या करूंगा।
मैंने कहा- “देख भाई, आज शाम तक का समय है हमारे पास। देवरिया ताल चलते हैं।”
उसने बताया कि पहले सारी गांव जाना पडेगा। सारी के पास तक जीपें चलती हैं। हम सारी पहुंचे। सारी से पैदल ढाई किलोमीटर की पहाडी चढाई है। हमने तेज-तेज चलते हुए 45 मिनट में पार कर ली।
देवरिया ताल उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ के पास एक पहाडी पर छोटा सा ताल है। इसके चारों तरफ जंगल हैं। यह समुद्र तल से 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
सारी गांव और पीछे वाली पहाडी की चोटी पर है देवरिया ताल
सारी में बैठकर चाय पी
सारी से देवरिया ताल जाने का रास्ता
कुछ ऊपर से सारी ऐसा दिखता है
और ऊपर जाने पर ऐसा
देवरिया ताल के प्रथम दर्शन
एक छोटा सा ताल है यह
खाने-पीने का भी इंतजाम है। एकमात्र होटल।
यह ताल अपने स्वच्छ पानी के लिये प्रसिद्ध है।
देवरिया ताल आने वाले पर्यटकों को 150 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क देना होता है। यह शुल्क वन विभाग लेता है। लेकिन उत्तराखण्ड के निवासियों के लिये कोई शुल्क नहीं है। यह सुनते ही मैं दिल्ली छोड हरिद्वार निवासी हो गया और शुल्क से बच गया।
ऊखीमठ से मस्तूरा गांव तक नियमित जीपें है। मस्तूरा से लगभग एक किलोमीटर ऊपर सारी गांव है। वैसे तो मस्तूरा से दो-तीन किलोमीटर आगे एक बैण्ड है जहां से एक सडक सारी तक भी आती है। यानी सारी तक अपनी गाडी से आया जा सकता है। सारी के बाद ढाई-तीन किलोमीटर का पैदल रास्ता है। आने को तो ऊखीमठ से सीधे देवरिया ताल तक भी आ सकते हैं। चित्र में स्पष्ट दिख रहा है कि ताल और ऊखीमठ के बीच में घना जंगल है। यह दूरी लगभग आठ किलोमीटर पैदल है। स्थानीय निवासी इस रास्ते से जाने की मनाही करते हैं क्योंकि यह क्षेत्र जंगली जानवरों से भरा है जिनमें भालू और तेंदुआ प्रमुख हैं। लेकिन ज्यादातर पर्यटक ऊखीमठ से सीधे पैदल चलकर ताल तक जाते हैं और सारी के रास्ते नीचे उतरकर चोपता चले जाते हैं।
चित्र में लाल रेखा मेरे रास्ते को दिखा रही है। मैं और मेरा गाइड भरत मस्तूरा से पैदल चले थे। लेकिन वापस किस रास्ते से उतरे, यह अभी एक रहस्य है। इस रहस्य का उदघाटन परसों करेंगे।
अगला भाग: बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
मदमहेश्वर यात्रा
1. मदमहेश्वर यात्रा
2. मदमहेश्वर यात्रा- रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ तक
3. ऊखीमठ के पास है देवरिया ताल
4. बद्रीनाथ नहीं, मदमहेश्वर चलो
5. मदमहेश्वर यात्रा- उनियाना से गौंडार
6. मदमहेश्वर यात्रा- गौंडार से मदमहेश्वर
7. मदमहेश्वर में एक अलौकिक अनुभव
8. मदमहेश्वर और बूढा मदमहेश्वर
9. और मदमहेश्वर से वापसी
10. मेरी मदमहेश्वर यात्रा का कुल खर्च
कमाल है यार ...इस ठण्ड में घुमक्कड़ी और वह भी पहाड़ों में ! शुभकामनायें चौधरी !
ReplyDeleteहमें लग रहा है कि बड़े शार्टकट से उतरे होंगे आप।
ReplyDeleteघुमक्कडी जिन्दाबाद
ReplyDeleteघुमक्कड़ी जिन्दाबाद
वाह भाई जाट जी .......हमारे यहाँ भी है एक आदि बद्रीनाथ, कहते है कि बद्री नाथ जी का पूर्व प्रवास यहाँ यमुनानगर में था कभी आओ तो दिखा देंगे कपाल मोचन,सरस्वती नदी उदगम,कलेसर नेशनल पार्क,दिल्ली का शोक हथिनी कुंड बैराज,ताज़े वाला डैम
भाई आनंद आ गया...फोटोग्राफी तो आपकी कमाल की है...रघु राय भी शर्मा जाए...घुमक्कड़ी जिंदाबाद...
ReplyDeleteनीरज
आपकी फोटोग्राफी का एक फैन मै भी हू |
ReplyDelete.....आनंद आ गया
ReplyDeleteजाट भाई...घुमक्कड़ी जिन्दाबाद
अले वाह, आप तो ठंडी में भी भी घूम आए..कित्ती स्मार्ट-स्मार्ट फोटो...प्यारी लगीं.
ReplyDeleteमस्त यात्रा
ReplyDeleteवैसे कैमरे की तस्वीर थोड़ी सी धुंधली हुई है , क्यों ?
लेंस वेंस साफ़ कर लिया करो भाई
यही कारण है आपसे ईर्ष्या का :)
ReplyDeleteप्रणाम
कभी मौका मिला, तो इसे भी निरखेंगे।
ReplyDelete---------
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
इसी बहाने रूद्रप्रयाग के वारे में अच्छी जानकारी मिली। यात्रा वृतांत रोचक लगा। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteअरे घुमकडी तू बडा कंजुस निकला, अब तेरे संग हमे भी रहना पडेगा, भाव मोल सीखने के लिये, सभी चित्र बहुत सुंदर लगे, ओर विवरण की तो कोई बात ही नही, बहुत ही सुंदर, बस युही घुमते रहो, ओर हमे बताते रहो सारा हाल, लेकिन झुठ कम बोलो अगर उन्हे पता चल गया कि यह तो हरियाणे का हे तो?
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