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Showing posts from September, 2010

श्री अमरनाथ दर्शन

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । आठ जुलाई 2010 की शाम को हम पंचतरणी से गुफ़ा की ओर चले। पवित्र गुफा यहाँ से छह किलोमीटर दूर है। सारी यात्रा चढ़ाई भरी है। शुरूआती तीन किलोमीटर की चढ़ाई तो वाकई हैरतअंगेज है। लगभग तीन-चार फीट चौड़ा रास्ता, उस पर दोनों ओर से आते-जाते खच्चर और यात्री। ज्यादातर समय यह रास्ता एकतरफ़ा ही रहता है। ऐसे में एक तरफ़ से आने वालों को रोक दिया जाता है और दूसरी तरफ़ वालों को जाने दिया जाता है। इसलिये इस पर हमेशा जाम और लंबी लाइन लगी रहती है। शाम हो रही थी। आज हमें यही पर रुकना था। इरादा था कि कल सुबह नहा-धोकर दर्शन करेंगे और दस बजे तक बालटाल वाले रास्ते पर बढ़ चलेंगे।

पंचतरणी- यात्रा की सुन्दरतम जगह

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । पौषपत्री से चलकर यात्री पंचतरणी रुकते हैं। यह एक काफ़ी बड़ी घाटी है। चारों ओर ग्लेशियर हैं तो चारों तरफ़ से नदियाँ आती हैं। कहते हैं कि यहाँ पाँच नदियाँ आकर मिलती हैं, इसीलिये इसे पंचतरणी कहते हैं। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। इस घाटी में छोटी-बडी अनगिनत नदियाँ आती हैं। चूँकि यह लगभग समतल और ढलान वाली घाटी है, इसलिये पानी रुकता नहीं है। अगर यहाँ पानी रुकता तो शेषनाग से भी बड़ी झील बन जाती। इन पाँच नदियों को पाँच गंगा कहा जाता है। यहाँ पित्तर कर्म भी होते हैं। यहाँ भी शेषनाग की तरह तंबू नगर बसा हुआ है। अमरनाथ गुफ़ा की दूरी छह किलोमीटर है। दो-ढाई बजे के बाद किसी भी यात्री को अमरनाथ की ओर नहीं जाने दिया जाता। सभी को यही पर रुकना पड़ता है। हम इसीलिये शेषनाग से जल्दी चल पड़े थे और बारह बजे के लगभग यहाँ पहुँचे थे। हमारा इरादा आज की रात गुफ़ा के पास ही बिताने का था।

पौषपत्री का शानदार भण्डारा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अमरनाथ यात्रा में महागुनस चोटी को पार करके एक स्थान आता है- पौषपत्री। जहां महागुनस (महागणेश) चोटी समुद्र तल से 4276 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं पौषपत्री की ऊंचाई 4114 मीटर है। यहां से एक तरफ बरफ से ढकी महागुनस चोटी दिखाई देती है, वही दूसरी ओर दूर तक जाता ढलान दिखता है। पौषपत्री से अगले पडाव पंचतरणी तक कहीं भी चढाई वाला रास्ता नहीं है। टोटल उतराई है। पौषपत्री का मुख्य आकर्षण यहां लगने वाला भण्डारा है। देखा जाये तो पौषपत्री पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक तो पहलगाम से और दूसरा बालटाल से पंचतरणी होते हुए। यह शिव सेवक दिल्ली वालों द्वारा लगाया जाता है। मुझे नहीं लगता कि इतनी दुर्गम जगह पर खाने का सामान हेलीकॉप्टर से पहुंचाया जाता होगा। सारा सामान खच्चरों से ही जाता है। हमें यहां तक पहुंचने में डेढ दिन लगे थे। खच्चर दिन भर में ही पहुंच जाते होंगे, वो भी महागुनस की बर्फीली चोटी को लांघकर।

अमरनाथ यात्रा- महागुनस चोटी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 15 जुलाई 2010 की सुबह थी। हम छह अमरनाथ यात्री शेषनाग झील के किनारे तम्बू में सोये पडे थे। यह झील समुद्र तल से 3352 मीटर की ऊंचाई पर है। चारों ओर ग्लेशियरों से घिरी है यह। सुबह को बाकी सब तो उठ गये लेकिन मैं पडा रहा। पूरी रात तो मैं पेट गैस लीकेज की वजह से परेशान रहा, अब नींद आ रही थी। सभी फ्रेश हो आये, तब उन्होनें मुझे आवाज लगाई। दिन निकल गया था। आज का लक्ष्य था 12 किलोमीटर चलकर दोपहर दो बजे से पहले पंचतरणी को पार कर लेना। नहीं तो उसके बाद पंचतरणी में बैरियर लगा दिया जाता है। वहां भी तम्बू नगरी है। वहां से गुफा छह किलोमीटर रह जाती है।