इस यात्रा वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । मैं सोचने लगा कि चलो देहरादून पहुंचकर कहीं आगे की गाड़ी पकड़ते हैं। हमारे पास पहला विकल्प था मसूरी जाने का लेकिन दोनों की जेबें खाली। फ़िर सोचा कि वहां चलेंगे, भला कहाँ? अरे यार वहां, क्या नाम है.....सहस्त्रधारा। या फ़िर चलेंगे डाकपत्थर। मसूरी तो जाने का सवाल ही नहीं था। तभी विभूति ने पूछा कि अब कौन सा स्टेशन आएगा? मैंने कहा- डोईवाला। तभी अचानक दिमाग में विस्फोट सा हुआ। "अरे हाँ, लच्छीवाला भी तो यहीं पर है। अब देहरादून नहीं चलते। लच्छीवाला चलते हैं।" विभूति महोदय कभी इधर आए तो थे नहीं, मैं जिधर का भी नाम ले दूँ, मेरी हाँ में हाँ। खैर, तय हो गया कि लच्छीवाला ही चलते हैं। वैसे गाड़ी का स्टोपेज तो था नहीं, फ़िर भी हमने उतरने का पूरा मूड बना लिया। हमें यकीन था कि यहाँ पर गाड़ी की स्पीड थोडी कम तो होगी ही। बस उतर जायेंगे। लेकिन स्टेशन आते आते स्पीड और बढ़ गई। बेचारे दोनों मन मसोसकर रह गए। आगे लच्छीवाला पुल पर भी नहीं उतर सके।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग