जब मैं गुडगाँव में रहता था तो मुझसे दिल्ली के एक दोस्त ने पूछा कि यार, ये जो गुड होता है ये कौन से पेड़ पर लगता है? मैंने कहा कि इस पेड़ का नाम है गन्ना। तो बोला कि गन्ने पर किस तरह से लगता है? डालियों पर लटकता है या गुठली के रूप में होता है या फिर तने में या जड़ में होता है। मैंने कहा कि यह गन्ने की डालियों पर प्लास्टिक की बड़ी बड़ी पन्नियों में इस तरह पैक होता है जैसे कि बड़ी सी टॉफी। लोगबाग इसे पन्नियों में से बाहर निकाल लेते हैं और पन्नियों को दुबारा टांग देते हैं। उसके मुहं से एक ही शब्द निकला- आश्चर्यजनक।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग